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‘किसानों के प्रति मोदी का आधा-अधूरा रवैया’

Edited By ,Updated: 23 Jan, 2021 04:02 AM

modis half hearted attitude towards farmers

किसानों की हलचल कहां है? भविष्य के हर चरण के लिए हमें अपने हाथों को जोड़कर देखना होगा। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 3 नए कृषि कानूनों के संचालन पर रोक लगा दी है। एक महत्वपूर्ण कदम के तहत यहां

किसानों की हलचल कहां है? भविष्य के हर चरण के लिए हमें अपने हाथों को जोड़कर देखना होगा। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 3 नए कृषि कानूनों के संचालन पर रोक लगा दी है। एक महत्वपूर्ण कदम के तहत यहां तक कि केन्द्र सरकार ने गतिरोध को तोडऩे के लिए नए कानूनों को 18 महीने तक रोककर रखने की पेशकश की है। 

किसान यूनियनों ने कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग को नहीं छोड़ा है। उन्होंने 18 महीने तक कानूनों को रोकने के केन्द्र के प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर दिया है। एक दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि शासक वर्ग के एक भाग ने आंदोलनकारी किसानों को राष्ट्र विरोधी तथा खालिस्तान समर्थक कहा है। यह सत्तारूढ़ अभिजात्य वर्ग का अंधकारमयी पहलू दर्शाता है। 

अफसोसजनक बात है कि प्रधानमंत्री ने खुद को संवाद की इस सारी प्रक्रिया से दूर रखा है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि मोदी को कार्पोरेट घरानों के समर्थक के रूप में देखा जाता है। जबकि उन्हें खुद को जमीनी स्तर के किसानों की जीवन रेखा के तौर पर पहचानना चाहिए था। केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा था कि एक समाधान केन्द्र की किसानों से बातचीत के बाद ही निकल सकता है। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रस्तावित ज्वाइंट पैनल अपने महत्वपूर्ण कार्य को निभाता है। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लागू किए गए नए कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए की गई अपनी घेराबंदी को 50 दिनों से ज्यादा हो चुके हैं। मोदी उन किसानों की दुर्दशा के प्रति उदासीन हैं जो नई दिल्ली की सर्दी में कठिन समय है। क्या यह मुख्य रूप से प्रधानमंत्री मोदी की व्यापारी समर्थित मानसिकता है? शायद। आंदोलनकारी किसानों को डर है कि नई कृषि कानून विशाल कार्पोरेशन्स की मदद करेंगे और उनकी दया पर छोड़ देंगे। प्रदर्शनकारियों के मन में यह भय है कि नए कृषि कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य को यकीनी बनाने के बिना सिस्टम को ध्वस्त कर देंगे। नि:संदेह प्रशासन का मानना है कि नए कानून किसी भी खरीददार को किसानों से सीधे तौर पर फसल खरीदने की अनुमति देते हैं। इससे दशकों पुरानी बिचौलिए की प्रथा समाप्त होगी जिनके अपने हित हैं। 

मोदी सरकार के साथ समस्या किसानों की वास्तविक समस्याओं के प्रति आधे-अधूरे रवैये की है। यह मुख्यत: इस कारण है कि यहां पर मुख्य रूप से कड़ी जमीनी हकीकतों को समझने की अनुपस्थिति है। किसानों के सामने आने वाली बुनियादी चुनौतियों को दूर करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति भी चाहिए। यह चुनौतियां गिरता जल-स्तर, कीटनाशकों की ओवरडोज तथा मिट्टी का बढ़ता कटाव है। किसानों की आय उस समय तक दोगुनी नहीं हो सकती जब तक कि सभी समस्याओं के पहलुओं जिनमें किसानों द्वारा झेला जाने वाला वित्तीय दबाव भी है, को हल नहीं कर लिया जाता। इसके अलावा वेयरहाऊस, कोल्ड स्टोरेज सहूलियत तथा प्रसंस्करण इकाइयों का अपर्याप्त होना है। इन समस्याओं में से किसी को प्रधानमंत्री के 3 कानूनों में जगह नहीं दी गई। 

यह भी उल्लेख किया जा सकता है कि भारतीय कृषि छोटे तथा सीमांत किसानों का घर है। इसमें कोई शंका नहीं कि कृषि विकास का भविष्य टिकाऊ खाद्य समस्या के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। वास्तव में छोटे तथा सीमांत किसान किसानों का 85 प्रतिशत बनते हैं। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। 58 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण घर कृषि पर निर्भर हैं क्योंकि उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि ही है। करीब 25 प्रतिशत भारतीय किसान गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं। ऐसा कहा गया है कि 52 प्रतिशत कृषि से जुड़े घर कर्ज को झेलते हैं जो 3 मुख्य फसलें गेहूं, चावल तथा कपास के एम.एस.पी. को लेकर है। इन कठोर वास्तविकताओं से मोदी सरकार को अवगत कराना होगा ताकि वह किसानों की दुर्दशा को देख सके और उनके लिए अल्पावधि तथा दीर्घावधि के समाधानों को ढूंढ निकाला जाए। 

इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। मुझे यह कहते हुए खेद है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन किसानों के परिवारों के यहां दौरा भी नहीं किया जिन्होंने आत्महत्या कर ली है। यह संघर्ष के प्रति उनकी नकारात्मक मानसिकता को दर्शाता है। यह दयनीय है। अपनी रोजी-रोटी के लिए 700 मिलियन से ज्यादा लोग अपने साधनों के लिए कृषि पर निर्भर हैं। प्रोद्यौगिकी और सामान्य प्रगति ने उनके जीवन की गुणवत्ता को बेहतर नहीं बनाया है। उनके भविष्य का क्या होगा यदि बड़े किसान तथा कारोबारी लोग कृषि के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। 

दिलचस्प बात है कि आर.एस.एस. महासचिव सुरेश भैयाजी जोशी ने एक साक्षात्कार में कहा है कि समाज के स्वास्थ्य के लिए लम्बे समय तक चलने वाला आंदोलन ठीक नहीं है। इसलिए वह चाहते हैं कि दोनों पक्ष एक समाधान को खोजने के लिए एक बीच का रास्ता अपनाएं। मैं दृढ़ता से महसूस करता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी को किसानों की दुर्दशा के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और छोटे तथा सीमांत किसानों का जीवन ऊपर उठाने के लिए नई रेखाओं को खींचना चाहिए। उन्हें कोई विस्तृत योजना बनानी चाहिए और किसानों को ऋण/ पूंजी, परामर्श सेवाएं तथा विपणन वाले रास्ते उपलब्ध कराने चाहिएं। क्या मोदी ग्रामीण भारत की जमीनी स्तर की वास्तविकताओं के लिए अपना नजरिए बदलेंगे?-हरि जयसिंह
 

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