‘मैं चाहे जो भी करूं मेरी मर्जी’

Edited By ,Updated: 25 May, 2024 05:00 AM

whatever i want to do is my wish

इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार, जब कोई विशेष कानून बनाती है जैसे कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, बहुत सोच समझकर और हरेक चीज का बारीकी से ध्यान रखकर काम करती है। अब इन कानूनों और इनके अन्तर्गत दिए गए प्रावधानों पर अमल न के बराबर हो तो फिर इनका दुरुपयोग होना...

इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार, जब कोई विशेष कानून बनाती है जैसे कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, बहुत सोच समझकर और हरेक चीज का बारीकी से ध्यान रखकर काम करती है। अब इन कानूनों और इनके अन्तर्गत दिए गए प्रावधानों पर अमल न के बराबर हो तो फिर इनका दुरुपयोग होना तो निश्चित ही है। 

कानून की आत्मा : किशोर यानी 16 से 18 वर्ष की आयु में यदि लड़के या लड़की से साधारण या गंभीर या फिर जघन्य अर्थात इंसानियत को झिंझोडऩे जैसा अपराध होता है तो इसके लिए 8-9 साल पहले बना कानून इन्हें अपना जीवन एक नए सिरे से शुरू करने और अपराध न करने की मानसिकता बनाने का रास्ता दिखाता है। अब हमारे देश में क्योंकि इस कानून पर अमल ही नहीं हुआ और हुआ भी तो वह केवल लीपापोती की श्रेणी में आएगा तो फिर इसका दुरुपयोग तो होना तय है। वकील, पुलिस और अदालतों से अपने मुताबिक फैसले लेने वालों की कोई कमी तो है नहीं, इसलिए कानून को भाड़ झोंकने भेज दिया जाता है और ‘मैं चाहे जो भी करूं मेरी मर्जी’ हावी हो जाती है। कानून के गलत इस्तेमाल के सबसे बड़े उदाहरणों में एक तो निर्भया मामला था और दूसरा पुणे में एक नाबालिग द्वारा शराब पीकर अपनी महंगी गाड़ी से 2 लोगों को यमलोक पहुंचा देना। इसलिए जरूरी हो जाता है यह समझना कि आखिर कानून का ऐसा करने वालों के लिए सुरक्षा कवच की तरह बन जाना कैसे संभव हो जाता है? 

सबसे पहले यह जान लीजिए कि यह कानून ऐसे किशोर वर्ग के लिए बना था जो यदि ऐसा अपराध करते हैं जिसकी सजा किसी बालिग को 7 या अधिक साल की दी जा सकती है तो उन्हें एक अवसर मिलना चाहिए कि वे अपने को बदल सकें और दोबारा कोई जुर्म न करें। इनमें वे किशोर आते हैं जिन्हें उनके घरों से निकाल दिया गया हो, सड़कों पर भीख मांगते हों, उनसे कल कारखानों में मजदूरी करवाई जाती हो, अनाथ हों, यौन हिंसा के शिकार हों, खरीदा या बेचा जाता हो, नफरत से देखा जाता हो, असहाय हों, नशे की लत लग गई हो, उनकी सुध लेने या सुरक्षा करने वाला कोई न हो। वे बड़े यानी बालिग होकर अपराधी, हिंसक और समाज के लिए खतरा न बन जाएं, कानून बनाकर उनकी हिफाजत करने और अच्छा जीवन व्यतीत करने की व्यवस्था की जानी थी। 

प्रश्न उठता है कि क्या 18 वर्ष का होते ही उनके साथ बालिगों जैसा व्यवहार होगा? इसकी भी व्यवस्था इस कानून में है। किशोर आयु के अपराधियों के साथ 21 वर्ष का होने तक इसी कानून के अनुसार व्यवहार किया जाएगा। यदि अधिकतम सजा अर्थात 7 साल की अवधि पूरी नहीं हुई तो उन्हें जेल या किसी मान्यता प्राप्त संस्थान में बाकी समय के लिए रखा जा सकता है। अब कानून को अपनी मर्जी से कैसे अपने मुताबिक किया जाता है, यह देखते हैं। निर्भया मामले में नाबालिग अपराधी गरीब वर्ग का था लेकिन सब से अधिक हिंसक भी वही था। वह बरी हो गया और भगवान जाने अब कहां होगा, क्या कर रहा होगा, फिर से अपराध करने लगा होगा या सुधर गया होगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। 

अब दूसरे मामले में नाबालिग एक अरबपति परिवार से है, उसके लिए दुनिया के सभी ऐशो आराम के साधन तैयार हैं और वह किसी भी तरह से मौजमस्ती कर सकता है, किसी भी कानून को धत्ता बता सकता है और पुलिस तथा प्रशासन और कानून उसके आगे हाथ बांधे खड़े नजर आते हैं। ऐसा इसलिए कि वह जबरदस्त अमीरी में पला है। विडंबना यह है कि उसे सभी तरह की सुरक्षा मिल जाती है, कानून के उन प्रावधानों को अमल में लाया जाता है जो उसके पक्ष में हैं। उसे बालिग यानी समझ से काम लेने वाला बनने में कुछ वक्त बचा है, इसलिए वह मासूम है और उसे बचा लिया जाता है। 

कानून के अनुसार कोई व्यवस्था नहीं :  कानून तो बन गया और बहुत ही बढिय़ा, शानदार और वाह वाह करने वाला बना। अफसोस इस बात का है कि उस पर कहीं कोई अमल करने या कानून में स्पष्ट रूप से कहे गए और किए जाने वाले इंतजाम पूरी तरह नदारद हैं। मन में यह विचार आता है कि ऐसा कानून क्यों बना जिस पर अमल नहीं करना है? कानून के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों से उम्मीद थी कि वे संस्थान बनाएंगे, राष्ट्रीय तथा राज्य आयोग गठित करेंगे ताकि किशोर अपराधियों को संरक्षण और उनका समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जाना सुनिश्चित हो। जैसा कि अक्सर होता है, हो सकता है कागजों में यह सब खानापूॢत कर ली गई हो, सरकारी खजाने यानी आम आदमी से मिले टैक्स के रूप में मिला धन उन्हें दे दिया गया हो, फर्जी संस्थान खड़े हो गए हों, कानून के अनुसार चिकित्सा, पौष्टिक भोजन, शिक्षा और दूसरी आवश्यक वस्तुओं के लिए विशाल धन राशि मंजूर करने के बाद आपस में उसका बंटवारा हो गया हो और कुछ लोग इस कानून की बदौलत अमीर बन चुके हों? 

वास्तविकता क्या है? : अगर इस कानून पर थोड़ा-सा अमल कर लिया जाता तो सड़कों पर, धार्मिक पूजा स्थलों के बाहर, स्टेशन और अन्य स्थानों पर भीख मांगते किशोर नहीं मिलते अपने खुद के बनाए जख्मों को दिखाकर हमदर्दी की याचना करते दिखाई नहीं देते, किसी माफिया या गैंग के शिकार नहीं बनते अपने शरीर के अंगों की कीमत लगाते नहीं पाए जाते अमानुषिक अपराध नहीं करते, मामूली चोरी चकारी करने से भी दूर रहते क्योंकि इनमें इतना परिवर्तन हो जाता है कि वे समाज के लिए उपयोगी हो जाते।-पूरन चंद सरीन
 

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