वन्य जीव और वनस्पतियों का संरक्षण हो

Edited By ,Updated: 04 Dec, 2021 05:28 AM

protection of wildlife and flora

मान्यता है कि संसार में जिन देशों के पास अनमोल प्राकृतिक संसाधन हैं वे गरीब नहीं हो सकते। भारत भी उन देशों में आता है लेकिन फिर भी यहां गरीबी पीछा ही नहीं छोड़ती। इसका कारण बिना सोचे समझे वन्य जीवों, वनस्पतियों और कुदरत की नियामतों का विनाश और उनका...

मान्यता है कि संसार में जिन देशों के पास अनमोल प्राकृतिक संसाधन हैं वे गरीब नहीं हो सकते। भारत भी उन देशों में आता है लेकिन फिर भी यहां गरीबी पीछा ही नहीं छोड़ती। इसका कारण बिना सोचे समझे वन्य जीवों, वनस्पतियों और कुदरत की नियामतों का विनाश और उनका संरक्षण करने के स्थान पर इतना दोहन करना है कि अक्सर प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होना पड़ता है। यही सबसे बड़ा कारण है कि जितना हम आगे बढ़ते हैं, प्राकृतिक असंतुलन बढऩे से उससे अधिक पीछे आ जाते हैं। विश्व वन्य जीवन संरक्षण दिवस चार दिसंबर को मनाने का चलन इसीलिए पड़ा कि वनों से मिलने वाली संपदा का मनुष्य की भलाई के लिए इस्तेमाल तो हो लेकिन उसका नाश न हो और इस प्रकार के उपाय किए जाएं जिनसे वह संरक्षित रहे और उसमें वृद्धि होती रहे।

सौभाग्यशाली भारत : प्रकृति ने हमारे देश की संरचना कुछ इस तरह से की है कि यहां नदियां, जंगल, पर्वत और उपजाऊ  जमीन की कोई कमी नहीं। दुनिया में कुछ ही देश ऐसे हैं जिनके पास हमारे जैसे संसाधन हैं लेकिन फिर भी हम अभाव, निर्धनता और पिछड़ेपन से जूझते रहते हैं। इसका कारण यही है कि जिन देशों में प्राकृतिक संतुलन अर्थात इकोसिस्टम को बनाए रखा गया वे मालामाल हैं और जहां संसाधनों का बिना सोचे समझे इस्तेमाल हुआ, वे बहुत पीछे रह गए। इस बात को बार बार दोहराए जाने की जरूरत नहीं है कि जंगलों में रहने वाले जानवरोंं, वहां होने वाली वनस्पतियों, जड़ी-बूटियों और अन्य प्राकृतिक संपदा जैसे कि खनिज पदार्थ देश की समृद्धि का परिचायक हैं। 

कृषि, उद्योग, आवागमन के साधन, रहने के लिए घर, स्वास्थ्य की देखभाल, चिकित्सा, मनोरंजन, सैर सपाटा, जीवन यापन, आर्थिक गतिविधियां, सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत, यह सब वनों, वहां रहने वाले वनवासियों और पशुओं से ही जुड़ी हैं। इसका अर्थ यही है कि यदि हमारे पास यह संपदा न हो तो न केवल हमारी प्रगति के रुकने का खतरा है बल्कि उसका संवर्धन न होने से मरुस्थल प्रदेश, बंजर जमीन और बाढ़ जैसी मुसीबतों को निरंतर झेलते रहने की मजबूरी भी है। कृषि, उद्योग, कल कारखाने, सड़कों का निर्माण और शहरों का विस्तार आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के लिए आवश्यक है और इसके लिए वनों की कटाई जरूरी है लेकिन यदि हमने इसके समानांतर जंगलों को बनाए रखने और उन्हें समृद्ध करते जाने की नीति नहीं अपनाई तो फिर विनाश की प्रक्रिया को किसी भी कीमत पर रोकना असंभव है। 

