Edited By ,Updated: 06 May, 2024 05:15 AM
30 अप्रैल 2024 को पाकिस्तान के कराची की लांडी जेल में 18 से 26 माह तक बंद 36 मछुआरों की एक नारकीय जीवन और जीवित रहने की आस खो देने के बाद भारत लौटने की आस निराशा में बदल गई।
30 अप्रैल 2024 को पाकिस्तान के कराची की लांडी जेल में 18 से 26 माह तक बंद 36 मछुआरों की एक नारकीय जीवन और जीवित रहने की आस खो देने के बाद भारत लौटने की आस निराशा में बदल गई। सूची जारी हुई, सामान बांधे गए और इधर भारत में भी परिवारों ने स्वागत की तैयारी कर ली थी। रिहा होने के कुछ घंटे पहले ही पाकिस्तान सरकार ने सुरक्षा का हवाला देकर रिहाई को टाल दिया। सीमा पार से जीवित कोई नहीं लौटा, हां एक लाश जरूर आई। चुनाव की गर्मी में शायद ही किसी का ध्यान गया हो कि महाराष्ट्र के पालघर जिले के गोरतपाड़ा निवासी विनोद लक्ष्मण नामक मछुआरे की लाश भी वतन लौटी है। दुर्भाग्य से इनकी मौत 16 मार्च को हो गई थी और डेढ़ महीने से लाश मिट्टी के लिए तरस रही थी।
यह समझना होगा कि मरने वाले विनोद जी हों या रिहा होने वाले और अब अनिश्चित काल तक फिर जेल में रह गए 36 मछुआरे, ये बंदी नहीं, बल्कि तकदीर के मारे वे मछुआरे थे जो जल के अथाह सागर में कोई सीमा रेखा नहीं ङ्क्षखचे होने के कारण सीमा पार कर गए थे और हर दिन अपनी जान की दुहाई मांग कर काट रहे थे। भारत-पाकिस्तान की समुद्री सीमा पर मछली पकडऩे वाले अधिकांश गुजरात के हैं। गुजरात देश के मछली उत्पादन का 5 फीसदी उपजाता है। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि राज्य में कोई 1058 गांवों में 36980 नावों पर सवार होकर कोई 6 लाख मछुआरे समुद्र में मछलियों की जगह खुद के जाल में फंसने के भय में रहते हैं। जान लें इन नावों पर काम करने वाले आसपास के राज्यों से आते हैं और उनकी संख्या भी लाखों में होती है।
भारत की संसद में 11 अगस्त 2023 को विदेश राज्य मंत्री ने बताया था कि पाकिस्तानी जेलों में भारत के 266 मछुआरे और 42 अन्य नागरिक बंद हैं। जबकि भारतीय जेल में पाकिस्तान के 343 आम लोग और 74 मछुआरे बंद हैं। एक तरफ मछुआरों को छोडऩे के प्रयास हैं तो दूसरी ओर दोनों तरफ की समुद्री सीमाओं के रखवाले चौकन्ने हैं कि मछली पकडऩे वाली कोई नाव उनके इलाके में न आ जाए। जैसे ही कोई मछुआरा मछली की तरह दूसरे के जाल में फंसा, स्थानीय प्रशासन व पुलिस अपनी पीठ थपथपाने के लिए उसे जासूस घोषित कर ढेर सारे मुकद्दमें ठोक देती है और पेट पालने को समुद्र में उतरने की जान को जोखिम डालने वाला मछुआरा किसी अंजान जेल में नारकीय जिंदगी काटने लगता है। सनद रहे यह दिक्कत केवल पाकिस्तान की सीमा पर ही नहीं है, श्रीलंका के साथ भी मछुआरों की धरपकड़ ऐसे ही होती रहती है लेकिन पाकिस्तान से लौटना सबसे मुश्किल है।
भारत और पाकिस्तान में सांझा अरब सागर के किनारे रहने वाले कोई 70 लाख परिवार सदियों से समुद्र से निकलने वाली मछलियों से अपना पेट पालते आए हैं। जैसे कि मछली को पता नहीं कि वह किस मुल्क की सीमा में घुस रही है, वैसे ही भारत और पाकिस्तान की सरकारें भी तय नहीं कर पा रही हैं कि आखिर समुद्र के असीम जल पर कैसे सीमा खींची जाए। कच्छ के रण के पास सर क्रीक विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा है। असल में वहां पानी से हुए कटाव की जमीन को नापना लगभग असंभव है क्योंकि पानी से हर रोज जमीन कट रही है और वहां का भूगोल बदल रहा है। दोनों मुल्कों के बीच की कथित सीमा कोई 60 मील यानी लगभग 100 किलोमीटर में विस्तारित है।
जब से शहरी बंदरगाहों पर जहाजों की आवाजाही बढ़ी है तब से गोदी के कई-कई किलोमीटर तक तेल रिसने,शहरी सीवर डालने व अन्य किस्म के प्रदूषणों के कारण समुद्री जीवों का जीवन खतरे में पड़ गया है। अब मछुआरों को मछली पकडऩे के लिए बस्तियों, आबादियों और बंदरगाहों से काफी दूर निकलना पड़ता है। जैसे ही खुले सागर में आए तो वहां सीमाओं को तलाशना लगभग असंभव होता है और वहीं दोनों देशों के बीच के कटु संबंध, शक और साजिशों की संभावनाओं (जो कई बार सच भी साबित होती है ) के शिकार मछुआरे हो जाते हैं।
जब उन्हें पकड़ा जाता है तो सबसे पहले सीमा की पहरेदारी करने वाला तटरक्षक बल अपने तरीके से पूछताछ व जामा तलाशी करता है। चूंकि इस तरह पकड़ लिए गए लोगों को वापस भेजना सरल नहीं है और इन्हें स्थानीय पुलिस को सौंप दिया जाता है। इन गरीब मछुआरों के पास पैसा-कौड़ी तो होता नहीं, इसलिए ये ‘‘गुड वर्क’’ के निवाले बन जाते हैं। घुसपैठिए, जासूस, खबरी जैसे मुकद्दमें उन पर होते हैं। वे दूसरे तरफ की बोली-भाषा भी नहीं जानते, इसलिए अदालत में क्या हो रहा है, उससे बेखबर होते हैं।
कई बार इसी का फायदा उठा कर प्रोसिक्यूशन उनसे जज के सामने हां कहलवा देता है और वे अनजाने में ही देशद्रोह जैसे आरोप में दोषी बन जाते हैं। कई-कई सालों बाद उनके खत अपनों के पास पहुंचते हैं। फिर लिखा-पढ़ी का दौर चलता है।
पकड़े गए लोगों की सूचना 24 घंटे में ही दूसरे देश को देना, दोनों तरफ माकूल कानूनी सहायता मुहैया करवा कर इस तनाव को दूर किया जा सकता है। वैसे संयुक्त राष्ट्र के समुद्री सीमाई विवाद के कानूनों यू.एन.सी.एल.ओ. में वे सभी प्रावधान मौजूद हैं जिनसे मछुआरों के जीवन को नारकीय होने से बचाया जा सकता है। जरूरत तो बस उनके दिल से पालन करने की है। -पंकज चतुर्वेदी