कश्मीर सिर्फ सैन्य समस्या नहीं है

Edited By ,Updated: 29 Dec, 2023 05:05 AM

kashmir is not just a military problem

विदेशों से प्रायोजित आतंकवाद और आंतरिक हिंसा से निपटने में दुनिया की किसी भी फौज से ज्यादा अनुभव रखने वाली भारतीय सेना के प्रमुख मनोज पांडे ने पुंछ की घटनाओं के बाद जो फैसले किए हैं उनसे कश्मीरियों के जख्मों पर फाहा लगेगा और वहां की नाराजगी जल्दी...

विदेशों से प्रायोजित आतंकवाद और आंतरिक हिंसा से निपटने में दुनिया की किसी भी फौज से ज्यादा अनुभव रखने वाली भारतीय सेना के प्रमुख मनोज पांडे ने पुंछ की घटनाओं के बाद जो फैसले किए हैं उनसे कश्मीरियों के जख्मों पर फाहा लगेगा और वहां की नाराजगी जल्दी शांत हो जाएगी, यह उम्मीद करनी चाहिए। 

खुद जाकर सारी चीजें देखना, जानना तो एक सामान्य ड्यूटी थी लेकिन पुंछ-राजौरी सैक्टर के प्रभारी ब्रिगेडियर कमांडर समेत 2 अधिकारियों को जांच पूरी होने तक वहां से हटाना और नए अधिकारी की तैनाती ज्यादा बड़ी चीज है। जांच चल रही है और उम्मीद करनी चाहिए कि अधिकारियों और जवानों को भी अपना पक्ष रखने का उचित मौका देने के साथ यह जल्दी ही दोषी लोगों को चिह्नित करने और सजा का सुझाव देने का काम भी पूरा करेगी। जाहिर तौर पर जांच के दायरे में इस सैक्टर में आतंकियों के हाथ सेना को होने वाले नुकसान का मुद्दा भी शामिल है। हम जानते हैं कि पहले एफ.आई.आर. दर्ज हो चुकी है। 

आतंकियों द्वारा घात लगाकर किए हमले में 4 जवानों के शहीद होने के बाद सेना की जवाबी कार्रवाई में 2 आतंकी मारे गए थे। बाकी की तलाश के लिए सेना ने जब पूछताछ के लिए कुछ लोगों को उठाया तो उनमें से 3 के मरने और बाकी के साथ भारी मारपीट का आरोप है। 3 लाशें मिलीं और जख्मी लोग भी सामने आए। उनका आरोप है कि ये मौतें सेना के दमन से हुईं और जख्म भी तभी लगे हैं। इसे लेकर घाटी एक बार फिर गरमाई थी। 

उम्मीद की जानी चाहिए कि सेना प्रमुख के फैसलों के बाद शांति कायम होगी। सुरक्षा बलों की गश्त और संख्या भी बढ़ाई गई है। अपने नौजवान साथियों की मौत से गुस्से में आकर संयम खोना और आतंकियों के बारे में जानकारी न मिलने के गुस्से में ज्यादा क्रूर व्यवहार करने की आशंका को खारिज नहीं करना चाहिए और तभी जांच भी हो रही है पर यहां यह सवाल उठाने में भी कोई हर्ज नहीं है कि जब आतंकी फौजी दस्ते पर हमला कर सकते हैं, नौजवानों को जबरन अपने आप्रेशन में भागीदार बना सकते हैं तो फौज के प्रति नफरत भड़काने के लिए क्या इस तरह की और हिंसा को अंजाम नहीं दे सकते। उनको भी सीधे पाक-साफ करार दिए जाने की जरूरत नहीं है और ग्रामीणों द्वारा उनको सहयोग करने के प्रमाण आने पर सेना की सख्ती को नाजायज कैसे ठहराया जा सकता है। और अगर पिछले वर्षों की तुलना में पाक सीमा से घुसपैठ, यहां फौजी ठिकानों और दस्तों को निशाना बनाने के साथ घाटी के ग्रामीण इलाकों में आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं तो वह इस बात की भी गवाही दे रही हैं कि मन से हों या बेमन से आतंकियों को स्थानीय समर्थन मिलने लगा है।

