वतन परस्ती वतन फरामोशी में बदल गई

Edited By ,Updated: 21 Mar, 2023 05:57 AM

patriotism turned into patriotism

राजनीति के संबंध में एक लघुकथा है कि एक बार एक निर्माणाधीन भवन को देखने पहुंचे एक नेता के जोशीले सुपुत्र ने अपने पिता (राजनीतिक नेता) से राजनीति सीखने का पाठ पढ़ाने हेतु प्रश्न किया कि उसे राजनीति सिखाएं तो नेता जी ने उसे तीसरी मंजिल से छलांग लगाने...

राजनीति के संबंध में एक लघुकथा है कि एक बार एक निर्माणाधीन भवन को देखने पहुंचे एक नेता के जोशीले सुपुत्र ने अपने पिता (राजनीतिक नेता) से राजनीति सीखने का पाठ पढ़ाने हेतु प्रश्न किया कि उसे राजनीति सिखाएं तो नेता जी ने उसे तीसरी मंजिल से छलांग लगाने को कहा। चोट लगने के भय का हवाला देते हुए पुत्र को नेता जी ने आश्वासन दिया कि वे इसे संभाल लेंगे। पुत्र ने छलांग लगा दी। टांग टूट गई। नेता जी ने अपने बचाव हेतु उसे संभालने की बजाय गिरने दिया।

पुत्र ने रोते-बिलखते गिला किया तो नेता जी बोले मेरे पुत्र राजनीति का यह मूल पाठ है कि अपना सोचो खुद सगे बाप पर भी विश्वास न करो। इस लघुकथा के माध्यम से यह समझाया गया  है कि राजनीति कितनी घिनौनी, मतलब परस्त व निकृष्ट हो चुकी है जहां खून के रिश्तों तक की कोई कीमत नहीं है। इसलिए कहावत है कि जब बिल्ली ने अपने पांव बचाने हेतु खुद अपने बच्चों को आग में झुलसने  की परवाह नहीं की तो केवल अपने पांव का बचाव किया व बच्चों के ऊपर पांव रखकर आग से बाहर निकल आने को प्राथमिकता दी।

ऐसी कहावतों व लघु कथाओं द्वारा यह समझाने का प्रयास किया गया है कि राजनीति किस रसातल तक जा पहुंची है। वास्तव में आज यह राजनीतिक आलम है कि भारत जैसे महान लोकतंत्र जो विश्व में अग्रणी रहा है जिसकी उत्कृष्ट गरिमा की मिसाल दी जाती थी वह भी आज निकृष्ट व निम्नतम स्तर तक आ पहुंचा है। वतन परस्ती वतन फरामोशी में बदल गई है। इस हसीन मुल्क को राजनेताओं ने मकतल बनाकर रख दिया है।

गौ अपवाद के तौर पर नगण्य व गौण ही सही पर कुछ वतन परस्त नेता हैं जो सोते-जागते वतन की प्रगति, सम्पन्नता, विकास का ही सोचते हैं। और अपना सर्वस्व कुर्बान करने को तत्पर रहते हैं परन्तु ऐसे नेताओं की आवाज वतन फरामोश नेताआें के जमघट में नक्काखाने में तूती की आवाज के मानिंद दब कर रह गई है। चाहे कोई राजनीतिक पार्टी हो सभी में एक समय नैतिक गरिमामय, उच्च मूल्यों के धनी नेताओं की कमी न थी इसके विपरीत आज सभी पार्टियों में अधिकांश  नेता मुंहफट, बदजुबान, क्रप्ट, भ्रष्ट, मतलब परस्त, वतन फरामोश, घिनौने चरित्र वाले ही बचे हैं। गौ अपवाद आज भी है।

आज नेता दूसरी पार्टियों की ही नहीं स्वयं अपनी पार्टी की लुटिया डुबोने तक जा पहुंचते हैं। सीमा रेखा पार कर ऐसी-ऐसी बयानबाजी कर जाते हैं कि उनकी अपनी पार्टी को भी जो नुक्सान पहुंचता है उसकी भरपाई नहीं हो पाती। पार्टी प्रवक्ताओं को लीपापोती करने तक को शब्द नहीं मिल पाते, फिर शुरू होती है नुक्सान की भरपाई करने की औचित्यहीन असफल कोशिश जिसे बेवजह धरना प्रदर्शन के रूप में परोसा जाता है। -जे.पी. शर्मा  

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