भारतीय नीति वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत पर आधारित

Edited By ,Updated: 22 Apr, 2021 10:02 AM

indian policy based on the principle of vasudhaiva kutumbakam

कोविड-19 की दूसरी लहर के फैलने के बाद देश के अधिकांश राज्यों में अफरा-तफरी की स्थिति पैदा हो गई है। भारत अमरीका के बाद विश्व में दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित देश बन गया है। महामारी के मामलों में अभूतपूर्व मौतें और तेजी के बाद भारत ब्राजील से आगे निकल...

कोविड-19 की दूसरी लहर के फैलने के बाद देश के अधिकांश राज्यों में अफरा-तफरी की स्थिति पैदा हो गई है। भारत  अमरीका के बाद विश्व में दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित देश बन गया है। महामारी के मामलों में अभूतपूर्व मौतें और तेजी के बाद भारत ब्राजील से आगे निकल गया है। हालांकि भारत सरकार ने सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया (एस.आई.आई.) को 4500 करोड़ रुपए और भारत बायोटैक को 1500 करोड़ रुपए आबंटित किए हैं जिससे भविष्य में दबाव कम हो सकता है। आपूॢत और विनिर्माण सुविधाओं की कमी के कारण देश में आपातकालीन स्थिति का सामना किया जा रहा है। पर्यवेक्षक मानते हैं कि एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अवगत करवाया है कि भारत की दवा आवश्यकताओं को अमरीका समझता है।


कोविड-19 टीकों के निर्माण के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण कच्चे माल में मुख्य रूप से बाधा एक अधिनियम के कारण है जो घरेलू खपत को प्राथमिकता देने के लिए अमरीकी कम्पनियों को बढ़ावा देता है। सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अदार पूनावाला ने हाल के दिनों में वैश्विक ध्यान आकॢषत किया है। उन्होंने इस ज्वलंत मुद्दे को उजागर करने के लिए राष्ट्रपति बाइडेन को ट्वीट कर स्थिति से अवगत करवाया। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन तथा उनके पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रम्प ने युद्धकाल के रक्षा उत्पादन अधिनियम (डी.पी.ए.) को लागू किया था जिसके तहत अमरीकी कम्पनियों को घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए कोविड-19 वैक्सीन तथा पर्सनल प्रोटैक्टिव इक्विपमैंट्स (पी.पी.ईज.) के उत्पादन को प्राथमिकता देना था जोकि विश्व में सबसे ज्यादा प्रभावित देश था।


भारत दुनिया में दवाइयों का सबसे बड़ा निर्माता है। इसने 2021-22 के बजट में 35000 करोड़ रुपए को चिन्हित किया है और अन्य देशों को निर्यात तब तक रुका रहेगा जब तक कि घरेलू मांग पूरी नहीं हो जाती। केंद्र सरकार ने एस.आई.आई. को 3000 करोड़ तथा भारत बायोटैक को 1500 करोड़ की स्वीकृति दी थी जबकि यह मांग अप्रैल में की गई थी। एक आपात स्थिति के मद्देनजर वैक्सीन के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने खुलासा किया था कि वित्त मंत्रालय ने दोनों कम्पनियों को 4500 करोड़ रुपए एडवांस देने के प्रस्ताव को जांचा था। अप्रैल के शुरू में जब कोविड-19 के मामले बढऩे शुरू हुए तो वैक्सीन की मांग भी तेजी से बढ़ी जिसके चलते केंद्र सरकार से एस.आई.आई. ने 3000 करोड़ रुपए की ग्रांट मांगी थी। मगर इस पर हुई कार्रवाई लम्बित होने से लागत बढ़ गई।


एक संसदीय पैनल के समक्ष एक बयान के अनुसार स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में कहा कि सीरम का आऊटपुट करीब 70 से 100 मिलियन खुराकें प्रति माह हैं। मगर कम्पनी प्रति माह 60 से 70 मिलियन खुराकें उत्पन्न करने में समर्थ है। एस.आई.आई. के सी.ई.ओ. अदार पूनावाला ने हाल ही में राजकोषीय सहायता की जरूरत को बताया था। उन्होंने बैंक ऋण तथा अन्य एडवांस के रूप में फंड के दूसरे स्रोतों को देखने पर भी जोर दिया था। वैक्सीन की कमी की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री मोदी ने 80 देशों में वैक्सीन की आपूॢत करने के निर्णय का बचाव किया। विदेश मंत्री जयशंकर ने यह तर्क दिया था कि कोई तब तक सुरक्षित नहीं होगा जब तक कि हर कोई सुरक्षित नहीं है।


विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार की नई रणनीति के 2 मंतव्य हो सकते हैं। पहला गरीब और जरूरतमंद राष्ट्रों की मांग को मानवीय आधार पर पूरा किया जाए जो वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत पर आधारित है। दूसरा यह कि चीन की नकारात्मकता को भी विफल करना था जो श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए भारत के प्रयासों को बदनाम करना चाहता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वैक्सीन कूटनीति ‘टीका मैत्री’ का उद्देश्य जरूरतमंद राष्ट्रों का बचाव करना है। भारत सरकार अपने दूतावासों और उच्चायोगों को यह अनिवार्य करना अपेक्षित है कि वे सभी लाभाॢथयों की तरफ तब तक मदद का हाथ बढ़ाते रहें जब तक कि लक्ष्य को हासिल नहीं कर लिया जाता। चीन की तरह भारत को भी गरीब देशों को नि:शुल्क वैक्सीन उपलब्ध करवाने के लिए अपने स्रोतों में से अधिक फंडों का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवता को लेकर भारत की छवि और बेहतर होगी। अपने ऊपर कोविड फैलाने के लगे आरोपों से मुक्ति पाने के लिए चीन इस समय अपनी छवि को सुधारना चाहता है।


अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की थी कि जी.डी.पी. 11.5 से 12.5 तक बढ़ेगी। मगर अब इसके सिकुडऩे का खतरा मंडरा रहा है। महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्य भी बेहद प्रभावित हैं। आॢथक विशेषकों के अनुसार पिछले वर्ष फैक्टरियों तथा व्यापारिक संस्थानों पर पाबंदियों के चलते 9 मिलियन लोगों ने नौकरियां खोई थीं। औद्योगिक उत्पादन भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है जो वित्तीय वर्ष 2021 के लिए 3.6 प्रतिशत न्यूनतम रिकार्ड किया गया है। पर्यवेक्षकों का यह भी मानना है कि चीन भारतीय वैक्सीन के खिलाफ एक झूठा प्रचार कर रहा है। (के.एस.तोमर)

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