अब सिख राजनीति की ओर चले सुखपाल सिंह खैहरा

Edited By ,Updated: 26 Jan, 2024 05:51 AM

now sukhpal singh khaira moves towards sikh politics

कभी आम आदमी पार्टी के विधायक और विधानसभा में विपक्षी दल के नेता रहे कांग्रेस विधायक सुखपाल सिंह खैहरा ने विभिन्न मामलों में जमानत पर बाहर आने के बाद सिख मुद्दों पर बयान दिया है। ऐसा  प्रतीत होता है कि खैहरा कांग्रेस की सिखों के प्रति नीति से हट कर...

कभी आम आदमी पार्टी के विधायक और विधानसभा में विपक्षी दल के नेता रहे कांग्रेस विधायक सुखपाल सिंह खैहरा ने विभिन्न मामलों में जमानत पर बाहर आने के बाद सिख मुद्दों पर बयान दिया है। ऐसा  प्रतीत होता है कि खैहरा कांग्रेस की सिखों के प्रति नीति से हट कर सिख सियासत करेंगे। हालांकि सुखपाल सिंह खैहरा आज कांग्रेस पार्टी के विधायक हैं, लेकिन वह पूर्व अकाली नेता और पंजाब के पूर्व शिक्षा मंत्री स्व. सुखजिंद्र सिंह के बेटे हैं, जो सिख मांगों के समर्थक थे और भारत के संविधान को सिख विरोधी मानते थे। सुखपाल सिंह खैहरा ने पहले भी प्रैस कांफ्रैंस कर कांग्रेस हाईकमान को चेतावनी दी थी कि अगर कांग्रेस सिख अधिकारों की बात नहीं करेगी तो उसे सिखों के वोट कैसे मिलेंगे। 

उन्होंने सिख मुद्दों के पक्ष में न बोलने के लिए सुखबीर सिंह बादल और भगवंत सिंह मान पर भी सवाल उठाए हैं। इससे भी आगे बढ़ते हुए उन्होंने अपने पिता सुखजिंद्र सिंह के जीवन के बारे में बताया। उनके संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले के साथ नजदीकी संबंध, उनकी ओर से सिख मुद्दों को लेकर बार-बार जेल की यात्रा करना और एन.एस.ए. जैसे सख्त कानून के अधीन सरकार की ओर से जेल में बंद करने का जिक्र किया है। 

गत दिनों जेल में रहने के दौरान उन्होंने अपनी छवि भी एक सिख अकाली नेता के तौर पर बनानी शुरू कर दी है। उन्होंने अपने जेल के दिनों का जिक्र करते हुए कहा कि वहां उन्होंने कई किताबें पढ़ीं, जिससे उनकी जिंदगी बदल गई। इन सभी बातों से साफ संकेत मिलता है कि सुखपाल सिंह खैहरा अकाली दल में नेतृत्व की रिक्तता को भरने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं और एक सिख नेता के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे हैं। बसपा के बाद अकाली दल बादल वामपंथी दलों के साथ मिल सकता है। 

अकाली दल बादल बसपा के बाद वामदलों के साथ गठजोड़ कर सकता है : पिछले कई दिनों से इस बात को लेकर चर्चा चल रही थी कि शिरोमणि अकाली दल और बसपा के बीच गठबंधन जारी रहेगा या नहीं, इस चर्चा को तब और बल मिला जब बसपा की पंजाब इकाई के अध्यक्ष जसबीर सिंह गढ़ी ने बयान दिया कि ज्यादातर घर भूखे हैं। इसके बाद बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने भी बयान दिया था कि ज्यादा घरों का मेहमान भूखा रह जाता है।

मायावती ने भी यह बयान दे दिया कि बसपा देशभर में अकेले ही चुनाव लड़ेगी। इस बयान से बसपा और अकाली दल के गठजोड़ के कायम रहने पर और भी संशय खड़े हो गए और ऐसा प्रतीत होने लगा कि अब बसपा और अकाली दल का गठबंधन टूट जाएगा और अकाली दल भाजपा के साथ समझौता कर सकता है। परन्तु मायावती ने इन सभी अटकलों के उलट पंजाब में अकाली-बसपा समझौते को बरकरार रखने का ऐलान कर दिया। मायावती के इस बयान से अकाली दल को राहत तो मिल गई, लेकिन सवाल यह है कि क्या अकाली दल और बसपा गठबंधन लोकसभा चुनाव जीत पाएगा या नहीं। 

