Breaking




‘चुप रहना ही सबसे अच्छा विकल्प है’

Edited By ,Updated: 01 Mar, 2021 02:42 AM

shutting up is the best option

वाशिंगटन पोस्ट के संपादकीय बोर्ड ने लिखा है कि भारत के लोकतंत्र होने के दावे पर सवाल उठाया जाना चाहिए। यह हैडलाइन तब सामने आई जब यह बताया गया कि शासन के दायरे में क्या हो रहा है। संसद में कृषि कानूनों को मतदान के बिना पारित

वाशिंगटन पोस्ट के संपादकीय बोर्ड ने लिखा है कि भारत के लोकतंत्र होने के दावे पर सवाल उठाया जाना चाहिए। यह हैडलाइन तब सामने आई जब यह बताया गया कि शासन के दायरे में क्या हो रहा है। संसद में कृषि कानूनों को मतदान के बिना पारित करने से लेकर युवतियों को जेल में बंद किया जा रहा है क्योंकि उन्होंने एक ओपन सोर्स दस्तावेज संपादित किया है। 

भारत के विदेश मंत्रालय ने इस पर कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी जैसा कि पहले हुआ था जब एक पॉप स्टार ने 2 फरवरी की सी.एन.एन. हैडलाइन में 6 शब्दों के वाक्य (हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं?) को कहा था। भारत के बहादुर सैनिक अक्षय कुमार और सचिन तेंदुलकर ने वाशिंगटन पोस्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जैसा कि उन्होंने रेहाना मामले में दी थी। संभवत: प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मंत्रियों को प्रतिक्रिया देने का निर्देश नहीं दिया क्योंकि उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि वाशिंगटन पोस्ट भारत के बारे में क्या लिखता है। जबकि पॉप स्टार रेहाना के लाखों प्रशंसक हैं। 

विश्व की सबसे प्रतिष्ठित मैगजीन ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने अपने नवीनतम अंक में एक शीर्षक दिया है जिसमें लिखा है कि, ‘‘भारत सरकार द्वारा अपने आलोचकों का पीछा किया जाना अनुचित ही नहीं बल्कि पाखंड भी है।’’ वाशिंगटन पोस्ट की तरह यह मैगजीन भी उस बात की अच्छी जानकारी रखती है कि भारत में क्या चल रहा है? इसका कहना है कि मोदी सरकार की कार्रवाइयों ने इसे वैश्विक तौर पर एक ‘मतलबी और मूर्खतापूर्ण’ बना दिया है। 

सरकार ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। हालांकि संभवत: इसे कुछ करना होगा। एक कारण है कि द इकोनॉमिस्ट ने भारत सरकार द्वारा फरवरी में एक आधिकारिक श्रद्धांजलि के द्वारा गुरुजी गोलवल्कर के प्रचार को संदॢभत किया था। मैगजीन ने अपने पाठकों को बताया कि श्री गोलवल्कर का मानना था कि ‘‘नाजी जर्मनी की अपनी यहूदी समस्या का प्रबंधन हिंदुस्तान में हमारे द्वारा सीखने और लाभ के लिए एक अच्छे सबक का प्रतिनिधित्व करता है।’’

वाशिंगटन पोस्ट ने जो दावा किया है उसकी जांच करते हैं कि हम एक लोकतंत्र हैं कि नहीं। पश्चिम में लोकतंत्र को मतदान केंद्र पर शुरू और समाप्त होते नहीं देखा जाता। इसे नागरिक स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार और न्याय तक पहुंच के साथ होना चाहिए।  यह सभी सामग्रियां मिलकर सरकारी संरचना का निर्माण करती हैं जिसे लोकतंत्र माना जाता है। 

