विनिवेश का खाका हो रहा तैयार

Edited By ,Updated: 04 Mar, 2015 12:19 PM

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वित्त वर्ष 2015-16 में अब तक के सबसे अधिक 69,500 करोड़ रुपए के विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार कई कंपनियों के विनिवेश पर बात कर रही है

नई दिल्लीः वित्त वर्ष 2015-16 में अब तक के सबसे अधिक 69,500 करोड़ रुपए के विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार कई कंपनियों के विनिवेश पर बात कर रही है और इनमें से कुछ नियामकीय मंजूरी के विभिन्न चरणों में है। यह बात विनिवेश सचिव आराधना जौहरी ने कही। 
 
जौहरी ने कहा कि जिन कंपनियों के विनिवेश का विचार किया जा रहा है, उससे मौजूदा मूल्यांकन पर सरकार को 30,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम मिल सकती है। बजट बाद अपने पहले साक्षात्कार में जौहरी ने कहा, 'जिन कंपनियों के लिए हमने मंजूरी लेने की पहल की है, उसके शेयरों के विनिवेश से 30,000 करोड़ रुपए से ज्यादा मिल सकते हैं।' 
 
उन्होंने कहा कि 2015-16 के विनिवेश लक्ष्य को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है, जिसमें से 41,000 करोड़ रुपए सूचीबद्घ सार्वजनिक उपक्रमों में अल्पांश हिस्सेदारी बेचकर जुटाए जा सकते हैं और 28,500 करोड़ रुपए रणनीतिक निवेश से आ सकते हैं।
 
हालांकि किन कंपनियों के शेयरों में विनिवेश किया जाना है, उसके नाम का खुलासा जौहरी ने नहीं किया, लेकिन इनमें 5 से 10 फीसदी हिस्सेदारी का विनिवेश हो सकता है। इन कंपनियों में नालको, एनएमडीसी, एनएचपीसी, बीएचईएल, नेयवेली लिग्नाइट, इंडियन ऑयल, कॉनकॉर, राष्ट्रीय केमिकल्स ऐंड फर्टिलाइजर्स, हिंदुस्तान कॉपर एवं ओएनजीसी जैसी कंपनियां शामिल हो सकती हैं। इन कंपनियों के नाम उस आधार पर बताए जा रहे हैं जो पिछले कुछ महीनों के दौरान कैबिनेट के पास आए थे और इनमें सरकार की 75 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी है, जबकि सेबी के नियमों के मुताबिक 2017 तक इनमें हिस्सेदारी को कम करना है।
 
हालांकि ओएनजीसी के बारे में जौहरी ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अभी इसमें हिस्सेदारी की बिक्री नहीं होगी और सरकार द्वारा सब्सिडी साझेदारी प्रणाली तय करने के बाद ही इसके विनिवेश पर विचार किया जा सकता है, वहीं कच्चे तेल की कीमतों में भी सुधार आने का इंतजार किया जाएगा। 
 
उन्होंने कहा, 'जहां तक ओएनजीसी की बात है तो यह अभी विनिवेश के लिए तैयार नहीं है।' सरकार ने 2014-15 में ओएनजीसी की 5 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की योजना बनाई थी। लेकिन वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट और सब्सिडी साझेदारी प्रणाली में देरी से इसके विनिवेश की योजना को फिलहाल टाल दिया गया।  
 
 
 

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