अजीब बात है... राम के नाम पर भी दंगे

Edited By ,Updated: 22 Apr, 2022 04:48 AM

it s strange  riots in the name of ram

भगवान राम शौर्य, शीलता और सौंदर्य की मूर्ति हैं। विश्व ‘रामराज्य’ की कल्पना संजोए बैठा है। राम हमारे आदर्श हैं, आस्था हैं, उनकी शोभायात्रा में दंगे भड़क उठे, यह सोच कर ही मानसिक अवसाद उभरने लगता है। वास्तव में हमारे सोचने के ढंग में ही

भगवान राम शौर्य, शीलता और सौंदर्य की मूर्ति हैं। विश्व ‘रामराज्य’ की कल्पना संजोए बैठा है। राम हमारे आदर्श हैं, आस्था हैं, उनकी शोभायात्रा में दंगे भड़क उठे, यह सोच कर ही मानसिक अवसाद उभरने लगता है। वास्तव में हमारे सोचने के ढंग में ही कहीं गड़बड़ है। हमने राम को भी हिन्दू-मुसलमानों का विषय मान लिया। 

राम तो सर्व-स्वीकार्य हैं। उनकी शोभायात्रा तो सारा समाज मिल कर निकाले। मुसलमान स्वयं राम का ध्वज क्यों न संभालें? यदि मुसलमान ऊंची आवाज से कहता है कि हिन्दुस्तान हमारे पूर्वजों का, हमारा अपना देश है तो राम बेगाने क्यों हो गए? दंगे क्यों? भाले, बर्छे, बम क्यों? दोनों पक्षों में सामंजस्य क्यों नहीं? राम की शोभायात्रा हो तो मुसलमान आमंत्रित क्यों न हों? सिख, जैन, बौद्ध राम के सम्मान में गौरव का अनुभव क्यों न करें। 

जहांगीरपुरी, दिल्ली की रामनवमी शोभायात्रा के समाचारों ने तो देश का सिर झुका दिया। यही कुछ मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक अर्थात देश के दूसरे स्थानों पर भी हुआ। दुख ज्यादा इस बात पर हुआ कि ये सब कुछ राम के नाम पर हुआ। किसने किया? हमने किया। हमने मतलब हम हिन्दुस्तानियों ने। हमारा देश तो है बाबे नानक का, महात्मा बुद्ध और महावीर जैन का, प्रचार करें इन महानपुरुषों की शिक्षाओं का और पैट्रोल बम बना कर फैंके हम भगवान राम की शोभायात्रा पर? ढिंढोरा तो रात-दिन इसका पीटें कि ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’, पर कालिख हम दंगे भड़का कर इसी हिन्दुस्तान पर पोत दें? 

भारत में हर छोटी-मोटी बात पर दंगे क्यों होते रहते हैं? हिन्दू को गम है कि मुस्लिम आतंकियों ने मोहम्मद बिन कासिम से लेकर मध्य युग तक प्रत्येक इस्लामी राजा ने हमें लूटा, हमारे मंदिर-मूर्तियां तोड़ीं, हमारी बहू-बेटियों की अस्मत से खिलवाड़ किया, मंदिरों पर मस्जिदें बना दीं, हमारी आस्था को तोड़ा, हमारा बलात् धर्मांतरण किया गया। नफरत तो हिन्दू के मन में स्वाभाविक है कि 1947 में जब मुसलमानों ने अपना अलग मुल्क पाकिस्तान ले ही लिया तो सारे मुसलमान वहां क्यों न चले गए? वे भारत में 5 करोड़ से 20 करोड़ क्यों हो गए? यह भाव हिन्दू के अंतर्मन में घर कर चुका है कि पाकिस्तान बना कर मुसलमानों ने हमारा सब कुछ छीन लिया। 

दूसरा, मुस्लिम समुदाय यह अभिमान 75 साल की आजादी के बाद भी नहीं छोड़ पा रहा कि उसने हजारों साल हिन्दुओं पर राज किया, आज वे हम पर राज कैसे कर सकते हैं? ये शोभायात्राएं हिन्दू समुदाय हमें चिढ़ाने के लिए निकालता है। हम राजे थे, गरीब से भी गरीब हो गए। हमारा मजहब, हमारा पहरावा, हमारा खान-पान कुछ भी तो हिन्दुओं से मेल नहीं खाता। हम एक अलग कौम हैं। हमें शरियत के कानूनों पर चलना है, हिन्दू हम पर अपना कानून लाद रहा है। मुसलमानों को नागरिकता कानून से चिढ़ है, उसे हिजाब चाहिए, मदरसे चाहिएं, कुरान चाहिए। खुली हिन्दू फिजाएं उसे पसंद नहीं। यही बातें दोनों समुदायों को निकट नहीं आने देतीं। हल यही है कि दो कदम तुम बढ़ो, दो कदम हम बढ़ें। 

मुसलमान यह क्यों नहीं समझता कि हमारे लिए बहिश्त (स्वर्ग) भारत ही है। हिन्दू क्यों नहीं सोचता कि अब हम 20 करोड़ मुसलमानों को बाहर नहीं निकाल सकते। सबको यदि यही रहना है तो सोच बदलनी होगी, अन्यथा दंगे होते रहेंगे। सोच बदलेगी तो देश बदल जाएगा। अन्यथा मैं दंगों के भयावह आंकड़े पेश कर दोनों सम्प्रदायों को आईना दिखाना चाहूंगा। 1954 से 1982 तक के सांप्रदायिक दंगों में ही 10,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। अब तक आप खुद अंदाजा लगा लें।

हाल ही में राम नवमी और हनुमान जयंती शोभायात्राओं के उपलक्ष्य में जो दंगे हुए हैं, उन्होंने पुन: अपने देश को चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। टैलीविजन पर जो दृश्य दिखाए जा रहे हैं, सचमुच उससे असली हिन्दुस्तानी का सिर शर्म से झुक जाता है। देश यह कह कर छुटकारा नहीं पा सकता कि ये दंगे-फसाद राजनेताओं का खेल है, वोटों की खातिर हो रहा है या कुछेक कहें कि यह ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ का नतीजा है। पहले अंग्रेज ‘डिवाइड एंड रूल’ से फसाद करवाता था, आज नेता करवा रहे हैं। यह सब कुछ चलता रहेगा, परंतु अपना हानि-लाभ हम सबको मिल कर सोचना है। 

मुसलमान सोच लें कि उन्हें इसी हिन्दुस्तान में जीना-मरना है। अत: राम भी अपने रहीम भी अपने। रमजान का महीना है, रोजे रखे हैं तो सोच भी रमजानी बनाओ। सारे भारतवासी मुसलमानों के अपने ही तो हैं। दंगा कोई भड़काए, नुक्सान तो तुम्हारे अपने हिन्दुस्तान का है। दंगों में क्या रखा है? अपने ही घरों को जला  कर क्या मिलेगा? अपने ही भाइयों का खून बहाने से क्या हमारा भला होगा? अपनी ही सम्पत्ति जला कर हम खुद को शर्मसार क्यों करें? सोच बदल डालो, समाज बदल डालो। फिर देखो कौन तुम्हारे भारत के आगे खड़ा होगा? दिल बड़ा तो करो। छोटे दिल से कोई बड़ा कैसे होगा? दूसरे का घर जला कर तुम अपने घर को कैसे बचाओगे?-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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