वन संरक्षण : इसका एक उदाहरण पूर्वोत्तर प्रदेशों से लिया जा सकता है जहां वनों को काटकर उस जमीन को खेतीबाड़ी के लायक बनाया जाता रहा है क्योंकि वहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वनों को काटा न जाए तो कृषि कार्य नहीं हो सकता। पूर्वजों ने इस बात को समझा और सोचा कि इस तरह तो वन विनाश होता रहेगा और एक दिन पूरा प्रदेश बंजरपन की भेंट चढ़ जाएगा। उन्होंने वनों के एक विशाल क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए वहां किसी भी तरह की गतिविधि को रोकने का नियम बना दिया और इसके लिए उसे सांस्कृतिक परंपराओं से जोड़ दिया। यह सुनिश्चित करने के लिए वहां वनों की कटाई न हो, उस प्रदेश को पवित्र गुफाओं के रूप में प्रचारित किया और धार्मिक भावनाओं से जोड़ दिया। इन वनों से एक पत्ता भी लेकर जाने की मनाही कर दी और यदि कोई ऐसा करता है तो उस पर प्राकृतिक प्रकोप और दैवीय विपत्ति का कहर टूटने की किंवदंतियां प्रचलित कर दीं जिसका परिणाम यह हुआ कि वह प्रदेश हमेशा के लिए सुरक्षित और संरक्षित हो गया। 

इन्हें आज हम मसमाई गुफाओं के नाम से जानते हैं और यह धार्मिक आस्था का केंद्र बनने के साथ पर्यटकों के आकर्षण से लेकर वैज्ञानिकों और शोधकत्र्ताओं तक का कार्यक्षेत्र बन गया है। यहां जो वनस्पतियां विकसित हुई हैं वे हमारी धरोहर बन गई हैं, यहां जो घास बनी है वह अनेक प्रजातियों के पैदा होने और उनसे अपनी कृषि को विकसित करने का कारण बनी हैं। यदि हम उत्तराखंड, हिमाचल और हिमालय से सटे अन्य प्रदेशों की वनस्पतियों, वहां उगने वाली जड़ी बूटियों और गंभीर बीमारियों के उपचार के लिए बनने वाली औषधियों की बात करें तो वन्य प्रदेशों और वहां रहने वाले जीवों के संरक्षण की उपयोगिता को समझा जा सकता है। वनों में हिंसक पशु ही नहीं रहते बल्कि कीट-पतंगे और उपयोगी पक्षी भी रहते हैं। इनका काम प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के साथ सामान्य जन जीवन को आरामदेह बनाना है। 

वन विकास और संरक्षण : इसमें सबसे बड़ी रुकावट मनुष्य का लोभ, लालच और जल्दी से जल्दी अमीर बन जाने की प्रवृत्ति है जिसके कारण पेड़-पौधों की तस्करी, गैर-कानूनी तरीके से जंगलों की कटाई होती है। ऐसे पशुओं की हत्या की जाती है जिनका प्रत्येक अंग कीमती है। इनमें शेर, चीते, हाथी, गैंडे प्रमुख हैं। इसी तरह जल में रहने वाले मगरमच्छ,घडिय़ाल और विशेष महत्व की मछलियां भी मनुष्य की लिप्सा का शिकार बनती हैं। 

वन्य जीवों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय उद्यान, जैविक उद्यान और अभयारण्य बनाए गए हैं लेकिन देखा गया है कि सही सुविधाओं के अभाव और प्रकृति की अनदेखी करने से इनमें से अधिकतर अनुपयोगी होते जा रहे हैं। यह बात व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कही जा सकती है। इस विश्व वन्य जीवन संरक्षण दिवस पर सामान्य व्यक्ति जानवरों की उपयोगिता, वनवासियों की सुरक्षा और वन क्षेत्र में वृद्धि करने के बारे में सोचना शुरू कर दे तो हम बहुत-सी प्राकृतिक आपदाओं से बच सकते हैं। सूखे, बाढ़, बंजरपन और रेतीले प्रदेशों के विस्तार पर अंकुश लग सकता है। यह केवल सरकार की नीतियों से होने वाला नहीं है बल्कि प्रत्येक नागरिक की सोच पर निर्भर है।-पूरन चंद सरीन  
 

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