गणेशोत्सव के हर्षोल्लास में असावधानी के कारण 40 से अधिक मौतें

Edited By ,Updated: 15 Sep, 2019 01:20 AM

more than 40 deaths due to inadvertence in harshallas of ganeshotsav

प्रतिवर्ष देश में 10 दिवसीय गणेशोत्सव अपूर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष भी देश-विदेश में गणपति उत्सव धूमधाम से मनाने के बाद बाजे-गाजे के साथ उन्हें विदा किया गया। परंतु इस दौरान अनेक स्थानों पर प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान होने...

प्रतिवर्ष देश में 10 दिवसीय गणेशोत्सव अपूर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष भी देश-विदेश में गणपति उत्सव धूमधाम से मनाने के बाद बाजे-गाजे के साथ उन्हें विदा किया गया। परंतु इस दौरान अनेक स्थानों पर प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं में कई बच्चों सहित 40 से अधिक लोगों के प्राण चले गए। 

भोपाल के खटलापुरा घाट पर 13 सितम्बर को गणपति विसर्जन के दौरान गणपति प्रतिमा बड़ी होने और नाव पर अधिक लोगों के सवार होने के कारण संतुलन बिगडऩे से नाव डूब गई और परवेज नामक 12 वर्षीय बच्चे सहित 11 लोगों की मृत्यु हो गई। महाराष्ट्र में गणेश विसर्जन के दौरान 12 सितम्बर को पूरे प्रदेश में 18 लोगों की डूबकर मौत हो गई तथा कुछ लोग लापता बताए जाते हैं। दिल्ली में भी गणेश प्रतिमा के विसर्जन के दौरान यमुना में नहाने की जिद में चार कालेज छात्रों के प्राण चले गए। पुलिस के अनुसार 7 छात्र गणेश विसर्जन के लिए अलीपुर के पल्ला गांव के निकट यमुना नदी में आए जहां विसर्जन की अनुमति नहीं थी लेकिन ये स्वयंसेवकों से नजरें बचा कर यमुना में नहाने के लिए दूसरी जगह चले गए। 

इस दौरान एक छात्रा का पैर फिसल गया और वह डूबने लगी तो उसने दूसरी छात्रा को पकड़ लिया और जब वे दोनों डूबने लगीं तो दो छात्र उन्हें बचाने के लिए आगे आए और वे चारों गहरे पानी में डूब गए। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में विसर्जन के दौरान डूबने से 2 लोगों की मृत्यु हुई। इससे पूर्व 10 सितम्बर को कर्नाटक के कोलार गोल्ड फील्ड्स के पास मरघटा गांव में 4 लड़कियों और 2 लड़कों सहित 6 बच्चों की डूबने से मृत्यु हो गई। इसके अलावा अन्य स्थानों पर भी इस तरह की घटनाओं में होने वाली मौतों की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। 

निश्चय ही हर्ष और उल्लास के पर्व का इस प्रकार शोक पर्व में बदल जाना अत्यंत दुखद है परंतु इसके लिए हमारी अपनी जल्दबाजी, हड़बड़ी, सब कुछ फटाफट निपटाने की प्रवृत्ति और अपने मन पर अंकुश न रख कर ‘जो होता है होने दो परवाह नहीं’ वाला दृष्टिïकोण ही जिम्मेदार है जबकि ऐसे भीड़भाड़ वाले आयोजनों में जोश के साथ-साथ होश को कायम रखना तथा होश और मन पर नियंत्रण और धैर्य रखना बहुत जरूरी है।—विजय कुमार 

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