हमारे मामले में हम मानते हैं कि चुनाव ही लोकतंत्र है लेकिन भारत में यह एक समस्या है। भारत ने 1947 में समूह स्तर पर आजादी हासिल की। स्वतंत्रता का मतलब था कि विदेशियों द्वारा कुछ लोगों के नेतृत्व में राज्य का नियंत्रण पूरी तरह से भारतीयों को हस्तांतरित कर दिया जाए। इसने भारतीय नागरिकों को यह निर्धारित करने के लिए जगह दी कि वह स्वयं को कैसे नियंत्रित करें और व्यक्तिगत आजादी और नागरिक स्वतंत्रता का आनंद लेने के लिए स्वयं के कानून लिखें। 

1947 के बाद भारत को व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ध्यान देना चाहिए था ताकि प्रक्रिया को और गहरा किया जा सके। यहां पर भारत लडख़ड़ा गया। सरकार ने (सरकार के उपकरण का अर्थ) अपने नागरिकों को उनके अधिकार नहीं दिए। इसने अंतरिक्ष की लड़ाई लड़ी और आवश्यक स्वतंत्रता पर नागरिकों को जोर दिया। 

अधिकार
*अभिव्यक्ति और बोलने की स्वतंत्रता।
* किसी भी पेशे या व्यवसाय करने की स्वतंत्रता।
* शांतिपूर्वक एकत्रित होने का अधिकार।
* संघों को गठन करने का।
* स्वतंत्र रूप से अभ्यास और धर्म का प्रचार।
* जीवन और स्वतंत्रता से वंचित होना। 

आज ये अधिकार भारत में नहीं हैं। ये अधिकार मौलिक हैं, जो सरकार द्वारा अतिक्रमण से उच्च स्तर की सुरक्षा का आनंद लेते हैं। मगर यह सब भारतीयों को आज उपलब्ध नहीं। इसके बावजूद जो संविधान सभा चाहती थी, सरकार ने उनसे छीन लिया और पहले स्थान पर यह अधिकार कभी नहीं रहे। 1950 के दशक में सुप्रीमकोर्ट ने फैसला सुनाया कि चूंकि संविधान सभा ने किसी भी पेशे या किसी भी व्यवसाय को करने की आजादी की गारंटी दी थी मगर यह गायों के कत्लेआम की अनुमति नहीं दे सकती क्योंकि  इससे ङ्क्षहदू नाराज थे। क्योंकि संविधान सर्वोच्च था, हिंदू भावना अधिक सर्वोच्च थी। 

शांतिपूर्वक प्रदर्शन का अपराधीकरण हो गया है। प्रचार का अधिकार आपराधिक हो गया है। इसी तरह कब्जे का अधिकार भी आपराधिक हो गया है। बोलने की स्वतंत्रता का देशद्रोह, आपराधिक मानहानि तथा आपराधिक अवमानना के माध्यम से अपराधीकरण कर दिया गया है। 

सरकार ने इन स्वतंत्रताओं को तथाकथित उचित प्रतिबंधों द्वारा विनियमित करने की मांग की है जिन्होंने स्वयं अधिकारों को पलट दिया है। भारत में हमेशा से ही ऐसा होता आया है। हालांकि इस सरकार ने भारतीय नागरिकों के ऊपर सरकार के अधिकारों को इस कदर धकेल दिया है कि वह सरकार के खिलाफ खड़े होने वाले व्यक्तियों को कुचल देगी। यह वह बात है जिसके बारे में वाशिंगटन पोस्ट तथा द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है। भारत सरकार इन आरोपों पर चुप है क्योंकि वह सत्य है। हम एक पॉप सिंगर को जुबान बंद रखने के लिए तो कह सकते हैं क्योंकि वह एक युवा स्त्री है। वही वाशिंगटन पोस्ट तथा द इकोनॉमिस्ट को कहना थोड़ा मुश्किल है कि वह अपनी बात न कहे इसलिए चुप रहना ही सबसे अच्छा विकल्प है।-आकार पटेल

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8

Related Story

    Trending Topics

    IPL
    Royal Challengers Bengaluru

    190/9

    20.0

    Punjab Kings

    184/7

    20.0

    Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

    RR 9.50
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!