Edited By Supreet Kaur,Updated: 06 Aug, 2018 10:35 AM
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत से लेकर यूरोप तक केंद्रीय बैंकों द्वारा इस समय उठाए जा रहे कदमों को एक ही नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए लेकिन कुल मिलाकर ये कदम अभी तक चल रही उत्प्रेरक मौद्रिक नीति (सस्ते कर्ज की नीति) से पीछे हटने की आपसी तालमेल के...
बिजनेस डेस्कः विशेषज्ञों का कहना है कि भारत से लेकर यूरोप तक केंद्रीय बैंकों द्वारा इस समय उठाए जा रहे कदमों को एक ही नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए लेकिन कुल मिलाकर ये कदम अभी तक चल रही उत्प्रेरक मौद्रिक नीति (सस्ते कर्ज की नीति) से पीछे हटने की आपसी तालमेल के साथ चल रही कवाद का संकेत है।
वैश्विक आर्थिक सुधार के अनियमित संकेतों के बीच पिछले दो सप्ताह में उभरते एवं विकसित बाजारों के कम से कम पांच केंद्रीय बैंकों ने मौद्रिक नीतियों की घोषणा की है। इनमें से भारतीय रिजर्व बैंक और बैंक ऑफ इंग्लैंड ने दरों में वृद्धि की है जबकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ जापान और यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने दरें यथावत रखा है। हालांकि फेडरल रिजर्व और ईसीबी ने आने वाले समय में सख्त मौद्रिक नीति की संभावना के संकेत दिये हैं। एचएसबीसी इंडिया के प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) मनीष वाधवान ने कहा, ‘‘केंद्रीय रिजर्व बैंकों के कदम मौद्रिक प्रोत्साहन की नीत से तालमेल के साथ पीछे हटने का संकेत देते हैं। केंद्रीय बैंकों ने एक दशक पहले वैश्विक आर्थिक संकट के समय आर्थिक गतिविधियों के उत्प्रेरण के लिए मौद्रिक प्रोत्साहन के कदम उठाये थे।’’
डीबीएस बैंक की इंडिया इकोनॉमिस्ट राधिका राव ने कहा कि ब्याज दरों के वर्तमान चक्र में उभरते बाजारों एवं विकसित बाजारों को एक ही नजरिए से नहीं देखा जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘ जहां एक ओर विकसित बाजार घरेलू परिस्थितयों के जवाब में अपनी मौद्रिक नीति को पुन: सामान्य बना रहे हैं वहीं दूसरी ओर उभरते बाजारों ने (विकसित देशों की दरों की तुलना में) अपने ब्याज के अंतर को बनाए रखने या बढ़ाने की रक्षात्मक नणनीति अपना रखी है ताकि विनिमय दर स्थिरता के साथ पूंजी प्रवाह को अपनी ओर जा सके ।’’ भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया, तुर्की और ब्राजील समेत कई उभरते बाजारों में केंद्रीय बैंकों ने पिछले एक साल में अपनी मुद्राओं के दबाव में मौद्रिक नीतियां सख्त की हैं।