इंदिरा गांधी और प्रियंका गांधी के बीच समानताएं

Edited By Updated: 16 Oct, 2021 04:15 AM

similarities between indira gandhi and priyanka gandhi

लखीमपुर खीरी की घटनाओं को लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा की उपस्थिति के चुनावी फायदे हो सकते हैं यदि उनकी व्यक्तित्व क्षमता के अलावा उनमें राजनीतिक सहनशीलता भी हो। मैं खुदा से प्रार्थना करता हूं कि प्रियंका कुछ आश्वासन के बाद धीमी नहीं पड़ेंगी...

लखीमपुर खीरी की घटनाओं को लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा की उपस्थिति के चुनावी फायदे हो सकते हैं यदि उनकी व्यक्तित्व क्षमता के अलावा उनमें राजनीतिक सहनशीलता भी हो। मैं खुदा से प्रार्थना करता हूं कि प्रियंका कुछ आश्वासन के बाद धीमी नहीं पड़ेंगी। मगर मुझे शंका है कि वह ऐसा कर सकती हैं। मेरा अविश्वास रायबरेली तथा अमेठी, जोकि गांधी परिवार का एक कुटुम्ब प्रतीत होता है, में प्रियंका की कभी-कभी दिखाई दी जाने वाली कार्यशैली के स्टाइल के अनुभव पर आधारित है। चुनावी राजनीति में लोगों की याददाश्त को मिटाना एक डिवाइस की तरह है जिसका प्रयोग टैलीविजन के जादू से किया जाता है। 

प्रियंका गांधी इंदिरा गांधी की हमशक्ल दिखाई देती हैं। बहुत-सी बातें हैं जो इंदिरा गांधी से मेल खाती हैं। प्रियंका का साड़ी बांधने का स्टाइल, स्पष्ट शब्दकोष, जुझारू आचरण, सहज क्रोध और लोगों के साथ संबंध बनाने की क्षमता जैसी बातें इंदिरा गांधी जैसी हैं। यह सब मिलाजुलाकर अच्छे गुण हैं। मगर लोगों की याददाश्त से यह सब बाहर हो जाता है।

गांधी परिवार कांग्रेस पार्टी के ढेर पर बैठा है। कुछ वर्ष पहले रायबरेली से कुछ दोस्त सफेद खादी तथा बाटा के शूज में दिखाई दिए। जोकि बेहद एथलैटिक नजर आ रहे थे। प्रियंका गांधी ने हम जैसे कुछ चुङ्क्षनदा कांग्रेसियों को ‘चिंतन बैठक’ के लिए बुलाया था। यह चिंतन बैठक 2012 के यू.पी. चुनावों में पार्टी की शर्मनाक हार के बाद बुलाई गई। सबसे बुरी हालत रायबरेली में जहां पर कांग्रेस ने सभी 5 सीटें खो दीं, जो संसदीय सीट का खंड बनाती थीं। अमेठी में भी पार्टी ने 5 में से 3 सीटें खो दीं। महा पराक्रमी किशोरी लाल शर्मा के नेतृत्व में चली ‘चिंतन बैठक’ के बाद प्रियंका आराम करने लगी। 

जैसे ही 2014 के लोकसभा चुनावों की मुहिम तेजी पकड़ रही थी जमीनी स्तर पर रिपोर्टों ने दर्शाया कि यह कांग्रेस के लिए घोर पराजय है। रायबरेली और अमेठी कांग्रेस खो सकती थी। इसी ने अलार्म की घंटियां बजा दीं। सोनिया गांधी तथा राहुल की संभावनाओं को देखते हुए लगता था कि वे 10 जनपथ को खो देंगे। इस बीच प्रियंका गांधी रायबरेली तथा अमेठी दोनों ही चुनावी रणभूमि में कूद पड़ी। अपनी मां तथा भाई के लिए प्रियंका ने दोनों सीटें कायम रखीं। यू.पी. में यह एकमात्र दो सीटें थीं जहां पार्टी ने जीत हासिल की। एक निराशाजनक प्रदर्शन के बाद ऐसा लगा कि प्रियंका का एकल प्रयास गांधियों के लिए कुछ विकल्प भरे प्रबंधन कर देगा और कांग्रेस का गौरव कायम रहेगा। भारत में सभी ओर राजनीति एक सातों दिन चौबीस घंटे का कारोबार है। पार्टी कार्यकत्र्ता, संघटक यह अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं कि वह अपने मास्टर के बैगों के इर्द-गिर्द गलियारे में घूमते रहे। आप पार्ट टाइम राजनीतिज्ञ नहीं हो सकते। रायबरेली तथा अमेठी में आप हिम्मत नहीं दिखा सकते। 

राहुल गांधी की यह आदत है कि वह बिना किसी नोटिस के अपना बैग उठाकर अदृश्य हो जाते हैं जिन्हें ढूंढा नहीं जा सकता। वह विदेशी लोकेशन्स में हो सकते हैं। 2013 में कंफैडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सी.आई.आई.) में उन्होंने गोरखपुर से मुम्बई तक लोकमान्य तिलक एक्सप्रैस में यात्रा की। उस रूट पर राहुल ने कारपेंटर गिरीश तथा अन्यों के साथ मुलाकात की जिनको उन्होंने भारत की आकांक्षाओं के चिन्ह के तौर पर दर्शाया। पंचायती राज सिस्टम को और ज्यादा प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी।  मगर उन्होंने इसके बारे में कुछ नहीं किया क्योंकि उनकी पार्टी सत्ता से बाहर थी।  2019 में पार्टी एक बार फिर हवा में उड़ गई। मगर गांधियों का विकल्प क्या है? प्रत्येक हार के बाद इस बात को गुनगुनाया जाता है। 

इस दौरान कुछ बड़े और छोटे नेता पार्टी को छोड़ चुके हैं और भाजपा में शामिल हुए हैं। 23 वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के एक समूह ने अगस्त 2020 में सोनिया गांधी को एक बेकरारी में पत्र लिखा। उन्होंने कहा कि पार्टी के निर्णयों का कोई संज्ञान लें कि पार्टी कहां जा रही है? इसका कोई जवाब नहीं आया। पार्टी नेतृत्व में कुछ बदलाव होने लाजिमी हैं। अगले वर्ष 5 राज्यों के चुनाव होने हैं और हम हाथ पर हाथ धर कर बैठे हैं। चुनाव आने दें, पार्टी एक बार फिर परिदृश्य से गायब हो जाएगी। इस संकट की घड़ी में आप सब कांग्रेस के प्रति कठोर क्यों हैं?

देखें लखीमपुर खीरी में प्रियंका की तरफ बहुत ज्यादा ध्यान जा रहा है क्योंकि वह जानती हैं कि कांग्रेस के लिए यह पल रिकवरी जैसा होगा। लखीमपुरी में एक भयानक त्रासदी हुई जिसकी तरफ सभी का ध्यान गया। मगर वास्तविकता यह है कि सभी कैमरे प्रियंका गांधी पर केन्द्रित थे। राहुल तथा प्रियंका मोदी के लिए कोई खतरा नहीं। इसके विपरीत दोनों पर ज्यादा फोकस रहा। दोनों पार्टियों को सहयोगी ढूंढने होंगे जिनके बिना 2024 के चुनावों के लिए कोई रणनीति बन नहीं सकती।-सईद नकवी
        

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