‘क्या 8 बजट सक्षम होने के लिए पर्याप्त नहीं?’

Edited By ,Updated: 01 Feb, 2021 04:38 AM

is 8 budget not enough to be able

यह मोदी सरकार का 8वां बजट होगा। हमें बताया गया है कि इस वर्ष वस्तुओं और सेवाओं का सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) (मतलब अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक) 11 प्रतिशत से अधिक यानी कि अप्रैल 2020 तथा मार्च 2021 की अवधि के बीच...

यह मोदी सरकार का 8वां बजट होगा। हमें बताया गया है कि इस वर्ष वस्तुओं और सेवाओं का सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) (मतलब अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक) 11 प्रतिशत से अधिक यानी कि अप्रैल 2020 तथा मार्च 2021 की अवधि के बीच के समय से ज्यादा रहेगा। पिछले वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया था कि चालू वर्ष में विकास दर 6 प्रतिशत रहेगी। इसकी बजाय यह माइनस 7.7 प्रतिशत रही। 

इस वर्ष सरकार को फिर से यह दावा करने का मौका मिलेगा कि भारत ‘‘सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है।’’ क्योंकि माइनस आंकड़ों से हमारे पास 2019 तथा 2022 के बीच 2 वर्षों के लिए 2.2 प्रतिशत की मामूली वृद्धि होगी। यह नकारात्मक से सकारात्मक में बदलाव इस भ्रम के चलते होगा कि देश में एक रिकार्ड वाली वृद्धि होगी जोकि फर्जी है। सरकार ने इस सप्ताह भी कहा था कि 2019-20 में वृद्धि जो इससे पहले 4.2 प्रतिशत थी वास्तव में 4 प्रतिशत थी। यह वास्तव में क्षण भर थी। यह उससे कम है लेकिन हमें अभी के लिए इसे छोड़ देना चाहिए। क्या हम समझ सकते हैं कि हम प्रधानमंत्री मोदी से नफरत करते हैं या उनके भक्त हैं। 

क्या हमारे पास किसी भव्य कहानी या मास्टर प्लान का कोई विचार है? वास्तविकता यह है कि ऐसा हमारे पास नहीं है। मोदी की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पर जवाब देने वाले हमारे पास एक मित्र के शब्दों के अनुसार मेक इन इंडिया किसे याद है? यह एक शेर का शानदार लोगो है जो घटनाओं और शृंखलाओं के साथ साहसपूर्वक आगे आया था। मेक इन इंडिया का तर्क यह था कि भारत बहुत हद तक सेवाओं पर निर्भर था जबकि उसने जी.डी.पी. के आधे से अधिक हिस्से को केवल 25 प्रतिशत रोजगार में योगदान दिया। विर्निर्माण का हिस्सा बढ़ने से हमारे पास औपचारिक क्षेत्र में अधिक रोजगार होना चाहिए था। 

खैर, ‘मेक इन इंडिया’ की लांङ्क्षचग के बाद जी.डी.पी. का हिस्सा वास्तव में 15 प्रतिशत से घट कर 14 प्रतिशत तथा कोविड के बाद निश्चित तौर पर 13 प्रतिशत हो गया। बेरोजगारी ने स्वाभाविक रूप से विपरीत दिशा देखी जो मोदी से पहले 4 प्रतिशत, फिर 6 प्रतिशत और उसके बाद 9 प्रतिशत हो गई। यह आंकड़ा वास्तव में सही नहीं है क्योंकि हम सबसे न्यूनतम ऐतिहासिक श्रम बल भागीदारी दर पर हैं।

मतलब यह कि जिन लोगों के पास कोई नौकरी नहीं है और वे काम की तलाश में नहीं हैं, उन्होंने उम्मीद छोड़ दी है। यह वह निराशा है जिसके परिणामस्वरूप पूरे देश में बड़े पैमाने पर आंदोलन हो रहे हैं। जैसा कि हम वर्तमान दौर में देख रहे हैं। मूल ङ्क्षबदू पर लौटने के लिए 8 बजट काफी हैं जो महान सुधारक तथा पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव से अधिक हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के तौर पर कम या ज्यादा जिन्हें महान उदारवादी के रूप में देखा गया था। 

