Trump tariff: ट्रंप सरकार को बड़ा झटका, अमेरिकी कोर्ट ने लगाई 'लिबरेशन डे' टैरिफ पर रोक

Edited By Anu Malhotra,Updated: 29 May, 2025 07:26 AM

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एक अमेरिकी व्यापार अदालत ने बुधवार को पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ (आयात शुल्क) को अमान्य ठहराते हुए रोक लगा दी है। यह फैसला तीन न्यायाधीशों की विशेष पीठ ने सुनाया, जिसने साफ कहा कि ट्रंप ने अपने संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण...

न्यूयॉर्क: एक अमेरिकी व्यापार अदालत ने बुधवार को पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ (आयात शुल्क) को अमान्य ठहराते हुए रोक लगा दी है। यह फैसला तीन न्यायाधीशों की विशेष पीठ ने सुनाया, जिसने साफ कहा कि ट्रंप ने अपने संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए यह नीति लागू की थी।

क्या थी 'लिबरेशन डे' टैरिफ नीति?
ट्रंप प्रशासन ने 2 अप्रैल 2025 को 'लिबरेशन डे' के मौके पर एक नई व्यापार नीति घोषित की थी, जिसके तहत अमेरिका में आने वाली लगभग सभी विदेशी वस्तुओं पर 10% से 145% तक का भारी शुल्क लगा दिया गया था। इस नीति का खास निशाना वे देश थे जिनका अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष अधिक है — जैसे चीन और यूरोपीय संघ।

अदालत ने क्यों लगाई रोक?
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रपति अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियों अधिनियम (IEEPA) का इस्तेमाल करते हुए केवल तभी टैरिफ लगा सकते हैं जब देश को कोई असाधारण और वास्तविक आपातकालीन खतरा हो। न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि इस तरह का खतरा न तो घोषित किया गया और न ही प्रमाणित हुआ, इसलिए यह कदम न केवल कानून के खिलाफ है बल्कि अमेरिकी संविधान का उल्लंघन भी है।

अदालत ने ट्रंप के 2 अप्रैल के कार्यकारी आदेशों को भी रद्द कर दिया, जिनके तहत भारी टैरिफ लगाए गए थे। अदालत ने यह भी कहा कि कांग्रेस ने कभी राष्ट्रपति को ऐसे व्यापक व्यापारिक बदलाव करने की असीम शक्ति नहीं दी है।

व्हाइट हाउस ने जताई नाराजगी, अपील की तैयारी में
अदालत के इस फैसले पर व्हाइट हाउस की प्रतिक्रिया तीखी रही। प्रवक्ता ने कहा कि राष्ट्रीय आपातकालीन परिस्थितियों में न्यायपालिका को कार्यपालिका के निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि निर्वाचित न्यायाधीशों को यह तय करने का अधिकार नहीं कि कौनसी आपात स्थिति कैसे सुलझाई जाए।

व्हाइट हाउस ने संकेत दिए हैं कि वह इस फैसले के खिलाफ उच्च अदालत में अपील करेगा। वहीं व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय राष्ट्रपति के व्यापारिक अधिकारों की सीमा तय करने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

 

 

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