पाकिस्तान को संकट से उबारना भारत के अपने हित में

Edited By ,Updated: 18 May, 2022 06:25 AM

it is in india s own interest to get pakistan out of trouble

पाकिस्तान बेहद संकट में है। भारत ने पहले दक्षिण एशिया में ‘मुस्लिम’ बंगलादेश और श्रीलंका जैसे देशों को बचाया है। तो फिर कोई कारण नहीं कि भारत एक ‘मुस्लिम’ पाकिस्तान की मदद क्यों नहीं कर सकता। हाल ही तक पाकिस्तान के शक्तिशाली आंतरिक मंत्री रहे शेख...

पाकिस्तान बेहद संकट में है। भारत ने पहले दक्षिण एशिया में ‘मुस्लिम’ बंगलादेश और श्रीलंका जैसे देशों को बचाया है। तो फिर कोई कारण नहीं कि भारत एक ‘मुस्लिम’ पाकिस्तान की मदद क्यों नहीं कर सकता। हाल ही तक पाकिस्तान के शक्तिशाली आंतरिक मंत्री रहे शेख रशीद ने चेतावनी दी है कि पाकिस्तान की परमाणु संपत्ति खतरे में है। उन्होंने यह निर्दिष्ट नहीं किया कि किस जोखिम में, लेकिन उन्होंने चुराए जाने के जोखिम के बारे में सोचा होगा। 

अब कौन पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को चुराना चाहेगा? यह टी.टी.पी., अल कायदा, आई.एस.आई.एस.-खोरासान, पाकिस्तान के घरेलू जिहादी नैटवर्क में से कोई एक या दुष्ट सेना अधिकारी हो सकता है। अगर कोई 1-2 परमाणु हथियारों पर हाथ साफ कर लेता है, तो वह पूरे देश को ब्लैकमेल कर सकता है। वे परमाणु हथियारों को बेचने पर भी विचार कर सकते हैं, लेकिन उन्हें कौन चाहेगा? 

एक पीढ़ी तक, यह माना जाता था कि सऊदी अरब पाकिस्तान से परमाणु हथियार खरीदेगा, लेकिन 2015 में, पाकिस्तान ने यमन में ईरान समर्थित हैती विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी अरब के सैनिकों के आने की निंदा की। नाराज सऊदी अरब ने इसराईल की ओर रुख किया। अगर ईरान परमाणु हमला करता है तो वह इसराईल पर निर्भर होगा न कि पाकिस्तान पर। पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के लिए बाजार में कोई और नहीं है। परमाणु चोरी करने वाले दुष्ट तत्व देश को अपने कब्जे में लेना और इसे एक जिहादी राज्य में बदलना चाहते हैं। पाकिस्तान पहले से ही आधा-जिहादी है, लेकिन क्या आप उसका पूरा स्वाद चखना चाहते हैं? एक जिहादी पाकिस्तान भारत को तुरंत परमाणु हथियार से धमकाएगा। क्या भारत ऐसा चाहता है? 

प्रधानमंत्री मोदी और नवाज शरीफ दोस्त हैं। मित्र वही जो मुसीबत में काम आए। मोदी के पास पाकिस्तान की मदद करने के लिए कई तंत्र हैं। व्यापार उनमें से एक कहा जाता है। लेकिन पाकिस्तान को व्यापार से कहीं अधिक तत्काल मदद की जरूरत है। बेशक व्यापार पाकिस्तान में माल की लागत को नाटकीय रूप से कम कर सकता है, लेकिन पाकिस्तान को भी भारतीय सामानों के सैलाब में बह जाने का जोखिम है। पाकिस्तानी सरकार भारत से आयातित वस्तुओं पर कर लगा सकती थी और इस तरह राजस्व अर्जित कर सकती थी। कुछ वर्षों में दो-तरफा व्यापार 10 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। 

पाकिस्तान को आसान शर्तों पर अरबों डॉलर की जरूरत है। 2010 में पाकिस्तान बाढ़ से तबाह हो गया था। मनमोहन सिंह ने इसे 25 मिलियन डॉलर का अनुदान देने की पेशकश की, लेकिन पाकिस्तान ने ‘हिंदू’ भारत से पैसा लेने से इंकार कर दिया। पैसा संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से भेजा जाना था। अब भी पाकिस्तान ‘हिंदू’ भारत की मदद में दोष निकाल सकता है। यह ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों को खरीदने में भी झिझक सकता है। पाकिस्तान को इतनी बुरी तरह से मदद की जरूरत है कि अगर किसी स्वीकार्य तीसरे पक्ष के माध्यम से भेजा जाता है तो वह भारतीय धन और सहायता ले लेगा। 

सवाल यह उठता है कि भारत पाकिस्तान से अपना पैसा कैसे वसूल करेगा? पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह अपनी रक्षा पर अथाह धन खर्च करता है। भारत का रक्षा-आधार चीन और पाकिस्तान के साथ दो मोर्चों पर युद्ध पर आधारित है। बेशक पाकिस्तान भारत के खिलाफ चीन को उकसाता है, लेकिन चीन भी भारत के खिलाफ पाकिस्तान का इस्तेमाल करता है। भारत ने चीन से हाथ मिला कर पाकिस्तान को शांत करने की कोशिश की थी। यह काम नहीं आया। पाकिस्तान से हाथ मिला कर चीन को डिफ्यूज क्यों नहीं किया? 

भारत की गरीबी इतनी तेजी से कम नहीं हो रही कि वह एक मध्यम आय वाला देश बन सके। प्रमुख कारणों में से एक वह राशि है जो भारत अपनी रक्षा पर खर्च करता है। यदि पाकिस्तान के साथ मैत्रिपूर्ण संबंध होते, तो दोनों देश अपने रक्षा खर्च को नाटकीय रूप से कम कर सकते थे। कई पाकिस्तानियों का मानना है कि भारत पाकिस्तान को तोड़ना चाहता है और इस तरह से अपनी पाकिस्तान समस्या का समाधान करना चाहता है। वे 1971 में पाकिस्तान के टूटने में भारत द्वारा निभाई गई कुटिल भूमिका का हवाला देते हैं। लेकिन एक ऐसा पाकिस्तान, जो भारत के खिलाफ नहीं है और जो मजबूत, स्थिर और एकजुट है, वह भारत के हित में है। यदि पाकिस्तान टूट जाता है तो भारत के लिए सीमा के दूसरी ओर से शरणार्थियों का सामना करना असंभव होगा। 

मोदी और नवाज दिल्ली, लाहौर और काठमांडू में मिल चुके हैं। उन्हें आपस में एक और बैठक की व्यवस्था करनी चाहिए। पाकिस्तान को यह निर्धारित करना चाहिए कि उसे क्या चाहिए और वह कैसे धन प्राप्त करना चाहता है और भारत को यथासंभव मदद करनी चाहिए। बीते वर्षों में, बंगलादेश को दक्षिण एशिया में अनुपयोगी रूप में देखा जाता था। भारत ने बंगलादेश को अरबों डॉलर का ऋण दिया। आज बंगलादेश एक अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत से आगे निकल रहा है। काश ऐसे सुखद परिणाम का पाकिस्तान को भी इंतजार हो। और उम्मीद है कि दोनों देशों की आजादी के 75वें वर्ष में शांति, दोस्ती और सहयोग की नई सुबह शुरू होने देंगे, जो कि अगले 75 साल के लिए ऐतिहासिक गुस्से और दुश्मनी को दूर रखेगी।-सुनील शरण

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