पंजाब विधानसभा सत्र : मर्यादा पर हावी सनसनी

Edited By Pardeep,Updated: 01 Sep, 2018 03:52 AM

punjab assembly session sensation dominates limit

पिछले दिनों पंजाब विधानसभा में जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट पर चर्चा हुई। शिअद-भाजपा विधायकों ने इस चर्चा का बहिष्कार किया तथा कांग्रेस, आम आदमी पार्टी व लोक इंसाफ पार्टी के विधायक इसमें शामिल हुए। लगभग 8 घंटे की चर्चा के बाद एक प्रस्ताव पारित...

पिछले दिनों पंजाब विधानसभा में जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट पर चर्चा हुई। शिअद-भाजपा विधायकों ने इस चर्चा का बहिष्कार किया तथा कांग्रेस, आम आदमी पार्टी व लोक इंसाफ पार्टी के विधायक इसमें शामिल हुए। लगभग 8 घंटे की चर्चा के बाद एक प्रस्ताव पारित कर बरगाड़ी, कोटकपूरा, बहिबलकलां की बेअदबी तथा फायरिंग की घटनाओं की जांच सी.बी.आई. से वापस लेकर पंजाब पुलिस को देने का फैसला हुआ। 

लगभग 3 साल पहले पंजाब में श्री गुरु ग्रंथ सााहिब तथा अन्य धर्मग्रंथों की बेअदबी का जो सिलसिला चला उससे सारा पंजाब हतप्रभ भी हुआ और आक्रोशित भी था। श्री गुरु ग्रंथ साहिब के प्रति श्रद्धा जहां समूह पंजाबियों के लिए एक परंपरा है, वहीं उनकी जीवनशैली का हिस्सा भी है। हर पंजाबवासी इन निंदनीय घटनाओं के पीछे की साजिश जानना चाहता था तथा दोषियों को दंडित होते हुए देखना भी चाहता था। मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि सरदार प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व की तत्कालीन अकाली-भाजपा सरकार के लिए इन घटनाओं तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता ब्रिगेडियर जगदीश गगनेजा समेत हुई कुछ हत्याओं की गुत्थी न सुलझा पाना 2017 के विधानसभा चुनाव में महंगा साबित हुआ। 

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने मुख्यमंत्री बनने के बाद जस्टिस रणजीत सिंह आयोग गठित किया तथा लगभग डेढ़ साल के बाद इस कमीशन ने सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की। कुछ दिन पूर्व ही मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने एक्शन टेकन रिपोर्ट में कुछ उच्च पुलिस अधिकारियों के नाम होने का हवाला देते हुए आगे की जांच सी.बी.आई. को सौंपने की घोषणा की। इसके पश्चात विधानसभा में आयोग की रिपोर्ट पर चर्चा के बाद यह जांच सी.बी.आई. से लेकर पंजाब पुलिस को सौंपने का प्रस्ताव पास किया गया। इस प्रस्ताव से पहले जो नाटकीयता, अभद्रता तथा उत्तेजक भाषणबाजी सदन में की गई वह निश्चित ही किसी भी संवेदनशील पंजाबी के लिए विचार का विषय है। ऐसा लग रहा था कि यह पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी तथा विभिन्न पात्र अपने ‘भावपूर्ण’ अभिनय से एक-दूसरे को मात देने की कोशिश कर रहे थे। 

सत्र से पहले कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ का यह बयान कि ‘रिपोर्र्ट’ पेश होने के बाद अकाली नेताओं की सुरक्षा बढ़ानी पड़ेगी, शायद रिपोर्ट पर चर्चा के लिए एक उत्तेजक पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए ही दिया गया था। भाषणों में कांग्रेस की धड़ेबाजी तथा अपने को सबसे बड़ा पंथ हितैषी साबित करने के लिए अशोभनीय हावभाव तथा स्तरहीन जुमलेबाजी साफ देखने को मिल रही थी। भाषण के बाद वक्ताओं की विजयी मुद्रा, बधाइयां तथा ठहाके बता रहे थे कि वे श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी तथा निर्दोषों की हत्याओं पर कितने दुखी तथा संवेदनशील हैं, लेकिन इससे एक भय भी दिखाई दे रहा था कि कहीं इतिहास अपने आप को दोहरा तो नहीं रहा? 

