Edited By Supreet Kaur,Updated: 07 Sep, 2018 01:34 PM
बिजली क्षेत्र की दबाव वाली कंपनियों के लिए निपटान ढूंढने में विफल रहने के बाद बैंक 19 कंपनियों के मामले को राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) को भेज सकते हैं। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि इनमें किसी भी खरीदार ने दिलचस्पी...
नई दिल्लीः बिजली क्षेत्र की दबाव वाली कंपनियों के लिए निपटान ढूंढने में विफल रहने के बाद बैंक 19 कंपनियों के मामले को राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) को भेज सकते हैं। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि इनमें किसी भी खरीदार ने दिलचस्पी नहीं दिखाई, जिसके चलते स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बैंकरप्सी कोर्ट के बाहर इन कंपनियों के लिए रिजॉल्यूशन प्लान पेश नहीं कर सका। इनमें बैंकों के 1.8 लाख रुपए फंसे हुए हैं।
एक सूत्र ने बताया, 'लेंडर्स लोन के एकमुश्त निपटारे या कंपनी को रिवाइव करने के लिए प्रमोटर को बदलने पर विचार कर रहे थे, लेकिन सभी लेंडर्स के सहमत न होने के कारण लीड बैंक के पास उन्हें बैंकरप्सी कोर्ट के पास ले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।' लेंडर्स केएसके महानंदी के लिए अडानी पावर, कोस्टल एनरजन के लिए इडलवाइज एआरसी और एसकेएस पावर के लिए एग्री ट्रेड रिसोर्सेज के साथ डील करने के काफी करीब थे। प्रयागराज पावर के लिए टाटा ग्रुप के समर्थन वाली रिसर्जेंट पावर और जेएसडब्ल्यू एनर्जी के बीच टकराव दिखा था। सूत्रों ने बताया कि बहुत से मामलों में वैल्यू के लिहाज से केवल 40 से 60 फीसदी बॉरोअर्स से सहमति मिली थी। सरकारी पावर जेनरेशन कंपनी एनटीपीसी ने एक भी प्रोजेक्ट के लिए बिड नहीं दी। एनटीपीसी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह केवल एनसीएलटी के रास्ते से बिड देगी।
भारतीय रिजर्व बैंक ने 12 फरवरी के अपने सर्कुलर में बैंकों से कहा था कि वे 2,000 करोड़ रुपए से ऊपर के किसी परियोजना में एक दिन का डिफॉल्ट होने की स्थिति में भी उसे दबाव वाली संपत्ति घोषित करें और निपटान प्रक्रिया को 180 दिन में पूरा करें। यह सर्कुलर एक मार्च से लागू हुआ है और 180 दिन की समयसीमा 27 अगस्त को पूरी हो रही है।