दो ही कारक : जाति और असमानता

Edited By ,Updated: 26 May, 2024 05:51 AM

only two factors caste and inequality

कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें हम देखते तो हैं लेकिन नोटिस नहीं करते। कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें हम पढ़ते तो हैं लेकिन दर्ज नहीं करते। ऐसी चीजें हैं जो हमें झिझकने पर मजबूर करती हैं लेकिन हम उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। यह भारतीयों के अस्तित्व...

कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें हम देखते तो हैं लेकिन नोटिस नहीं करते। कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें हम पढ़ते तो हैं लेकिन दर्ज नहीं करते। ऐसी चीजें हैं जो हमें झिझकने पर मजबूर करती हैं लेकिन हम उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। यह भारतीयों के अस्तित्व (हम इसे जीवित रहना कहते हैं) की वास्तविकता है, जिनमें बड़ी संख्या में गरीब हैं, पूर्वाग्रह और भेदभाव से लड़ते हैं, अत्यधिक प्रतिस्पर्धी हैं, और परस्पर विरोधी आकांक्षाओं से प्रेरित हैं। 

आधी रात के करीब कोलकाता के सैंट्रल एवेन्यू पर ड्राइव करें। कुछ ही लोग सड़क के किनारे सो रहे लोगों की संख्या पर ध्यान देंगे या पूछेंगे कि इन लोगों के पास रात में आश्रय क्यों नहीं है? दिल्ली में सड़कों के किसी भी जंक्शन से गुजरें। ऐसे बच्चों की संख्या जो भीख मांगते हैं या फूल या तौलिए या पायरेटेड किताबें बेचते हैं, यह स्पष्ट सवाल पैदा नहीं करेगा कि ये बच्चे स्कूल में क्यों नहीं हैं?  भारत के कई हिस्सों में सूखी जमीनों से गुजरें, पानी का कोई नामो-निशान नहीं है, जमीन पर कुछ भी नहीं उगता दिखता है, फिर भी हजारों लोग जमीन पर रहते हैं और कुछ लोगों को आश्चर्य होगा कि उनकी आजीविका का स्रोत क्या है? 

लोकसभा 2024 के कांग्रेस के घोषणापत्र में स्वीकार किया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में, विशेष रूप से पिछले 3 दशकों में, भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ी है। यह विकास बढ़ते मध्यम वर्ग, उपभोक्ता वस्तुओं की प्रचुरता, हर हाथ में मोबाइल फोन, अच्छी अंतरराज्यीय सड़कें और शानदार मॉल, सिनेमा और पब जो शहरी भारत के ‘टाऊन स्क्वायर’ बन गए हैं, के तौर पर प्रकट हुए हैं। हालांकि ‘शाइनिंग इंडिया’ की तस्वीर, उन कुरूप सच्चाइयों को नहीं छिपा सकती जो हमारी विफलताओं की याद दिलाती हैं और हमारे पाठ्यक्रम को सही करने का अवसर भी देती हैं। 

अर्थव्यवस्था समाज का दर्पण बनती है : यू.एन.डी.पी. ने प्रति व्यक्ति प्रति माह 1286 रुपए (शहरी) और 1089 रुपए (ग्रामीण) की कमाई पर गरीबी रेखा खींची, और अनुमान लगाया कि भारत में गरीब व्यक्तियों की संख्या 22.8 करोड़ है। यदि कुछ भी हो, तो यह बहुत ही कम आंकलन है। विश्व असमानता लैब के अनुसार, निचले 50 प्रतिशत लोगों (71 करोड़) के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 3 प्रतिशत हिस्सा है और वे राष्ट्रीय आय का 13 प्रतिशत कमाते हैं। सरकार के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एच.सी.एस.ई.) का अनुमान है कि निचले 50 प्रतिशत लोगों की प्रति माह घरेलू खपत 3094 रुपए(ग्रामीण) और 2001 रुपए (शहरी) है। 

निचले 20 प्रतिशत लोगों के उपभोग व्यय का अनुमान लगाने के लिए महान गणितीय कौशल की आवश्यकता नहीं है। उनके पास व्यावहारिक रूप से कुछ भी नहीं है, वे बहुत कम कमाते हैं और एक गृहस्थ के रूप में, इस धरती पर जीवित रहने के लिए मुश्किल से ही उपभोग करते हैं। ग्लोबल हंगर इंडैक्स पर भारत का स्थान 125 देशों में से 111वां है। एच.सी.एस.ई. के अनुसार, गरीबों में ओ.बी.सी. औसत स्तर के करीब हैं और एस.सी. और एस.टी. सबसे गरीब हैं।  यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि आर्थिक पदानुक्रम उस सामाजिक पदानुक्रम को प्रतिबिंबित करता है जो हजारों वर्षों से देश में व्याप्त है और सामाजिक पदानुक्रम जाति पर आधारित है। अत्यंत गरीब और अत्यंत उत्पीड़ित लोग न्यूनतम मजदूरी पर कड़ी मेहनत करते हैं। 15.4 करोड़ व्यक्ति मनरेगा के तहत सक्रिय, पंजीकृत श्रमिक हैं। उन्हें साल में औसतन 50 दिन काम दिया जाता है। 

