आप जितने अधिक ‘असभ्य’, उतने ही ‘बेहतर’

Edited By ,Updated: 01 May, 2024 05:37 AM

the more  rude  you are the  better

इस तीखे, मसालेदार लोकसभा चुनाव प्रचार के मौसम में हमारे नेतागण अपशब्दों और अनुचित भाषा का प्रयोग कर रहे हैं जिससे लोगों का बदबूदार मनोरंजन हो रहा है और इस चुनाव प्रचार के दौरान पैसों की खनक सुनाई दे रही है।

इस तीखे, मसालेदार लोकसभा चुनाव प्रचार के मौसम में हमारे नेतागण अपशब्दों और अनुचित भाषा का प्रयोग कर रहे हैं जिससे लोगों का बदबूदार मनोरंजन हो रहा है और इस चुनाव प्रचार के दौरान पैसों की खनक सुनाई दे रही है। लोग इन बातों पर सीटी बजा रहे हैं और जिसके चलते राजनीतिक विरोधियों और कट्टर दुश्मनों के बीच की पंक्ति धुंधली हो गई है और यह इसलिए किया जा रहा है कि हमारे नेतागणों को आशा है कि इससे उन्हें राजनीतिक तृप्ति मिलेगी। वर्तमान में जारी अपशब्दपूर्ण निंदाजनक और अशिष्ट चुनाव प्रचार को इससे बेहतर कुछ वॢणत नहीं कर सकता कि इसमें सामान्य शिष्टाचार और गरिमा को ताक पर रख दिया गया है तथा स्वस्थ प्रतिद्वंद्वियों के बीच भाईचारा, सहिष्णुता और आदर समाप्त हो गया है।

यह इस बात को रेखांकित करता है कि अपशब्द, अशिष्टता, कीचड़ उछालना आदि नई राजनीतिक भाषा बन गई है और इसमें जो जितना बेहतर वह उतना सफल दिखाई दे रहा है। आज हर कोई और हर बात खेल बन गया है-देशभक्ति से देशद्रोही। कांग्रेस अपने जनाधार के बारे में भ्रमित है। उसके पास कोई चुनावी मुद्दा नहीं है और वह भाजपा को सत्ता में वापस आने से रोकने के लिए हताश है और इसलिए उसने गाली और अपशब्दों का प्रयोग करने तथा जातिवाद को बढ़ावा देने के अपने चिरपरिचित फार्मूले को अपनाया। भगवा संघ के लिए अपने पोस्टर ब्वॉय प्रधानमंत्री मोदी के दस साल के शासन को आगे जारी रखना सुनिश्चित करने हेतु यह करो या मरो की लड़ाई है। 

कांगे्रस द्वारा निर्वाचन आयोग के समक्ष यह शिकायत दर्ज करने पर खूब शोर-शराबा हो रहा है कि मोदी यह कहते हुए लोगों को गुमराह कर रहे हैं कि कांग्रेस लोगों की सम्पत्ति तथा महिलाओं के मंगलसूत्र को घुसपैठियों अर्थात मुसलमानों को बांटना चाहती है और हमारे चुनाव घोषणा पत्र को मुस्लिम लीग का घोषणा पत्र कह रहे हैं। यह न तो संविधान में लिखा है और न ही हमारे चुनाव घोषणा पत्र में कहीं लिखा है। कांग्रेस ने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर आरोप लगाया कि उसने विरासत कर के बारे में एक नेता की टिप्पणी को विकृत किया है। मोदी ने इसे जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी लोगों को लूटने के लिए विपक्ष का मंत्र बताया है। यह भी कहा गया कि मोदी बहुत झूठ बोलते हैं।

