भारत में आर्थिक असमानता को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम

Edited By ,Updated: 10 Apr, 2024 04:49 AM

myths are being spread about economic inequality in india

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में जहां हर नागरिक के लिए आगे बढऩे के समान अवसर हैं, वहीं विदेशों के कथित बुद्धिजीवियों व रिसर्च एजैंसियों द्वारा भारत में धन-सम्पन्नता की असमानता को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम पर बहस छिडऩा स्वाभाविक है।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में जहां हर नागरिक के लिए आगे बढऩे के समान अवसर हैं, वहीं विदेशों के कथित बुद्धिजीवियों व रिसर्च एजैंसियों द्वारा भारत में धन-सम्पन्नता की असमानता को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम पर बहस छिडऩा स्वाभाविक है। हाल ही में पैरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की ‘द वल्र्ड इनइक्वलिटी लैब’ (डब्ल्यू.आई.एल) की रिपोर्ट ‘इंकम एंड वैल्थ इनइक्वैलिटी इन इंडिया,1922-2023 ‘द राइज ऑफ द बिलियनर्स राज’ में लिखा गया है कि  2022-23 में भारत की एक प्रतिशत आबादी के पास देश की 40.1 प्रतिशत धन-संपत्ति थी, जो वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा है। जबकि क्रैडिट सुइस ग्लोबल वैल्थ रिपोर्ट बताती है कि रूस की एक प्रतिशत आबादी के पास 60 प्रतिशत धन संपत्ति और ब्राजील की एक प्रतिशत आबादी के पास देश की 49.6 प्रतिशत धन-संपन्नता है। 

साल 2023 में स्विट्जरलैंड के दावोस में वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम(डब्ल्यू.ई.एफ.) की वार्षिक बैठक में भी भारत में संपन्नता की असमानता रिपोर्ट -‘सर्वाइवल ऑफ द रिचैस्ट’ जारी करते हुए रिसर्च संस्था ऑक्सफैम इंटरनैशनल ने कहा कि ‘भारत के एक प्रतिशत अमीर लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 40.5 प्रतिशत है।’ ऑक्सफैम,द वल्र्ड इनइक्वलिटी लैब और क्रैडिट सुइस ग्लोबल वैल्थ की विरोधाभासी रिपोर्टस में  बगैर किसी तथ्य व तर्क के भारत को ही निशाना क्यों बनाया जा रहा है? विदेशी एजैंसियों के एकतरफा निष्कर्ष यह संकेत देते हैं कि तेजी से बढ़ती भारत की अर्थव्यवस्था से कई देशों को ईष्र्या है इसलिए धन-संपन्नता की असमानता को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। 

एजैंसियों द्वारा रिसर्च में दिए गए आंकड़ों का आधार,जरिया व निष्कर्ष तर्कसंगत नहीं है पर दुर्भाग्य से भारत निशाने पर है। दुर्भावना से प्रेरित कोई भी रिसर्च रिपोर्ट सच्चाई के करीब नहीं होती है इसलिए इन पर बहस को एक नतीजे तक पहुंचाना जरूरी है। जिस देश में 2011 के बाद अभी तक सटीक जनगणना नहीं हुई वहां की अनुमानित 140 करोड़ की आबादी की आय व सम्पत्ति की सही जानकारी विदेशों में बैठी रिसर्च एजैंसियां भला कैसे जुटा सकती हैं? एक साजिश के तहत गलत आंकड़ों के जरिए भारत में संपन्नता की असमानता के आधार पर समाज को बांटने की साजिश है। 

भारत में संपन्नता की असमानता की हकीकत जानना लगभग असंभव है क्योंकि इसका पता लगाने के लिए अभी तक कोई ठोस आंकड़े ही उपलब्ध नहीं हैं। दूसरा एक व्यक्ति की निजी संपन्नता की तुलना में उसकी मलकियत वाली फर्म या कम्पनी की धन-सम्पत्ति पूरी तरह से एक अलग है। प्रत्येक कॉर्पोरेट में बैंकों और अन्य वित्तीय एजैंसियों समेत कई हिस्सेदारों के निवेश के हिसाब से हिस्सेदारी होती है। कुल निवेश और उस पर रिटर्न को किसी एक व्यक्ति की संपन्नता नहीं मानी जा सकती। 

