Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Oct, 2017 03:54 PM
उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद कालेधन पर गठित विशेष जांच दल (एस.आई.टी.) सूचना के अधिकार कानून...
नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद कालेधन पर गठित विशेष जांच दल (एस.आई.टी.) सूचना के अधिकार कानून (आर.टी.आई. कानून) के तहत जवाबदेह है। केन्द्रीय सूचना आयोग ने यह व्यवस्था दी है। सूचना आयुक्त बिमल जुल्का ने एस.आई.टी. को आर.टी.आई. कानून के दायरे में लाते हुए कहा कि सरकार का हर कदम जनता की बेहतरी और लोक हित में होना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय के आदेश पर एक सरकारी अधिसूचना के जरिए 2014 में कालेधन पर एस.आई.टी. का गठन किया गया। इसका मकसद अर्थव्यवस्था में कालेधन का आकलन करना और उसके सृजन पर अंकुश के लिए उपाय सुझाने के लिए किया गया। उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एम बी शाह की अध्यक्षता में कालेधन पर एस.आई.टी. का गठन किया गया। एस.आई.टी. विदेशों में रखे गए कालेधन के मामलों की जांच कर रही है। इस मामले में वह भारतीय रिजर्व बैंक, खुफिया ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय और केन्द्रीय जांच ब्यूरो तथा वित्तीय आसूचना इकाई और शोध एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ के अलावा डी.आर.आई. जैसी विभिन्न सरकारी एजेंसियों के साथ समन्वय बिठाते हुए काम रही है।
एस.आई.टी. के आर.टी.आई. कानून में दायरे में आने के संबंध में आर.टी.आई. कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने वित्त मंत्रालय से जानकारी मांगी थी। इसमें उन्होंने सात बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी जिसमें एच.एस.बी.सी. बैंक की जिनेवा शाखा के पूर्व कर्मचारी हर्वे फाल्सिनी द्वारा एस.आई.टी. चेयरमैन को भेजे गए पत्र और उसकी प्रतिलिपी मांगी थी। वित्त मंत्रालय और आयकर विभाग ने आर.टी.आई. के तहत मांगी गई कुछ जानकारी देने से यह कहते हुए इनकार किया कि यह किसी के विश्वास का मामला है और इसमें जांच चल रही है, यह भी कहा गया कि इसमें कुछ जानकारी एस.आई.टी. के सदस्य सचिव के पास उपलब्ध होगी। इसके बाद नायक ने सूचना आयोग का रुख किया और आयोग से इस संबंध में एस.आई.टी. को उपयुक्त आदेश देने का आग्रह किया।