पिछले 2 लोकसभा उपचुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो यह मुश्किल लगता है क्योंकि संगरूर लोकसभा चुनाव में अकाली-बसपा गठबंधन के बावजूद अकाली उम्मीदवार 5वें स्थान पर रहे थे और जालंधर के नतीजे में अकाली उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। ऐसे में बसपा और अकाली गठजोड़ के लिए अपने बल पर लोकसभा चुनाव जीतना आसान काम नहीं है। इसलिए अकाली दल भाजपा से गठबंधन न बनने की स्थिति में अन्य संभावनाएं तलाश रहा है। इस बात की पुष्टि अकाली दल के वरिष्ठ नेता बलविंदर सिंह भूंदड़ के एक अंग्रेजी अखबार को दिए बयान से भी होती है, जिसमें उन्होंने कहा है कि अकाली दल गठबंधन का विस्तार करने की कोशिश करेगा। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) के साथ समझौते से इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि ये दोनों पार्टियां ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल हैं लेकिन राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है और फिर भी दोनों पाॢटयां पहले भी अकाली दल के साथ गठबंधन कर चुकी हैं। 

भाई काऊंके की रिपोर्ट को कमेटियों में भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए : श्री अकाल तख्त साहब के पूर्व जत्थेदार  स्व. भाई गुरदेव सिंह काऊंके के बारे में पुलिस महानिदेशक बी.पी. तिवारी की जांच रिपोर्ट एक मानवाधिकार संगठन द्वारा श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार को सौंपे जाने और सार्वजनिक किए जाने के बाद शिरोमणि कमेटी द्वारा वकीलों की 5 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया और शिरोमणि कमेटी ने दावा किया कि इस रिपोर्ट पर कार्रवाई की गई है। हालांकि, शुरूआत में अकाली दल ने इस समिति पर आपत्ति जताई थी, लेकिन बाद में सिख संगत और संगठनों के दबाव के कारण सुखबीर सिंह बादल ने इस समिति के साथ सामंजस्य दिखाना शुरू कर दिया। शिरोमणि कमेटी के नेताओं के साथ सुखबीर सिंह बादल भी अपने परिवार के साथ भाई काऊंके के परिवार से मिलने पहुंचे। 

लेकिन सिख नेताओं भाई जसबीर सिंह रोडे, भाई बलजीत सिंह दादूवाल, भाई मोहकम सिंह और मंजीत सिंह भोमा और अन्य ने शिरोमणि समिति की कार्रवाई को अपर्याप्त बताया और जालंधर में 11 सदस्यीय समिति का गठन किया। इस कमेटी ने भाई काऊंके के मामले में न्याय के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए 10 फरवरी को एक बड़ी बैठक करने का फैसला किया है। संगठन ने जहां सिखों से इस समागम में शामिल होने की अपील की है, वहीं राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और अन्य क्षेत्रों में प्रसिद्धि हासिल कर रही सिख हस्तियों को भी खुला निमंत्रण दिया है। लेकिन इस सभा में शिरोमणि कमेटी और अकाली दल बादल के प्रतिनिधियों के भाग लेने की उम्मीद नहीं है क्योंकि कमेटी इन दोनों संगठनों को अलग से कोई निमंत्रण पत्र जारी नहीं कर रही है। 

इस बीच, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने भी एडवोकेट छिंद्रपाल सिंह बराड़ के नेतृत्व में वकीलों की 5 सदस्यीय समिति का गठन किया है। बताया जा रहा है कि यह कमेटी 10 फरवरी को होने वाली सभा में भाई काऊंके के बारे तैयार की गई रिपोर्ट सभा में पेश करेगी। इस तरह एक ही मुद्दे पर तीन अलग-अलग कमेटियां होने से यह मसला सुलझने की बजाय उलझ सकता है। इसलिए, सिख नेताओं को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।-इकबाल सिंह चन्नी(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)
 

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