बासमती निर्यात से कंपनियों की चांदी,रकबा बढ़ने का अनुमान

Edited By ,Updated: 25 May, 2017 12:39 PM

estimates of the increase of silver composition of companies by basmati exports

अच्छे मॉनसून और बासमती धान के रकबे में बढ़ोतरी के अनुमानों से चालू सीजन 2017-18 के दौरान बासमती चावल निर्यातकों को बेहतर आमदनी की उम्मीद है

नई दिल्लीः अच्छे मॉनसून और बासमती धान के रकबे में बढ़ोतरी के अनुमानों से चालू सीजन 2017-18 के दौरान बासमती चावल निर्यातकों को बेहतर आमदनी की उम्मीद है। देश में कुल धान उत्पादन में बासमती का हिस्सा करीब 66 लाख टन है। मौसम अधिकारियों ने इस साल मॉनसून सत्र अच्छा रहने का पूर्वानुमान जारी किया है। उधर पिछले साल किसानों को बासमती के अच्छे दाम मिलने से इस बार बासमती धान का रकबा बढऩे का अनुमान है। पिछले साल बासमती का रकबा करीब 16 लाख हेक्टेयर था।

अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ (ए.आई.आर.ई.ए.) के कार्यकारी निदेशक आर सुंदरेशन ने बताया कि  इस समय बासमती के दाम 2,600 से 3,100 रुपए प्रति क्विंटल मिल रहे हैं, लेकिन बासमती धान का रकबा बढऩे का अनुमान है। रकबे में बढ़ोतरी से बासमती चावल के ज्यादा उत्पादन का संकेत मिल रहा है। इससे खुदरा कीमतें नियंत्रित रहेंगी, जिससे बामसती चावल प्रसंस्करणकर्ता और निर्यातक कम दाम पर बासमती की खरीद कर पाएंगे। इससे उनके शुद्ध मार्जिन में इजाफा होगा।

2016-17 मे बासमती चावल का निर्यात रहा 40 लाख टन 
वर्ष 2016-17 के दौरान बासमती चावल का निर्यात करीब 40 लाख टन रहा, जिसमें से 80 फीसदी निर्यात खाड़ी देशों, ईरान और इराक को हुआ। कोहिनूर फूड्स के संयुक्त प्रबंध निदेशक गुरनाम अरोड़ा ने कहा, 'हमारा अनुमान है कि बासमती का निर्यात 40 लाख टन के पिछले साल के स्तर पर रहेगा क्योंकि नए बाजार नहीं तलाशे गए हैं। इसके अलावा निर्यात की सुस्त वृद्धि के अन्य कई कारण हैं, जिनमें वर्तमान वैश्विक मसलों के अलावा खाड़ी में तेल की कीमतें गिरना और यूरोप में नकारात्मक रुझान आदि शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि देश में बासमती चावल के कुल उत्पादन में 40 से 50 फीसदी योगदान हरियाणा और पंजाब का होता है, जबकि उत्तर प्रदेश का हिस्सा करीब 10 से 15 फीसदी है। शेष उत्पादन उत्तराखंड समेत अन्य कई राज्यों में होता है। यू.पी. राइस मिलर्स एसोसिएशन के संरक्षक संजीव अग्रवाल ने कहा कि उत्तर प्रदेश में बासमती चावल का रकबा करीब 30 फीसदी बढऩे का अनुमान है क्योंकि धान उत्पादक किसानों को सामान्य किस्मों की तुलना में इसके दोगुने दाम मिलते हैं। 

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