उर्वरक कीमतों में समता संतुलित और जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल के लिए आवश्यक

Edited By jyoti choudhary,Updated: 20 Jun, 2023 11:25 AM

fertilizer price parity required for balanced and need based usage

कृ​षि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने हाल ही में यह अनुशंसा की है कि सबसे आम इस्तेमाल वाले उर्वरक यानी यूरिया को भी अन्य उर्वरकों की तरह पोषण आधारित सब्सिडी (एनबीएस) प्रणाली के तहत लाया जाना चाहिए। इस मांग का लक्ष्य यही है कि नाइट्रोजन, फॉस्फोरस,...

नई दिल्लीः कृ​षि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने हाल ही में यह अनुशंसा की है कि सबसे आम इस्तेमाल वाले उर्वरक यानी यूरिया को भी अन्य उर्वरकों की तरह पोषण आधारित सब्सिडी (एनबीएस) प्रणाली के तहत लाया जाना चाहिए। इस मांग का लक्ष्य यही है कि नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और पौधों को पोषण देने वाले अन्य पोषक तत्त्वों से बने उर्वरकों की कीमतों में समता स्थापित की जा सके ताकि उनका संतुलित और जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल किया जा सके।

अन्य उर्वरकों की तुलना में यूरिया की अनावश्यक रूप से कम कीमत के परिणामस्वरूप नाइट्रोजन का अत्य​धिक इस्तेमाल होने लगा तथा समान महत्त्व वाले अन्य पोषकों के इस्तेमाल में कमी देखने को मिली। इनमें से कुछ अहम सूक्ष्म और द्वितीयक पोषक भी हैं जिनका इस्तेमाल पौधों में किया जाता है। मिट्टी की सेहत तथा उसकी उर्वरता पर भी इनका गलत असर हुआ है।

इसका नतीजा यह हुआ कि उतनी ही फसल हासिल करने के लिए पोषक तत्त्वों की ऊंची खुराक का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो यह खेती के लिए अच्छा नहीं होगा। खासतौर पर कृ​षि से होने वाला मुनाफा प्रभावित होगा जो पहले ही काफी कठिनाइयों से जूझ रहा है।

यूरिया पर सीएसीपी की सलाह न तो नई है और न ही वह कुछ अलग है।​ कृ​षि वैज्ञानिक 2010 में एनबीएस व्यवस्था की अवधारणा सामने आने के बाद से ही इसकी मांग करते रहे हैं ताकि उर्वरक सब्सिडी में समता स्थापित की जा सके। बहरहाल तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने इसे नहीं माना क्योंकि यूरिया की कीमत तय करना अभी भी राजनीतिक दृ​ष्टि से संवेदनशील मसला है।

यही कारण है कि उर्वरक स​ब्सिडी में इजाफा जारी रहा और 2022-23 में यह बढ़कर 2.3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई। इस बीच यूरिया की खपत में तेज इजाफा हुआ और यह 33 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया जबकि अन्य उर्वरकों के इस्तेमाल में मामूली इजाफा हुआ। पोषण के इस्तेमाल में असंतुलन और बढ़ता गया जो मिट्टी की सेहत के लिए कतई अच्छा नहीं है। मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के सामने भी ऐसी ही दुविधा है।
 

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