मोदी कहते हैं कि मोदी की 56 इंच की छाती है। हम 56 इंच की छाती का क्या करेंगे। वे बताएं कि उन्होंने पेट के लिए क्या किया है, आप हमें भोजन के लिए क्या दे रहे हैं। आज महंगाई एक बड़ा मुद्दा है जिससे लोग ङ्क्षचतित हैं। भाजपा ने इसके प्रत्युत्तर में शहजादे राहुल गांधी पर यह आरोप लगाया कि वह भाषा और क्षेत्र के आधार पर निरंतर उत्तर और दक्षिण को बांटने का प्रयास कर रहे हैं और साथ ही वोट बैंक की राजनीति के लिए मुसलमानों के तुष्टीकरण हेतु धार्मिक आधार पर आरक्षण देने की योजना बना रहे हैं। कर्नाटक की कांगे्रस सरकार ने ओ.बी.सी. के आरक्षण का एक हिस्सा पहले ही मुसलमानों को दे दिया है।

भाजपा ने राहुल पर आरोप लगाया कि वह मूर्खों और झूठों का सरदार है जो स्वयं को एक एक्सीडैंटल हिन्दू कहते हैं। उसे  भारत के इतिहास और भूगोल का समुचित ज्ञान नहीं है। साथ ही वह यह झूठ फैला रहे हैं कि देश में गरीबी बढ़ी है और पार्टी ने निर्वाचन आयोग से कहा है कि वह राहुल के विरुद्ध कार्रवाई करे। इस पर राहुल ने कहा कि पी.एम. का मतलब पनौती मोदी और जेबकतरा। तृणमूल कांग्रेस की ममता मोदी को पापी कहती हैं तो राकांपा के शरद पवार ने उन्हें निर्लज्ज कहा। शिवसेना के उद्धव ठाकरे ने कहा कि मोदी के लिए वोट देने का मतलब है विनाश के लिए वोट देना। बसपा ने भाजपानीत राजग को आतंकवादी सरकार कहा है तो एक माकपा नेता ने कहा कि क्या राहुल नेहरू गांधी परिवार में पैदा हुआ था। मुझे इस बारे में संदेह है। उसके डी.एन.ए. की जांच की जानी चाहिए। तो ए.आई.एम.एम. के आेवैसी कहते हैं कि कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ है जो मुझे रोक सके।  

नि:संदेह दोषी पूर्ण रूप से पार्टियां हैं और निर्वाचन आयोग की आदर्श आचार संहिता राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों और जानी दुश्मनों के शस्त्रों में सबसे शक्तिशाली मिसाइल बन गई है। कोई भी आदर्श आचार संहिता में सामान्य आचरण, बैठकों, रैलियों, मतदान के दिन मतदान केन्द्र पर्यवेक्षकों और सत्तारूढ़ पार्टी के बारे में दिए गए निर्देशों की परवाह नहीं कर रहा है। हर कोई तुरंत शिकायत कर देता है और अपने प्रतिद्वंद्वियों से अनुशासित रहने की मांग करता है किन्तु स्वयं ऐसा व्यवहार नहीं करता है। प्रत्येक पार्टी ने घृणा फैलाने, जाति, धर्म, समुदाय या भाषा के आधार पर विभाजन करने के आरोप लगाए हैं। 

नि:सहाय निर्वाचन आयोग केवल अपनी अप्रसन्नता व्यक्त करता है और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 76 का स्मरण कराता है और पार्टी के अध्यक्ष को इसके लिए दोषी ठहराता है और पहले कदम के रूप में उन्हें स्टार प्रचारकों से दूर रखता है। निर्वाचन आयोग का कहना है कि राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों और विशेषकर स्टार प्रचारकों के आचरण के बारे में पूर्ण जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उच्च पदों पर आसीन लोगों द्वारा प्रचार के दौरान दिए गए भाषणों का गंंभीर प्रभाव पड़ता है। चुनाव प्रचार पर दो-तीन दिन का प्रतिबंध लगाने के अलावा हेट स्पीच के बारे में निर्वाचन आयोग की कार्रवाई केवल फटकार लगाना होता है। 

