मोदी साहिब— ‘किसानां दियां मुश्कलां हल करो’

Edited By ,Updated: 13 Oct, 2020 02:12 AM

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किसान हमारे देश की रीढ़ की हड्डी है। अन्न देवता है। हमारी खेती का मालिक है। देश के रोजगार में 57'' इसी की भागीदारी है। वह रेल की पटरियों पर क्यों है? नैशनल हाईवे क्यों रोक रहा है? उसे सरकार वार्तालाप की मेज पर लाए। किसानों की समन्वय समिति को बाइज्जत...

किसान हमारे देश की रीढ़ की हड्डी है। अन्न देवता है। हमारी खेती का मालिक है। देश के रोजगार में 57' इसी की भागीदारी है। वह रेल की पटरियों पर क्यों है? नैशनल हाईवे क्यों रोक रहा है? उसे सरकार वार्तालाप की मेज पर लाए। किसानों की समन्वय समिति को बाइज्जत सरकार ने वार्ता का निमंत्रण तो भेजा है, मगर मोदी साहिब किसाना दियां मुश्कलां दा हल जल्दी करो। इससे पहले कि राजनीतिक पाॢटयां किसानी मसले पर अपनी-अपनी बिसात बिछाने लगें, केंद्र सरकार का दूत इनके पास पहुंच जाना चाहिए। 

प्रसिद्ध सूफी गायक, माननीय संसद सदस्य हंसराज हंस ने तो किसान जत्थेबंदियों को निवेदन कर ही दिया है कि आएं, मेरे साथ मोदी साहिब के पास चलें। वह वार्ता की मेज पर बैठाने को तैयार हैं। फिर किसान जत्थेबंदियां देर क्यों करें? किसान को शक है कि वर्तमान संसद के मानसून सत्र में पास कृषि संबंधी तीनों कानून खाद्य पदार्थों की सार्वजनिक प्रणाली को नष्ट कर देंगे। भारत की खाद्य सम्प्रभुता और सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा कर देंगे। बड़े-बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों की चढ़त हो जाएगी। ये तीनों पास किए गए कानून जमाखोरों, सट्टेबाजों और बाजारों के उतार-चढ़ावों से किसान को तबाह कर देंगे। 

यह कानून ‘प्रॉक्सी मार्ग’ है जिससे किसान अपने ही खेतों में मजदूर बन जाएंगे। क्योंकि भारत का किसान छोटा है, अनपढ़ है और वह बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों के ‘कान्टै्रक्ट’ की भाषा को समझ नहीं पाएगा। बड़ी-बड़ी कम्पनियों के मुकाबले किसान कमजोर है। किसान को शक है कि सम्पूर्ण कृषि क्षेत्र को बड़े-बड़े व्यवसायियों को सौंपने का षड्यंत्र है। सरकार अडानी-अम्बानी जैसे धनी-मानी उद्यमियों के हवाले किसानों को करके फसलों के समर्थन मूल्य  को छीन लेना चाहती है और बड़े प्रयत्नों से मंडीकरण का जो एक ढांचा किसान को सुरक्षा कवच के रूप में मिला था, उसे तोड़ देना चाहती है। 

यद्यपि किसान का शक निराधार है। न ही उपज का ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ सरकार खत्म करेगी, न ही ए.पी.एम.सी. (मंडीकरण व्यवस्था) खत्म करेगी। सरकार की मंशा सिर्फ इतनी कि ‘वन नेशन, वन मार्कीट’। बिचौलिए जो किसान की उपज को औने-पौने दामों पर खरीद कर उसका शोषण करते हैं-समाप्त हों। कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य संवद्र्धन और सुरक्षा कानून किसान की उपज के मूल्य को दोगुणा करने का प्रयास है। किसान जत्थेबंदियां यह भी याद रखें कि इन कानूनों के द्वारा सरकार ने किसान के सारे अधिकारों को सुरक्षित रखने का आश्वासन संसद के पटल पर दिया है जिससे सरकार कभी मुकर नहीं सकती। 

देश की पार्लियामैंट एक मंदिर है, इसमें कही गई हर बात सरकार द्वारा दिया गया वचन होता है। शायद मेरा निवेदन किसान जत्थेबंदियां समझ रही होंगी। इस पर भी बातचीत की मेज पर जाकर सरकार से सारी शंकाओं का समाधान किसान जत्थेबंदियां क्यों न करें? लोकतंत्र में वार्तालाप से ही समस्याएं सुलझाई जा सकती हैं। केंद्र सरकार कोई गैरों की सरकार नहीं, अपनी सरकार है। मोदी साहिब भला क्यों किसानों का अहित करेंगे? किसान बड़ा दिल करें। सरकार भी इन कानूनों को प्रतिष्ठा का प्रश्र न बनाए। दोनों पक्ष अपनी-अपनी शंकाएं टेबल पर बैठ कर सुलझाएं। किसानों की समस्याएं मैं बाखूबी जानता हूं। मेरे भी बाप-दादा किसान थे, क्या हुआ जो मैंने राजनीति के कारण अपने पुरखों की आठ बीघा जमीन बेच-बाच दी। किसानों की समस्याएं मुझसे सुनो। 

सरकार खेती पर खर्च कितना करती है? सिर्फ 3.7', 64' खेती वर्षा पर निर्भर है। वर्षा भी अनिश्चित। एक साल वर्षा हुई नहीं, किसान बेचारा मारा गया। दूसरे साल इतनी हुई कि जो बीजा था वह बह गया। तीसरे साल सामान्य बारिश हुई। किसान ने एक साल में तीन सालों का गुजारा किया। एक एकड़ धान पर किसान का खर्च होता है 20,000 रुपए। पांच एकड़ वाले को चाहिए एक लाख रुपया। बेचारा किसान उधार लेगा। 

ब्याज की दर होगी 24.36', खेत पर उसकी पत्नी की मेहनत तो किसी गिनती में ही नहीं। 52' से अधिक किसानों पर औसतन 47,000 रुपए प्रति परिवार कर्ज है। 90' किसान आढ़तियों पर निर्भर हैं। खेती करना घाटे का सौदा है। कृषि पर खर्च आय से अधिक है। एक एकड़ से कम भू-स्वामी खेती से 1308 रुपए प्रतिमाह कमाता है जबकि उसके परिवार का खर्च प्रतिमाह 5401 रुपए है यानी 4093 रुपए का घाटा वह कर्ज लेकर पूरा करता है। अढ़ाई एकड़ खेती वाला किसान भी नुक्सान में है, मैं तो कहूंगा 5 एकड़ खेती वाला किसान भी 28.5' घाटे में रहता है। 

अभी तो मैंने कृषि मजदूरी करने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति भूमिहीन लोगों का जिक्र ही नहीं किया। इन भूमिहीन लोगों का भी 42' कृषि पर ही निर्भर है। सरकार किसान के दर्द को समझे। अच्छा है किसान जत्थेबंदियों ने राजनीतिक पाॢटयों से अपने को दूर रखा। शिरोमणि अकाली दल जिसने अभी हाल में भारतीय जनता पार्टी से अपने को अलग किया है, अलग तौर पर अपना आंदोलन किसानों के हित में खड़ा करने में लगा है। तीन धार्मिक स्थानों से अपने-अपने जत्थे लेकर चंडीगढ़ को घेरने का प्रयास कर चुका है। ऐसा न हो कि किसानों की समन्वय समिति वार्तालाप करने में देर कर दे और अकाली दल उनसे उनके आंदोलन की बागडोर छीन ले। अन्नदाता की सदा जय हो।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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