Edited By ,Updated: 24 Dec, 2023 05:08 AM
महाभारत की द्रौपदी का नाम पूरी दुनिया जानती है। पांच पांडवों की एक पत्नी द्रौपदी। महाभारत को गुजरे 5 हजार साल से अधिक हो चुके हैं। लोग कहते हैं कि महाभारत के साथ द्रौपदी भी चली गई, लेकिन 5 पतियों वाली द्रौपदी आज भी जिंदा है।
महाभारत की द्रौपदी का नाम पूरी दुनिया जानती है। पांच पांडवों की एक पत्नी द्रौपदी। महाभारत को गुजरे 5 हजार साल से अधिक हो चुके हैं। लोग कहते हैं कि महाभारत के साथ द्रौपदी भी चली गई, लेकिन 5 पतियों वाली द्रौपदी आज भी जिंदा है। उत्तराखंड के पहाड़ों की जौनसारी जनजाति में आज भी एक महिला को सभी भाइयों की पत्नी बनाने की प्रथा है, जिसमें जौनसारी जनजाति की महिलाएं आज भी घुट रही हैं।
इस कुप्रथा को उत्तराखंड के लाखामंडल की महिलाएं आज भी झेल रही हैं। लाखामंडल में जौनसारी जनजाति में आज भी बहुपति का रिवाज है। पत्नी घर में एक आदमी से शादी करती है, लेकिन वैवाहिक संबंध उसे घर के सारे पुरुषों के साथ निभाने पड़ते हैं। स्वत: ही वेे सारे भाइयों की ब्याहता बन जाती है। उसे हर भाई के साथ संबंध बनाकर उसे खुश रखना पड़ता है। उसके जीवन में पत्नी की भूमिका निभानी होती है।
जौनसारी जनजाति की महिलाओं को आज भी द्रौपदी बनना पड़ता है। लाखामंडल के वरिष्ठ जनों की मानें तो बहुपति प्रथा हमारी जनजाति का बड़ा सांस्कृतिक अंग है। यह हमारी पहचान है। हम इसे नहीं छोड़ सकते। जनजाति की महिलाएं कहती हैं कि ये रिवाज हमारे लिए कुप्रथा है। इसने हमारे सामाजिक, निजी, मानसिक और पारिवारिक जीवन को उधेड़ कर रख दिया है। बहुपति वाली महिलाओं को एक नहीं, कई पतियों को संतुष्ट करना पड़ता है। उनके पोषण का हर जिम्मा उठाना पड़ता है।
अंत तक महिला इसी उलझन में रहती है कि वो घर में किसे अपना पति माने, जिसके साथ वो जीवन के सुख, दुख सांझा कर सके। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, जौनसारी जनजाति में प्रति 1000 पुरुषों पर केवल 863 महिलाएं हैं। पिछले कई दशकों में यहां भ्रूण लिंग हत्या के मामले बढऩे से लिंगानुपात के हालात और बदतर हुए हैं। समाज शास्त्री कहते हैं कि इन क्षेत्रों में आज भी इस प्रथा के प्रचलित होने का बड़ा कारण बढ़ता लिंगानुपात है। इन इलाकों में आज भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या बहुत कम है। महिलाओं की दर कम होने के कारण यहां लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिलतीं, इसलिए एक लड़की हर भाई की पत्नी होती है।
दरअसल जौनसारी जनजाति के लोग पांडवों को अपना पूर्वज मानते हैं। स्वयं को पांडवों का वंशज कहने के कारण इस जनजाति में बहुपतित्व यानी एक से ज्यादा पतियों का प्रचलन है। जौनसारी के लोग कहते हैं कि बहुपतित्व प्रथा हमारे पितर पांडवों को हमारा अर्पण है। जब तक हमारे घरों में बहुपतित्व प्रथा निभाई नहीं जाती, जीवन अधूरा माना जाता है, इसलिए बहुपतित्व प्रथा महिलाओं पर एक तरह से थोपी जाती है। न चाहते हुए भी महिलाओं को इसे निभाना पड़ता है, जिससे महिला उबर नहीं सकती।
एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तरी भारत में हिमालय के आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले और तिब्बत के क्षेत्र में यह प्रथा आज भी जीवित है। बहुपतित्व प्रथा के पीछे एक बड़ा कारण संपत्ति का बंटवारा, इससे जुड़े विवाद भी हैं। लोग मानते हैं कि अगर हर भाई की अपनी पत्नी, बच्चे होंगे तो आम लोगों की तरह उनकी जमीनें बंट जाएंगी। संपत्ति पर झगड़ा होगा। अगर घर में एक महिला होगी तो संपत्ति उसी की संतान को जाएगी। पहाड़ों में कृषि योग्य भूमि का विखंडन रोकना बड़ी चुनौती है। जौनसारी जनजाति खेती और पशुपालन से गुजारा करती है। पुश्तैनी संपत्ति, पशुओं के बंटवारे से बचने के लिए एक पत्नी से सभी भाइयों की शादी हो जाती है।
जौनसारी जनजाति के बुजुर्ग भले इस प्रथा को अपनाने के तमाम कारण मानते हों, लेकिन ये प्रथा कहीं न कहीं इस जनजाति की महिलाओं के लिए बड़ा दर्द बन चुकी है। ऐसी पीड़ा, जिसे यह महिला किसी से कह नहीं सकती। पीढ़ी दर पीढ़ी यह प्रथा हर महिला को निभानी है। बहुपतित्व में महिला को दूसरी शादी करने का हक नहीं है, लेकिन पुरुष एक के बाद दूसरी शादी करने का हकदार है। अगर एक पति मर जाता है तो महिला को उसकी विधवा बनकर रहना पड़ता है।
एक ही जीवन में महिला विवाहित, विधवा दो किरदार निभाती है। महिला को एक साथ कई पुरुषों से संबंध बनाने पड़ते हैं, जो उसकी भावनाओं पर बड़ा आघात है। महिला किसकी पत्नी है, यह मृत्यु तक तय नहीं हो पाता। महिला से पैदा होने वाली संतानें भी ताउम्र असली पिता से वंचित रहती हैं। पत्नी एक भाई के साथ रहती है तो दूसरे भाई में हिंसक, भेदभाव, ईष्र्या आ जाती है, जिसका शिकार महिला को होना पड़ता है। इस तरह तमाम दुश्वारियां हैं, जिनका सामना जौनसारी महिलाएं करती हैं।
महिलाओं को शारीरिक तौर पर भी बहुत कुछ झेलना पड़ता है। कई प्रकार के यौन रोगों की शिकार हो जाती हैं। अमरीका में हुए एक शोध में खुलासा हुआ कि एक से अधिक पति वाली महिलाओं के बच्चे भावनात्मक रूप से शारीरिक शोषण का शिकार होते हैं। ऐसी बच्चियां अपनी मां को बहुपतित्व जीवन में फंसा देखकर खुद भी भावनात्मक दुव्र्यवहार का शिकार होती हैं। बहुपतित्व प्रथा से जुड़ी महिलाओं में वैवाहिक असंतुष्टि, अवसाद, शत्रुता का भाव, संदेह की भावना, तनाव, आत्मसम्मान की कमी, अकेलेपन की तमाम बीमारियां पाई जाती हैं। जौनसारी जनजाति की महिलाएं भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 में वर्णित गरिमापूर्ण जीवन जीने से वंचित रहती हैं, जो लैंगिक असमानता का बड़ा उदाहरण हैं। -सीमा अग्रवाल