श्रोताओं के समक्ष जितनी अशिष्ट भाषा का प्रयोग किया जाए, उतना बेहतर और हमेशा दिल मांगे मोर की मांग होती है क्योंकि हमारे राजनेताओं के पाखंड सफल नहीं हो सकते  हैं यदि नैतिकता का उपदेश देने वाला इसका स्वयं अनुकरण करने लगे। चुनाव का मतलब कि अपने प्रतिद्वंद्वियों के विरुद्ध बढ़त हासिल करना है। निर्वाचन आयोग और आदर्श आचार संहिता के अंतर्गत दिए गए निर्देशों को भूल जाइए। उनके लिए परिणाम महत्वपूर्ण है, उसको प्राप्त करने का साधन नहीं। किन्तु क्या इन अपशब्दों और अशिष्टता पर रोक लगेगी? बिल्कुल नहीं क्योंकि सभी एक ही रंग में रंगे हुए हैं। चाहे कोई भी दल हो। कोई भी इस महत्वपूर्ण प्रश्न का निराकरण नहीं करना चाहता है कि राजनेताआें की भाषा और भाषण विषाक्त क्यों होते जा रहे हैं? क्या ऐसी भाषा और भाषण को नजरअंदाज किया जा सकता है? 

दिल्ली में भाजपा पर आरोप है कि उसने आप के केजरीवाल को एक कुत्ता कहा है और उसकी एक महिला उम्मीदवार के विरुद्ध जातिसूचक शब्दों के प्रयोग के साथ साथ उसे वेश्या कहा है किन्तु मैं इससे चकित नहीं हूं क्योंकि हमारे नेतागण अपना गिरगिट वाला असली रंग दिखा रहे हैं और सारी शालीनता और शिष्टाचार को ताक पर रख रहे हैं। अब वे दिन नहीं रह गए जब प्रतिद्वंद्वियों के विरुद्ध उपहासपूर्ण, व्यंग्यात्मक टिप्पणियां की जाती थीं और नेता उसे सहजता से स्वीकार कर लेते थे। केवल इस चुनाव में नहीं हर चुनाव में यही स्थिति देखने को मिलती है और निर्वाचन आयोग को हर बार इन्हीं प्रश्रों का सामना करना पड़ता है और जब तक निर्वाचन आयोग इस संबंध में कोई कदम उठाता है तब तक मतदान हो चुका होता है। फिर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में क्या होता है। कुछ नहीं वे स्वत: ही भुला दिए जाते हैं। इस बुरे दौर में राजनीति में नैतिकता के मानदंडों में गिरावट के बारे में बात करना बेवकूफी होगी। 

जब भारत में मतदान हो रहा हो हमें नेताओं को अपने साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। हमें ऐसे बयानों पर रोक लगाने की मांग करनी चाहिए जो हमारे लोकतंत्र के लिए अवांछित और अस्वस्थकर हैं और साथ ही इस बात पर भी बल देना चाहिए कि चुनाव सुधारों को शीघ्रातिशीघ्र लागू किया जाए ताकि हमारा लोकतंत्र सच्चे अर्थों में प्रातिनिधिक बन सके। निर्लज्ज और स्वार्थी नेताओं को वोट देना बंद करना चाहिए जो अनैतिकता पर अधिक विश्वास करते हैं।

हमारे नेताओं को विभाजनकारी और व्यक्तिगत हमलों से बचना होगा तथा जनता और राष्ट्र को प्रभावित मुद्दों पर एक-दूसरे से बहस करनी होगी न कि व्यक्तित्व पर ताकि चुनाव प्रचार गरिमापूर्ण बहस की पटरी पर पुन: वापस आ सके तथा आक्रामक और अशिष्ट भाषा के प्रयोग को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। हमारा उद्देश्य यह होना चाहिए कि सार्वजनिक बहस का स्तर बढ़ाया जाए क्योंकि यदि आप किसी की ओर एक उंगली उठाते हैं तो आपकी आेर चार उंगलियां उठती हैं। फिर हम कब तक इसका खमियाजा भुगतते रहेंगे। क्या कोई राष्ट्र शर्म और नैतिकता के बिना रह सकता है? -पूनम आई. कौशिश

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