Edited By Naresh Kumar,Updated: 06 Jun, 2019 10:42 AM
नोटबंदी और जी.एस.टी. लागू होने के बाद देश का कृषि सैक्टर काफी दबाव में रहा है। पंजाब में आलू किसानों के अलावा महाराष्ट्र के प्याज व हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती करने वाले किसानों पर भी इसकी मार पड़ी
जालंधर(नरेश कुमार): नोटबंदी और जी.एस.टी. लागू होने के बाद देश का कृषि सैक्टर काफी दबाव में रहा है। पंजाब में आलू किसानों के अलावा महाराष्ट्र के प्याज व हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती करने वाले किसानों पर भी इसकी मार पड़ी क्योंकि बाजार में नकदी खत्म होने के कारण लोगों की खरीद क्षमता पर इसका असर पड़ा। इससे किसान सीधे तौर पर प्रभावित हुए। आखिरी दौर में सरकार को भी इस बात का अहसास हुआ और उसने किसानों के लिए 6,000 रुपए प्रति वर्ष नकद ट्रांसफर करने की योजना भी बनाई लेकिन किसानों को यह योजना नाकाफी लग रही है और उन्हें बजट से काफी उम्मीदें हैं। सबसे बड़ी उम्मीद एग्रीकल्चर इनपुट पर जी.एस.टी. हटाने की है।
किसान को फसल पर जी.एस.टी. मिले
यदि कोई फैक्टरी मालिक किसी भी तरह के सामान का निर्माण करता है तो उसमें वह कई तरह का कच्चा माल इस्तेमाल करता है। फैक्टरी मालिक कच्चे माल की खरीद के लिए जो जी.एस.टी. देता है, उसका इनपुट क्रैडिट वह क्लेम कर लेता है और तैयार किए गए सामान के बाजार में जाने पर आखिरी उपभोक्ता को जी.एस.टी. देना पड़ता है। लिहाजा फैक्टरी मालिक पर जी.एस.टी. का बोझ नहीं पड़ता लेकिन किसान होने के नाते हम खेत में जो भी चीज पैदा करते हैं, उसके लिए इस्तेमाल होने वाले सामान पर जी.एस.टी. लगता है। मसलन खादें व कीटनाशक के अलावा कृषि के तमाम औजार जी.एस.टी. के दायरे में हैं लेकिन हमें इसका इनपुट क्रैडिट नहीं मिलता और किसान तमाम तरह के इनपुट का आखिरी कंज्यूमर बन जाता है। यह जी.एस.टी. किसानों से हटाया जाना चाहिए।
-जंग बहादुर सिंह संघा, महासचिव कंफैडरेशन ऑफ पोटैटो सीड फार्मर
मार्कीटिंग ढांचा सुधारने की व्यवस्था हो
देश में किसान के सामने सबसे बड़ी समस्या एग्रीकल्चर इनपुट के महंगा होने की है। सरकार ने इस इनपुट पर सारी सबसिडी खत्म कर दी है। किसान की पैदावार 8 साल पुरानी कीमत पर बिक रही है लेकिन इनपुट के भाव में तेजी से वृद्धि हुई है। कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के कारण डीजल की कीमतें बढ़ी हैं जबकि इससे खादें भी महंगी हुई हैं। इसके अलावा कृषि के औजार महंगे हुए हैं लेकिन किसान की आमदन नहीं बढ़ी। बजट में इन सब बातों का ध्यान रखने के अलावा इस बात का जरूर ध्यान रखा जाए कि देश का किसान मंडियों की कमी के कारण आढ़तियों को औने-पौने दाम पर फसल बेचता है। लिहाजा देश में मार्कीटिंग का आधारभूत ढांचा तैयार करने के लिए बजट में व्यवस्था की जानी चाहिए।
-पवनजोत सिंह, किसान, जालंधर