Edited By Yaspal,Updated: 04 Jul, 2019 09:04 PM
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को यदि उनकी कुछ बाध्यताओं से मुक्त कर दिया जाए जो वह बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। हालांकि इस तरह की स्वतंत्रता की सरकार से थोड़ी दूरी बनाए रखने की मांग करती है। यह कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम...
नई दिल्लीः सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को यदि उनकी कुछ बाध्यताओं से मुक्त कर दिया जाए जो वह बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। हालांकि इस तरह की स्वतंत्रता की सरकार से थोड़ी दूरी बनाए रखने की मांग करती है। यह कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का। राजन ने यह भी कहा कि बैंकों का निजीकरण करने से समस्या का समाधान हो जाए, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। निजीकरण को लेकर जितनी भी बहस हुई है वह विचारधारा पर आधारित मान्यताओं पर तय की गयी अधिक प्रतीत होती हैं।
राजन का कहना है कि सरकारी बैंक जिन बाध्यताओं के तहत काम करते हैं यदि उनमें से कुछ से उन्हें मुक्ति दे दी जाए तो वह बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। इन बाध्यताओं में जहां एक तरफ कम कुशल लोगों को निजी क्षेत्र के बैंकों के बदले अधिक पारिश्रमिक देना, वहीं दूसरी तरफ वरिष्ठ प्रबंधकीय पदों पर निजी क्षेत्र के बैंकों के बदले कम पारिश्रमिक देना शामिल है। वहीं उन्हें सतर्कता आयोग और सीबीआई की जांच के डर के साए में भी काम करना होता है।
हालांकि राजन का मानना है कि इस तरह की स्वतंत्रता के लिए सरकार से एक निश्चित दूरी बनाने की जरूरत होती है। लेकिन चूंकि उनमें बहुलांश हिस्सेदारी सरकार की है तो शायद उन्हें उस तरह की स्वतंत्रता ना मिल पाए। राजन के अनुसार कुछ निजी क्षेत्र के बैंकों का प्रबंधन भी बहुत खराब है। उन्होंने कहा कि ऐसे में हमें यह जानने की जरूरत है कि बैंकों का मालिकाना हक उनके कामकाज में योगदान देने वाले बहुत से कारकों में से एक है। जबकि हमें निदेशक मंडल के स्तर पर कामकाज को बेहतर करने की जरूरत है।
न ने अपने यह विचार ‘व्हाट द इकोनॉमी नीड्स नाऊ' में साझा किए हैं। इस किताब को उन्होंने अभिजीत बनर्जी, गीता गोपीनाथ और मिहिर एस. शर्मा के साथ सह-संपादित किया है।