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सिंधु जल समझौते को एकतरफा रद्द करना मुश्किल

Edited By ,Updated: 05 Feb, 2023 04:10 AM

it is difficult to unilaterally cancel the indus water treaty

सिंधु नदी के इस पार रहने वाले सभी लोगों को हिन्दू के बयान पर केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान की आलोचना हो रही है। लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा ऐतिहासिक सच है।

सिंधु नदी के इस पार रहने वाले सभी लोगों को हिन्दू के बयान पर केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान की आलोचना हो रही है। लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा ऐतिहासिक सच है। सिंधु के नाम पर हिन्दुस्तान और इसकी 5 सहायक नदियों के नाम पर पंजाब का नामकरण हुआ। पंजाब की विरासत पर पाकिस्तान और भारत दोनों को नाज है। 

अनुच्छेद-370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर में निवेश और विकास के नए युग का आरंभ हो रहा है। जबकि पाकिस्तान में आर्थिक बदहाली के साथ राजनीतिक संकट बढ़ रहा है। कृषि, उद्योग, ऊर्जा और सिंचाई के प्रोजैक्ट्स के लिहाज से महत्वपूर्ण सिंधु नदी पर पाकिस्तान की अड़ंगेबाजी से दशकों पुराने जल समझौते पर विवाद होना दुखद है। पाकिस्तानी अड़ंगेबाजी से परेशान होकर संधि के अनुच्छेद-12 (3) के तहत भारत ने 25 जनवरी को नोटिस जारी करके पाकिस्तान को 90 दिन के भीतर संधि में बदलाव के लिए कहा है। भारत में अस्थिरता और आतंकवाद फैलाने वाला पाकिस्तान शायद ही ऐसे किसी संशोधन के लिए तैयार होगा। सिंधु नदी पर पाकिस्तान सरकार अगर बातचीत के लिए तैयार भी हो जाए तो वहां के कट्टरपंथी समूह इसका विरोध करेेंगे। 

संधि के अनुसार भारत में पानी का पूरा इस्तेमाल नहीं : देश की राजधानी दिल्ली में पानी की किल्लत के बाद हरियाणा और पंजाब से ज्यादा पानी की मांग होती है। दूसरी तरफ सिंधु जल समझौते के अनुसार भारत अपने हक का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहा। इस संधि में सिंधु नदी के अलावा 5 अन्य नदियों का पानी शामिल है। सतलुज, ब्यास और रावी तीन पूर्वी क्षेत्र की नदियों में सालाना 11 क्यूबिक कि.मी. जल के बहाव पर भारत का पूरा अधिकार है। भारत के इस्तेमाल के बाद बचे हुए जल को पाकिस्तान इस्तेमाल कर सकता है। पश्चिमी क्षेत्र की नदियों में सिंधु, झेलम और चिनाब नदियां शामिल हैं। इन नदियों में पूर्वी नदियों से बहुत ज्यादा पानी का बहाव होता है। सालाना 232$5 क्यूबिक कि.मी. जल बहाव में से भारत के हिस्से में 62$2 क्यूबिक कि.मी. और पाकिस्तान के हिस्से में 170$3 क्यूबिक कि.मी. पानी का हिस्सा आता है। 

जल मंत्रालय से सम्बद्ध संसदीय समिति की रिपोर्ट 5 अगस्त 2021 को संसद में पेश की गई। समिति के अनुसार सन् 1960 में समझौते के समय सिंचाई, बांध और हाइड्रोप्रोजैक्ट्स का सीमित दायरा था। इसलिए क्लाइमैट चेंज, ग्लोबल वार्मिंग जैसे नए खतरों के मद्देनजर सिंधु जल समझौते पर नए तरीके से पुनॢवचार की जरूरत है। संधि के अनुसार भारत पश्चिमी 3 नदियों में 3$ 6 मिलियन एकड़ फीट (एफ.ए.एफ.) पानी के भंडारण का ढांचा बना सकता है। इन्हें नहीं बनाने से उत्तर भारत के राज्यों के किसानों को बहुत नुक्सान होने पर समिति ने चिंता जाहिर की। 

समिति ने चीन, पाकिस्तान और भूटान के साथ हुई संधियों के तहत 20 हजार मैगावाट के पॉवर प्रोजैक्ट्स की सम्भावनाओं का आकलन करते हुए पाया कि भारत ने सिर्फ 3482 मैगावाट प्रोजैक्ट्स का निर्माण किया है। संधि के तहत भारत लगभग 13.43 एकड़ सिंचित भूमि का विकास कर सकता है। लेकिन पश्चिम की 3 नदियों से सिर्फ 7$59 लाख एकड़ भूमि ही सिंचित हो पाई है। भारत नदियों का केवल 20 फीसदी पानी ही इस्तेमाल कर पाता है। इन नदियों से पंजाब और राजस्थान की नहरों के माध्यम से किसानों के खेतों में पानी जाता है। नहरों की बदहाल स्थिति पर भी संसदीय समिति ने रोष व्यक्त किया था। 

नदी के पानी पर राज्यों का हक : भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची के अनुसार पानी राज्यों का विषय है। नदी जोड़ो परियोजना को सफल बनाने के लिए इसे संविधान की समवर्ती सूची में शामिल करने की सिफारिश की गई थी जिस पर अभी तक अमल नहीं हुआ। विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों ने सिंचाई प्रोजैक्ट्स के लिए 1951 में विश्व बैंक की फंडिग हेतु आवेदन किया था।  रावी नदी पर माधोपुर प्रोजैक्ट और सतलुज नदी पर फिरोजपुर सिंचाई प्रोजैक्ट बनाने पर पाकिस्तानी आपत्तियों के बाद नदी जल के बंटवारे पर विवाद शुरू हो गया। विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद सिंधु जल समझौते से दोनों देशों के बीच इस मामले पर विवाद कम हो गए। 

भारत की तरफ से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान की तरफ से राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने कराची में सितम्बर 1960 में समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। राज्यों को भरोसे में लिए बगैर भारत सरकार की इस संधि से जम्मू-कश्मीर राज्य के हितों को भारी चोट पहुंची थी। नेहरू सरकार द्वारा संसद से सिंधु-संधि की औपचारिक स्वीकृति नहीं लेने पर तत्कालीन सांसद अशोक मेहता ने विरोध दर्ज कराया था। लेकिन इसे लोकसभा अध्यक्ष ने 14 नवम्बर, 1960 को अस्वीकार कर दिया। कई दशक बाद 2003 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सिंधु-संधि को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया गया। सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले में एक पी.आई.एल. दायर हुई थी। उद्गम स्त्रोत होने के नाते सिंधु और सहायक नदियों पर भारत का विशेष अधिकार है। 

अगर भारत पानी को रोक दे तो पाकिस्तान में सूखे और भुखमरी की स्थिति हो जाएगी। लेकिन समझौते के अनुसार भारत को पानी के इस्तेमाल की इजाजत है, लेकिन नदियों के रुख को नहीं मोड़ा जा सकता है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार सिंधु-संधि को एकतरफा तरीके से बदलना या रद्द करना भी मुश्किल है।-विराग गुप्ता (वकील और अनमास्किंग वी.आई.पी. के लेखक)    

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