Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Aug, 2017 04:47 AM
गुड्स एंड सर्विस टैक्स छोटे व्यापारियों के लिए मुसीबत बन गया है। जी.एस.टी. उन कारोबारियों के लिए....
नई दिल्ली: गुड्स एंड सर्विस टैक्स छोटे व्यापारियों के लिए मुसीबत बन गया है। जी.एस.टी. उन कारोबारियों के लिए जी का जंजाल बन गया है जिनका टर्नओवर 20 लाख रुपए से कम है। क्योंकि बड़े कारोबारी उन पर जी.एस.टी. में रजिस्ट्रेशन करने का दबाव बना रहे हैं।
ऐसा इसलिए है अनरजिस्टर्ड कारोबारियों के साथ बिजनैस करने पर बड़े कारोबारी को रिवर्स चार्ज चुकाना होगा, इससे बचने के लिए वे ऐसा कर रहे हैं। ऐसे में छोटे व्यापारियों के लिए कारोबार करना टेढ़ी खीर हो गया है।
यह आ रही हैं मुश्किलें-
रेट, बिलिंग की उलझनें कायम
जी.एस.टी. लागू होने के एक महीने बाद बाजारों में पहले जैसी अफरा-तफरी तो नहीं लेकिन व्यापार अब भी पटरी पर नहीं लौटा है। खासकर फैस्टिव सीजन की सप्लाई के मद्देनजर हालात खराब बताए जा रहे हैं। हालांकि अधिकांश रजिस्टर्ड डीलर जी.एस.टी. में माइग्रेट कर चुके हैं लेकिन रेट, एच.एस.एन. कोड, रिवर्स चार्ज और बिलिंग को लेकर कन्फ्यूजन कायम है।
फंस गए ऑर्डर, पुलिस का डर
नोएडा में पैकिंग मशीन बनाने वाले अनवर कहते हैं, ‘‘जी.एस.टी. लागू होने के बाद से हमारे नेपाल के ऑर्डर फंसे हुए हैं। कोई बताने वाला नहीं है कि हम कितना चार्ज करके वहां माल भेजें। अफसरों को भी कोई आइडिया नहीं है। अगर स्थिति साफ नहीं हुई तो आगे और दिक्कत होगी। यही नहीं, डर-सा बना रहता है कि कहीं पुलिस वाले या दूसरे अफसर जी.एस.टी. बिल न मांग लें। खरीदार पक्का बिल मांग रहे हैं।
जी.एस.टी. की वजह से जुड़े नए करदाता- 10 लाख
अभी तक पैंडिंग आवेदनों की संख्या - 02 लाख
अब तक एक्टिवेट हो चुके नंबरों की संख्या- 71 लाख
सहूलियत ने ही बढ़ाई परेशानी
जी.एस.टी. का नैगेटिव इम्पैक्ट सबसे ज्यादा बीते एक महीने में छोटे कारोबारियों पर पड़ा है। सरकार ने 20 लाख टर्नओवर वाले कारोबारियों को जी.एस.टी. में रजिस्ट्रेशन से छूट दी है। छोटे कारोबारी से बिजनैस करने पर बड़े कारोबारी को रिवर्स चार्ज (जी.एस.टी. टैक्स) चुकाना पड़ रहा है जिसका उन्हें इनपुट क्रैडिट नहीं मिल रहा है। यानी चुकाए गए टैक्स पर छूट उन्हें नहीं मिल रही। ऐसे में छोटे कारोबारी से बिजनैस करने पर नुक्सान हो रहा है।
माल बुकिंग 30-40 प्रतिशत कम
ट्रांसपोर्टेशन में सुधार हुआ है लेकिन बुकिंग अब भी मई-जून के मुकाबले 30-40 प्रतिशत कम बताई जा रही है। कन्फैडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के जनरल सैक्रेटरी प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि मार्कीट अभी स्थिर नहीं हो पाई है और व्यापारी अब भी कई चीजों को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
50 प्रतिशत घटी सेल
चैंबर ऑफ ट्रेड इंडस्ट्री के को-आर्डीनेटर बृजेश गोयल ने बताया, ‘‘मैंने वॉल्ड सिटी के ज्यादातर बाजारों का सर्वे किया है और पाया है कि एक महीने बाद हालात बहुत नहीं बदले हैं। सेल्स पिछली रिजीम के मुकाबले 50 प्रतिशत से भी कम हो गई है और त्यौहारी सीजन की सप्लाई को लेकर ङ्क्षचता बढ़ रही है।’’
इन उद्योगों पर पड़ रहा है बुरा असर साड़ी उद्योग
जी.एस.टी. का प्रत्यक्ष असर बनारस में साड़ी कारोबार पर दिखा है। यहां रोज 100 करोड़ का कारोबार होता था जो घटकर करीब 25 करोड़ रुपए पर आ गया है। यार्न नहीं मिल रहा है। ब्लैक में 450 रुपए किलो में मिल रहा है। पैसे न होने के कारण बुनकर खरीद नहीं पा रहा है। उत्पादन ठप्प है।
सेल 100 करोड़ से घटकर 25 करोड़ हुई