लोग यह नहीं जानते कि वाजपेयी के नेतृत्व में जनसंघ ने 2000 रुपए में सभी भारतीयों के वेतन का भुगतान करने का वायदा किया था और कहा था कि सरकार उस पर आने वाली सभी आय लेगी (इसका विवरण मेरी पिछली किताब ‘आवर हिंदू राष्ट्र’)। वाजपेयी ने यह भी कहा था कि पार्टी भारतीयों को केवल एक हजार वर्ग गज जमीन या इससे कम पर घर बनाने के लिए बाध्य करेगी।

इसी तरह की समाजवादी स्थिति से उसी वाजपेयी ने एक ऐसी सरकार का नेतृत्व किया जो इससे पहले आए किसी भी व्यक्ति के निजीकरण को उन्मुख करती थी। अटल बिहारी वाजपेयी के 2004 के अभियान को, ‘इंडिया शाइङ्क्षनग’ का शीर्षक दिया गया था क्योंकि उनका मानना था कि उनकी आर्थिक नीतियां काफी मजबूत थीं और उनके लिए पर्याप्त थी ताकि उन पर चल सकें। वाजपेयी चुनाव हार गए लेकिन ऐसा नहीं था कि वह अपनी नीतियों के बारे में गलत थे। वे निश्चित रूप से काफी उल्लेखनीय थे। क्या हम 2014 के बाद भारत में जो घटा उसके बारे में वही कह सकते हैं? 

नीति आयोग के पहले प्रमुख वह व्यक्ति थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन यह कहते हुए बिताया कि खुला और अप्रतिबंधित मुक्त व्यापार एक राष्ट्र के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को जल्दी से आगे बढ़ाने का एकमात्र तरीका था। उस व्यक्ति यानी अरविंद पनगढिय़ा को यह याद करने के लिए छोड़ दिया गया कि आज की नीति क्या है जो मुक्त व्यापार के बिल्कुल विपरीत है। आत्मनिर्भर का अर्थ है आयात प्रतिस्थापन जिसका मतलब यह है कि सस्ते विदेशी आयात पर उच्च दरों पर कर लगाया जाता है ताकि भारतीय कम्पनियां भारतीयों को ऊंची कीमतों पर बेच सकें। क्या यह अच्छा अर्थशास्त्र है? पनगढिय़ा कहते हैं नहीं। लेकिन अब हम यही कर रहे हैं जहां से मोदी ने शुरूआत की थी। 

8 बजट पर्याप्त समय है जो पर्याप्त से भी अधिक है। शायद सक्षम होने के लिए यह काफी था। यह ऐसी जगह है जहां पर भारत था और यह वह जगह है जिसकी तरफ हम बढ़ रहे हैं। आज कोई भी जिसमें सरकार के अंदर के लोग भी शामिल हैं इस वाक्य के रिक्त स्थान को भर सकते हैं। ऐसा नहीं है क्योंकि नीति और कहानी वर्णन करने के लिए जटिल नहीं हैं। ऐसा इस कारण है क्योंकि देश में कोई बड़ी नीति ही नहीं। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं इसे बनाया और शिफ्ट किया जा रहा है और बदला भी जा रहा है। ऐसा विश्वास है कि यह विशेष बजट ‘गेम चेंजर’ साबित होगा जिसका भारत ने हमेशा इंतजार किया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा एक भाषण प्रस्तुत करने के बाद आप फिर से वही सुनेंगे जो व्यर्थ साबित होगा।-आकार पटेल

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8

Related Story

    Trending Topics

    IPL
    Royal Challengers Bengaluru

    190/9

    20.0

    Punjab Kings

    184/7

    20.0

    Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

    RR 9.50
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!