कारोबार में भारी निवेश पर रिटर्न पा रहे कारोबारियों को संपन्नता में असमानता का जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है? इन पर वैल्थ टैक्स और उत्तराधिकार टैक्स के लिए शोर क्यों मचाया जा रहा है? पहले से ही ये 22 प्रतिशत कार्पोरेट टैक्स, इंपोर्ट-एक्सपोर्ट कस्टम ड्यूटी,जी.एस.टी और इंकम टैक्स समेत 20 से अधिक टैक्स,लाइसैंस फीस व सैस चुका रहे हैं। इससे भी आगे बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर बढ़ाकर न केवल देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं बल्कि शुद्ध लाभ का 2 प्रतिशत फंड ‘कार्पोरेट  सोशल रिस्पांसिबिलिटी’ (सी.एस. आर) के तहत गरीबों की शिक्षा,स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं पर खर्च कर रहे हैं। 

धन-संपन्नता की असमानता का शोर मचाने वाले कथित बुद्धिजीवी यह असमानता दूर करने,आर्थिक विकास व रोजगार को बढ़ावा देने के नाम पर नई टैक्स प्रणाली लागू करने व 2 प्रतिशत सुपर टैक्स लगाने का सुझाव दे रहे हैं। जबकि देश की जी.डी.पी में बढ़ौतरी के साथ कॉरर्पोरेट का विकास भी स्वाभाविक है। साल 1984 में भारत की जी.डी.पी. में वस्तुओं व सेवाओं के एक्सपोर्ट का 6.3 प्रतिशत योगदान साल 2022-23 में बढ़कर 22.79 प्रतिशत होने से साफ संकेत है कि इस बढ़ौतरी के साथ देश का सामाजिक-आर्थिक ताना-बाना भी समृद्ध हुआ है। 

साल 1991 में देश के आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत से देश की अर्थव्यवस्था को ग्लोबल स्तर आगे बढ़ाने में मदद मिली । 1991 से पहले गरीबी से जूझ रहे भारत में दुर्लभ अरबपति आज आम बात है। फोब्र्स की रिसर्च मुताबिक साल 1991 में एक अरब अमरीकी डॉलर से अधिक की संपति वाला केवल एक भारतीय था जो 2022 में बढ़कर 162 हो गए हैं। अरबपतियों का बढऩा किसी देश के लिए बुरी बात नहीं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था व रोजगार के लिए सुखद संकेत है। नीति आयोग के दावे को मानें तो देश में 90 के दशक की घोर गरीबी अब इतिहास हो गई है। आयोग के मुताबिक साल 2013-14 से लेकर 2022-23 तक 25 करोड़ नागरिक गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं। 

कारोबारी निशाने पर क्यों? एक सोची-समझी साजिश से प्रेरित धारणा फैलाई जा रही है कि कारोबारियों ने धन-संपन्नता की असमानता को बढ़ाया है। भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया की पांचवीं सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था के तौर पर शुमार कराने में योगदान देने वाले देश के कारोबारियों के खिलाफ तर्कहीन अंतर्राष्ट्रीय एजैंसियां  संघर्ष के माहौल को बढ़ावा दे रही हैं। देश में जाति,धर्म, भाषा, क्षेत्रवाद और नस्ल के आधार पर असमानताओं के बीच धन-संपन्नता की असमानता का भ्रम फैला कर हमारी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की साजिश रची जा रही है। 

‘वल्र्ड पावर्टी क्लॉक’ के मुताबिक भारत में अति गरीबी घटकर 3 प्रतिशत से भी कम रह गई है। ऐसे में विदेशी रिसर्च एजैंसियों द्वारा भारत में संपन्नता की असमानता के नाम पर फैलाए जा रहे भ्रम का भंडाफोड़ करना सरकार के लिए इसलिए भी जरूरी है क्योंकि देश से गरीबी घटाने के बहुप्रचारित नारे- ‘सबका साथ,सबका विकास’ के प्रति सरकार की वचनबद्धता पर भी सवाल उठाया जा रहा है।  आगे की राह कई रिसर्च एजैंसियों के मुताबिक अभी भी दुनिया में सबसे अधिक 23 करोड़ गरीब परिवार भारत में हैं। गरीबी और धन-संपदा की असमानता को कम करने के लिए अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियों के अवसर पैदा करना जरूरी है। इसके लिए कारोबारियों के बड़े पैमाने पर योगदान को और अधिक प्रोत्साहन चाहिए।

सरकार को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश के प्राकृतिक संसाधनों में प्रत्येक व्यक्ति को हिस्सेदारी का संवैधानिक अधिकार है, इससे भी संपन्नता की असमानता घटाने में मदद मिलेगी। भारत में गरीबी रेखा से नीचे (बी.पी.एल) 
परिवारों की पहचान फिर से की जाए। कल्याणकारी नीतियों के जरिए गरीबी घटाना सरकार की जिम्मेदारी है पर इन नीतियों को कारगर ढंग से लागू करने के लिए भ्रष्टाचार मुक्त जवाबदेह पारदर्शी सिस्टम की जरूरत है। (लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एंव प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)

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