Share Market Crash: तीसरे दिन भी गिरा शेयर बाजार, जानें गिरावट की 5 बड़ी वजहें

Edited By Updated: 11 Jul, 2025 03:32 PM

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भारतीय शेयर बाजार में शुक्रवार, 11 जुलाई को लगातार तीसरे दिन गिरावट देखने को मिली। बीएसई सेंसेक्स 689 अंक या 0.83% टूटकर 82,500 के स्तर पर बंद हुआ, जबकि एनएसई निफ्टी 205 अंक या 0.81% की गिरावट के साथ 25,149 पर आ गया। बाजार की इस गिरावट के पीछे कई...

बिजनेस डेस्कः भारतीय शेयर बाजार में शुक्रवार, 11 जुलाई को लगातार तीसरे दिन गिरावट देखने को मिली। बीएसई सेंसेक्स 689 अंक या 0.83% टूटकर 82,500 के स्तर पर बंद हुआ, जबकि एनएसई निफ्टी 205 अंक या 0.81% की गिरावट के साथ 25,149 पर आ गया। बाजार की इस गिरावट के पीछे कई घरेलू और वैश्विक कारण जिम्मेदार रहे।

जानिए बाजार में गिरावट की 5 मुख्य वजहें:

1. आईटी सेक्टर पर दबाव

TCS के कमजोर तिमाही नतीजों ने पूरे आईटी सेक्टर को नीचे खींच लिया। कंपनी का रेवेन्यू अनुमान से कम बढ़ा, जिससे निवेशकों में निराशा दिखी। नतीजतन, निफ्टी आईटी इंडेक्स में 1.5% तक की गिरावट आई और सभी 10 कंपनियों के शेयर लाल निशान में चले गए। विप्रो, महिंद्रा एंड महिंद्रा, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, और अपोलो हॉस्पिटल के शेयरों में भी 2.5% तक की गिरावट दर्ज की गई।

2. भारत-अमेरिका ट्रेड डील को लेकर अनिश्चितता

भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। अमेरिकी प्रशासन द्वारा भारतीय उत्पादों पर टैरिफ की रोक को 1 अगस्त तक बढ़ा दिया गया है। जैसे-जैसे यह तारीख नजदीक आ रही है, निवेशक सतर्क हो गए हैं जिससे बाजार पर दबाव बना।

3. कमजोर वैश्विक संकेत

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कनाडा पर 35% टैरिफ लगाने की घोषणा से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचैनी बढ़ी है। वॉल स्ट्रीट फ्यूचर्स में गिरावट देखी गई और एशियाई बाजारों में भी मिला-जुला रुख रहा। जापान और दक्षिण कोरिया के बाजार लाल निशान में रहे।

4. क्रूड ऑयल की कीमतों में तेजी

रूस पर संभावित नए प्रतिबंधों की आशंका के चलते कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आया। ब्रेंट क्रूड 0.35% बढ़कर 68.88 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया। चूंकि भारत अपनी तेल जरूरतों का बड़ा हिस्सा आयात करता है, इसलिए क्रूड की कीमतों में बढ़ोतरी से आयात खर्च बढ़ता है और महंगाई पर असर पड़ता है।

5. ट्रंप और फेडरल रिजर्व के बीच तनाव

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने फेडरल रिजर्व से ब्याज दरों में 3% तक की कटौती की मांग की है। जानकारों का मानना है कि अगर फेड राजनीतिक दबाव में निर्णय लेता है, तो यह उसकी स्वतंत्रता पर सवाल खड़े कर सकता है और वैश्विक निवेशकों का भरोसा डगमगा सकता है।
 
 

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