70 और 80 के दशक में ज्ञानी जैल सिंह व दरबारा सिंह के बीच मुख्यमंत्री पद की लड़ाई तथा कांग्रेस द्वारा अपने आपको अकालियों से बड़े सिख हितैषी साबित करने की होड़ ने पंजाब को जो दिन देखने को मजबूर किया उन्हें याद कर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। कांग्रेस का आग से खेलने का दुस्साहस पंजाब तथा देश के लिए कहर बन कर आया तथा 15 सालों में लगभग 25,000 निर्दोष लोग बलिदान हुए। पत्रकार, पुलिस कर्मचारी, अद्र्धसैनिक, सैनिक तथा आम लोग शहीद हुए। कांग्रेस की ही नेता तथा देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री स. बेअंत सिंह तथा अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं की बलि इसी अतिवाद की आग ने ली थी लेकिन इस विधानसभा सत्र में सत्तारूढ़ दल के आचरण से कहीं नहीं लगा कि इन्होंने इतिहास से कोई सबक सीखा है। मंत्री दर मंत्री भड़काऊ तथा गैर-जिम्मेदार भाषणबाजी करते रहे, न तो उन्हें विधानसभा अध्यक्ष ने रोका और न ही मुख्यमंत्री ने। 

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की छवि एक स्पष्टवादी तथा बेबाक नेता की रही है लेकिन चर्चा के अंत में जब वह बोलने को खड़े हुए तो साफ लगा कि वह दबाव व बेबसी में बोल रहे हैं। वह असंसदीय शब्द तथा बनावटी आक्रामकता कैप्टन अमरेन्द्र सिंह से अपेक्षित नहीं थी जो उस दिन देखने को मिली। यह दबाव कहीं बाहर से न हो कर उनकी पार्टी के अंदर से ही था। भाषणों के द्वारा हिस्टीरिया पैदा करने की कोशिश की गई थी तथा रैफरैंडम 2020 का समर्थन करने वाले सुखपाल सिंह खैहरा तथा वरिष्ठ कांग्रेसी मंत्री तृप्त राजिन्दर सिंह बाजवा एक ही धरातल पर खड़े लग रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में सभी मोर्चों पर विफल तथा दिशाहीन रही यह सरकार एक बार फिर भावनाओं से खिलवाड़ कर वोटों की राजनीति में लग गई है। 

कांग्रेस को यह भूलना नहीं चाहिए कि आतंकवाद के समय पंजाब ने जो संताप अपने शरीर पर भोगा उससे पंजाब व्यापार, उद्योग व विकास, सब क्षेत्रों में देश के अन्य राज्यों से काफी पिछड़ गया है। जरूरत इस सीमांत राज्य को विकास, शांति तथा आपसी भाईचारे के रास्ते पर चलाने की है। कांग्रेस को याद रखना होगा कि 2017 के विधानसभा चुनावों का जनादेश यदि दस साल की अकाली-भाजपा सरकार के विरुद्ध सत्ता विरोधी रुझान का परिणाम था, वहीं यह पंजाब की जनता का आम आदमी पार्टी की उग्रवाद समर्थक तथा अराजकतावादी राजनीति के विरुद्ध भी एक फतवा था। 

चुनी हुई सरकार तथा सदन को यह अधिकार है कि वे प्रदेश के हित में कोई भी निर्णय कर सकते हैं। जांच सी.बी.आई. करे या एस.आई.टी. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जनता सच जानना चाहती है लेकिन यदि पवित्र सदन से सनसनी फैलाने की कोशिश हो जिससे प्रदेश में अराजक तथा राष्ट्रविरोधी तत्वों को हवा मिले तो यह निंदनीय व अवांछनीय है। यह चुप रहने का समय नहीं है? पंजाब के विचारशील निवासियों, समाचारपत्रों, बुद्धिजीवियों को भी इस अवसर पर अपनी भूमिका निभानी होगी। सरकार के प्रतिनिधियों से यह पूछना होगा कि विधानसभा सत्र में जो कार्रवाई हुई जिसे देश-दुनिया ने सीधे प्रसारण के माध्यम से देखा उससे पंजाब की क्या छवि बनी? आज के संदर्भ में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की ये पंक्तियां बहुत प्रासंगिक हो गई हैं कि - समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।-कमल शर्मा(राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भाजपा)

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