4 साल पहले जब धारा 370 हटाने से लेकर कश्मीर को 3 टुकड़ों में बांटने और नए परिसीमन समेत अनेक बड़े फैसलों के साथ पूरे इलाके में सशस्त्र बलों की तैनाती बढ़ाई गई थी तब स्थिति काफी शांत लगती थी। इसके साथ ही पाकिस्तान को शांत करने के लिए बालाकोट काफी प्रभावी लगता था। फिर आतंकी कार्रवाई होने पर फौज को भी फैसले करने की काफी आजादी मिल गई थी। उसका भी असर होगा ही। पर अब धीरे-धीरे घाटी अशांत होने लगी और फौजी इकबाल कम पडऩे लगा है। 

उधर जम्मू क्षेत्र के पीर पंजाल वाले इलाके से घुसपैठ की घटनाएं भी बढ़ी हैं और पाक सीमा रक्षक घुसपैठ करा रहे हैं इसके प्रमाणों का ढेर भी लगता गया है, पर वह एक जानी हुई सी चीज है और उसका जवाब देना आसान है। पर स्थानीय लोगों में बेचैनी और आतंकियों के लिए सहानुभूति बढऩा एकदम चिंता वाली बात है। जब किसी भी वजह से सामान्य लोगों को फौजी गुस्से का शिकार बनना पड़ेगा तो यह मर्ज तेजी से बढ़ता जाएगा। इसीलिए इस बार सेना प्रमुख द्वारा दिखाई गई तत्परता का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन जिस रफ्तार में घुसपैठ और आतंकी वारदातें बढ़ रही हैं उसमें सेना वाले समाधान और सावधानियों की बहुत साफ सीमाएं हैं। लाख आजादी मिलने के बाद भी सेना के कमांडर एक हद से ज्यादा बड़े फैसले नहीं कर सकते क्योंकि मामला सीधे सरहद पार से जुड़ा मिलता है। पिछले हफ्ते ही फौज पर जो हमला हुआ उसमें 4 जवान शहीद हुए और हमलावर जत्था 2 नागरिकों के शव लेकर पाक सीमा में भाग गया। 2 लाशों को बुरी तरह क्षत-विक्षत कर दिया गया। जवानों के हथियार लूट लिए गए। 

2018 से 2022 के दौरान अगर विभिन्न आतंकियों द्वारा की गई कार्रवाइयों में 174 नागरिक मारे गए थे तो इस साल सेना द्वारा की गई भिड़ंत/एनकाऊंटरों में 35 नागरिक मारे गए हैं। सेना के ठिकानों पर ड्रोन से हमला या उनके जरिए जासूसी कराने की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं। पिछले 15 महीनों में सेना की टुकडिय़ों पर पुंछ जैसा हमला भी देखने में आया है। नवम्बर में ही राजौरी में आतंकी ढूंढने के अभियान में 2 कैप्टनों समेत 4 जवान शहीद हुए थे। अप्रैल-मई में हुए दोहरे हमले में पुंछ में सेना के 10 जवान शहीद हुए थे। सेना का मानना है कि अभी करीब 100 आतंकी घाटी में सक्रिय हैं जिनमें 3 चौथाई विदेशी हैं, पर उनको स्थानीय समर्थन बढ़ता जा रहा है। और यहीं आकर साफ लगता है कि मामला सेना के संभालने वाला नहीं है। यह एक राजनीतिक मसला है और निष्पक्ष राजनीतिक फैसलों और कार्रवाइयों से ही इसका निदान होगा। संसद के अंदर या अदालतों में इसकी लड़ाई का अब ज्यादा मतलब नहीं है न वहां बहुत दावे करने का। (कहना न होगा कि यही चीज मणिपुर में भी दिखती है)। 

जमीन पर उतरकर फैसले करने, उसके हानि-लाभ को बर्दाश्त करने, जरूरी लगे तो पाठ्यक्रम सुधार करने का वक्त बीतता जा रहा है। 4 साल का समय कम थोड़े ही होता है और अगर ज्यादा देर होती जाएगी तो फौज की तरफ से चूक भी बढ़ेगी, आतंकी हौसला ही नहीं समर्थन भी बढ़ता जाएगा। देश भर में चुनाव होंगे और कश्मीरी लोग खामोश रहेंगे तो उनका अलगाव बढ़ेगा ही। धारा 370 हटाने के फैसले पर देश भर का लाभ-घाटा एक तरफ है, कश्मीरियों की राय ज्यादा महत्वपूर्ण है। वह जाहिर न होने और उसके अनुरूप पाठ्यक्रम सुधार किए बगैर आतंकवाद बढ़ेगा ही, सिर्फ भारी खर्च और फौज के इकबाल से मामला नहीं संभलेगा।-अरविंद मोहन
 

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