Edited By ,Updated: 20 Feb, 2021 05:05 AM
एक ओर मोदी सरकार तथा भाजपा नेता अपनी उपलब्धियों को गिनाते थकते नहीं और विपक्ष की किसी भी आलोचना या सुझाव को दर-किनार कर अपनी योजनाओं को लागू करने में अडिग रहते हैं। दूसरी ओर विपक्षी राजनीतिक दल विशेष कर वामदल जो नव उदारवादी आर्थिक...
एक ओर मोदी सरकार तथा भाजपा नेता अपनी उपलब्धियों को गिनाते थकते नहीं और विपक्ष की किसी भी आलोचना या सुझाव को दर-किनार कर अपनी योजनाओं को लागू करने में अडिग रहते हैं। दूसरी ओर विपक्षी राजनीतिक दल विशेष कर वामदल जो नव उदारवादी आर्थिक नीतियों तथा मोदी सरकार के साम्प्रदायिक एजैंडे को बेपर्दा करके लोक संघर्ष को एकजुट कर रही हैं। सरकार इनके खिलाफ हर प्रकार की गुमराह करने वाली प्रहार तथा दमनकारी नीतियों को तेजी से अमल में ला रही है।
वार्षिक बजट को सरकारी पक्ष ‘विकास मुखी’, ‘गरीब लोगों की भलाई के लिए’, ‘फिर आत्मनिर्भर भारत के लिए’ इत्यादि कह कर प्रशंसा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। जबकि विपक्षी पाॢटयां इस बजट को केवल मोदी विकास माडल मतलब कि लोक विरोधी नीतियों को आगे बढ़ाने के एक कदम के तौर पर देख रही हैं।
कथनी और करनी तथा दावों तथा नतीजों का अंतर तो तथ्यों की कसौटी पर ही किया जा सकता है। मात्र आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी मोदी सरकार की ओर से वह सब बदलने का प्रयास किया जा रहा है जो स्वतंत्रता संग्राम के लक्ष्यों, अनुभवों तथा लोक भावनाओं के अनुकूल पूरा करने के प्रयत्नों के तहत किया गया था।
मोदी सरकार के बड़े आर्थिक फैसलों में नोटबंदी लागू कर काले धन का खात्मा तथा धनवान लोगों की विदेशी बैंकों में जमा राशि को वापस भारत में लाकर लोक कल्याण हेतु खर्च करने का वायदा किया गया था। लाखों लोगों को अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ा, सैंकड़ों लोगों की मौत, छोटे दुकानदारों तथा व्यापारियों की तबाही के बिना क्या मोदी सरकार बता सकती है कि नई मुद्रा को छापने के लिए अरबों रुपए का खर्चा कर इस नोटबंदी का कौन-सा लाभ हुआ है?
कमाल की बात यह है कि नोटबंदी के अवसर पर पुरानी करंसी जितनी मात्रा में थी उसका 99 प्रतिशत बैंकों में फिर से जमा हो गया। दूसरे शब्दों में कहें तो काले धन वालों ने अपने पैसे को बैंकों में जमा कर ‘सफेद’ कर लिया। कालाबाजारी करने वाले कितने आरोपी जेलों की सलाखों के पीछे बंद हैं तथा कितना पैसा विदेशों में जमा काले धन में से वापस लाकर लोगों के खातों में जमा किया गया है।
सरकार ने इसका सीधे तौर पर कभी भी जवाब नहीं दिया। जी.एस.टी. लागू करने को दूसरी आजादी का नाम देकर लोगों को मूर्ख बनाया गया। देश के विभिन्न राज्यों की आय, जरूरतों तथा विकास में फर्क के मद्देनजर जी.एस.टी. लागू करना अपने आप में एक बहस का मुद्दा है। इससे राज्यों के वित्तीय अधिकारों के ऊपर बड़ा कट लग गया तथा सभी वित्तीय स्रोत केंद्र सरकार के सुपुर्द कर दिए गए। इस नए कानून के साथ केंद्र की सरकार के लिए विपक्षी दलों का राज्य सरकारों के साथ भेदभाव करने का रास्ता और चौड़ा हो गया।
कोरोना महामारी के दौरान देश के करोड़ों लोगों ने नौकरियों से हाथ धो डाला और भूखे मरने लगे हैं। ये लोग दयनीय जीवन गुजारने पर मजबूर हैं परन्तु मोदी सरकार की छत्रछाया के नीचे कार्पोरेट घरानों की सम्पत्तियों में अनगिनत बढ़ौतरी हुई है। धन की यह बढ़ौतरी किसी जादू-टोने या नोटों का फल देने वाले वृक्षों के माध्यम से नहीं हुई। इसका असल भेद सरकार को जरूर बताना पड़ेगा। शिक्षा तथा सेहत सेवाओं का व्यापारीकरण कर क्या बहुगिनती लोगों को अशिक्षित रहने तथा बीमार होकर मरने की आजादी तो नहीं दे रही मोदी सरकार?
दुनिया भर के गरीब कम विकसित तथा विकासशील देश जहां पर भी नई उदारवादी आर्थिक नीतियों के तहत निजीकरण का रास्ता पकड़ा गया है, वहां प्रकृतिक स्रोतों की तबाही तथा आम लोगों के सिरों के ऊपर मुश्किलों के पहाड़ टूट पड़े हैं। अब कृषि संबंधी पास किए गए तीन कानूनों को सिर्फ किसानों को ही नहीं जमीन से वंचित किया जाएगा बल्कि इससे खाद्य पदार्थों के भंडारण की छूट देकर समस्त उपभोक्ताओं को नकली कमी पैदा कर महंगाई के विशाल दैत्य के सुपुर्द किया जाएगा।
क्या मोदी सरकार उपरोक्त उठाए गए आर्थिक कदमों से जनसाधारण को हुए फायदों की सूची दे सकती है? तेल सैक्टर को निजी हाथों को सौंपने की कृपा के कारण ही पैट्रोल आज 100 रुपए लीटर से ऊपर चला गया है तथा हर रोज रसोई गैस के सिलैंडर की कीमत बढ़ती जा रही है। सरकारी क्षेत्र को निजी हाथों में बेचने से हर चीज तथा सामाजिक सेवाओं का हाल पैट्रोल/डीजल की बढ़ रही कीमतों जैसा होना तय है। अफसोस है कि मोदी सरकार की ओर से उठाए जा रहे आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक कदम देश के लोगों के जीवन स्तर तथा आपसी भाईचारे के भाव को नए खतरे पैदा कर रहे हैं। देश की मजबूती केवल सैन्य तथा हथियारों की ताकत के ऊपर ही नहीं बल्कि आर्थिक तौर पर खुशहाल तथा प्रेम भरे जीवन के नए सपने देखने के साथ भी बंधी हुई है।-मंगत राम पासला