इस बीच, दूसरे छोर पर, शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी राष्ट्रीय आय का 57.7 प्रतिशत अर्जित करती है। सिर्फ 9223 लोगों की हिस्सेदारी 2.1 फीसदी है और सिर्फ 92,234 लोगों की हिस्सेदारी 4.3 फीसदी है। प्रति कार की कीमत 3.22 करोड़ रुपए से 8.89 करोड़ रुपए के बीच होने के कारण, 2023 में भारत में 103 लेबोॢगनी कारें बेची गईं। अमीरों ने तब अपना आभार व्यक्त किया, जब कॉर्पोरेट्स के अलावा, 362 व्यक्तियों ने 757 करोड़ रुपए के कुख्यात चुनावी बांड खरीदे और राजनीतिक दलों के लिए योगदान किया। सभी राजनीतिक दल अपने दानदाताओं के आभारी हैं। 

क्या अच्छे दिन आ गए? क्या भारत या भारतीय आत्मनिर्भर हो गए हैं?  अकेले चीन (हां, वह देश जिसके सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है और भारतीय सैनिकों की गश्त पर रोक लगा दी है) के साथ भारत का व्यापार घाटा 2023-24 में 100 बिलियन अमरीकी डॉलर था। क्या यही अमृतकाल की सुबह है?  कब तक जनता को धोखा दिया जाएगा या झूठ बोला जाएगा? 

दो मार्कर : जब तक राजनीतिक दल यह स्वीकार नहीं करते कि भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के 2 कारक जाति और असमानता हैं, हम गरीबी, भेदभाव और उत्पीडऩ की जड़ पर प्रहार नहीं कर सकते। कांग्रेस के घोषणापत्र ने भाजपा के ‘विकास’ के आख्यान के अंधेरे पक्ष की ओर ध्यान आकॢषत किया और प्रमुख हितधारकों से कुछ सरल वायदे किए। 

एस.सी., एस.टी. और ओ.बी.सी. 
* राष्ट्रव्यापी सामाजिक-आॢथक और जाति जनगणना आयोजित करना और डाटा एकत्र करना जो सकारात्मक कार्रवाई के एजैंडे को मजबूत करेगा। 
* एस.सी., एस.टी. और ओ.बी.सी. के लिए आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को हटाना।
* एस.सी., एस.टी. और ओ.बी.सी. के लिए आरक्षित पदों की सभी बैकलॉग रिक्तियों को एक साल के भीतर भरना। 

युवाओं के लिए
 *प्रशिक्षुता का अधिकार अधिनियम पारित करने के लिए, एक साल की प्रशिक्षुता और प्रति वर्ष 100,000 रुपए के वजीफे की गारंटी दें और नौकरियां प्रदान करें। 
* केंद्र सरकार में लगभग 30 लाख रिक्तियों को भरना। 
*बकाया शिक्षा ऋण और अवैतनिक ब्याज माफ करना। 

महिलाओं के लिए
* महालक्ष्मी योजना शुरू करना और सबसे गरीब परिवारों को प्रति वर्ष 100,000 रुपए प्रदान करना।
* मनरेगा कार्य के लिए न्यूनतम मजदूरी 400 रुपए प्रतिदिन तक बढ़ाना।
* केंद्र सरकार की नौकरियों में 50 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित करना। 

गरीबों की ओर धुरी 
जून 2024 में चुनी जाने वाली नई सरकार का मार्गदर्शक सिद्धांत ‘गरीबों और बहिष्कृतों की धुरी’ होना चाहिए।  कांग्रेस के घोषणापत्र में इस दायित्व को स्वीकार किया गया; इसलिए यह पूरे देश में ‘चर्चा का विषय’ बन गया।  भाजपा ने अपनी अधिकांश फेफड़ों की शक्ति और धन शक्ति कांग्रेस के घोषणापत्र या बल्कि काल्पनिक संस्करण की निंदा करने में खर्च की। जैसे-जैसे चुनाव 7 चरणों में पूरा हुआ, लड़ाई यथास्थिति की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित लोगों और यथास्थिति को बाधित करने के लिए दृढ़ संकल्पित लोगों के बीच शामिल हो गई। 4 जून तक सावधान रहें।-पी. चिदम्बरम

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