जूता उद्योग
आगरा में ही करीब 9 लाख लोगों को रोजगार देने वाले जूता उद्योग पर जी.एस.टी. की मार पड़ी है क्योंकि अब 500 रुपए तक का जूता जिस पर पहले कोई टैक्स नहीं लगता था अब वह भी 5 प्रतिशत कर के दायरे में आ गया है। ऐसे में लागत बढ़ी है, जिससे उद्योग पर बुरा असर हुआ है।
आगरा में रोजगार मिलता है 09 लाख को
ऑटो पार्ट्स
ओरिजिनल पार्ट्स जो कंपनी सप्लाई करती थी उसके कारोबार पर कोई असर नहीं पड़ा है क्योंकि जी.एस.टी. आने से इन पर टैक्स घट गया है। असली मार पड़ी है पार्ट्स बनाने वाले लोकल मैन्युफैक्चरर्ज को जिन्हें एक्साइज पर पहले छूट मिलती थी वह अब खत्म हो गई है।
पेठा व्यापार
पहले ही कोयले का प्रयोग करने वाली पेठा इकाइयां प्रदूषण का डंडा झेल रही थीं और अब जी.एस.टी. ने एकदम तालाबंदी के कगार पर ला खड़ा किया है।
ज्यादातर व्यवसायी कम पढ़े-लिखे हैं और इतने सारे रिटर्न दाखिल करना उनके बस में नहीं है।’’
लागत बढ़ी, पर नहीं बढ़ा व्यापार
जी.एस.टी. लागू होने के एक महीने तक तो जी.एस.टी. व्यापारियों के लिए बोझ ही साबित हुआ है। अधिकांश व्यापारियों का मानना है कि जी.एस.टी. से लागत तो बढ़ गई लेकिन उनका व्यापार घट गया है। अधिकांश व्यापारियों का मानना है कि जी.एस.टी. की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि वह न तो व्यापारियों को समझ आ रही है और न ही उपभोक्ताओं को। इस संबंध में कई व्यापारियों ने अपने अनुभव सांझे किए।
दिल्ली के हौजरी व्यापारी संजय बजाज का कहना है कि जी.एस.टी. का अनुभव उनके लिए अच्छा नहीं रहा। उन्होंने कहा कि मैंने जी.एस.टी. के लिए पंजीकरण करवाया था लेकिन उसमें मेरी डिटेल तकनीकी कारणों से गलत दर्ज हो गई। पहले नोटबंदी और अब जी.एस.टी., मुझे तो समझ नहीं आ रहा है कि इन समस्याओं का सामना कैसे करूं। युटैंसिल्स के व्यापारी योगिन्द्र का कहना है कि जी.एस.टी. उनके लिए कुल मिलाकर ठीक ही रहा। शुरूआत में काफी मुश्किलें आईं लेकिन विभागीय अधिकारियों और सैमीनार के जरिए सब ठीक हो गया, लेकिन जहां तक व्यापार का सवाल है तो निश्चित तौर पर हमें घाटा हुआ है। जी.एस.टी. को लेकर व्यापारी और उपभोक्ता दोनों अभी तक असमंजस में हैं।
खिलौना व्यापारी संजय मेहरा का कहना है कि जी.एस.टी. मेरे व्यापारिक जीवन का सबसे गंदा और बुरा अनुभव है। जी.एस.टी. की प्रक्रिया इतनी पेचीदा है कि इसे समझना हर किसी के वश की बात नहीं है। जहां तक व्यापार का सवाल है तो यकीनी तौर पर यह घटा है। पुराना स्टॉक अभी भी पड़ा है। नोटबंदी पहला और जी.एस.टी. हम व्यापारियों के लिए दूसरा आघात है। विनय बहल का कहना है कि शुरूआत में तो सिस्टम को समझने में थोड़ी समस्या आई लेकिन महीने के बाद सब कुछ ठीक हो गया, पर व्यापार पर इसका असर काफी नकारात्मक पड़ा है। जहां तक लेन-देन का सवाल है तो हमारे यहां तो पहले से ही ऑनलाइन व्यवस्था है इसलिए इस लिहाज से हमें कोई ज्यादा दिक्कत नहीं हुई।
एक अन्य व्यापारी बृजेश गोयल का कहना है कि जी.एस.टी. का उनके लिए अनुभव उनकी सोच से कहीं ज्यादा बुरा साबित हुआ। व्यापारी अभी तक इसके प्रारूप को लेकर असमंजस में हैं। उनका मानना है कि जब से जी.एस.टी. लागू हुआ है तब से व्यापार घट ही रहा है। जी.एस.टी. से हमारे खर्चे काफी बढ़ गए हैं लेकिन व्यापार नहीं बढ़ा। फैशन इंडस्ट्री से जुड़ी महिला व्यापारी नवनीत कौर का कहना है कि हमें पहले ही अंदेशा था कि जी.एस.टी. लागू होने से कीमतों में उछाल आएगा और हुआ भी ऐसा ही। हमें अपने ग्राहकों को खोने का डर है इसलिए अपने प्रॉफिट को कम कर दिया है। उन्होंने कहा कि हालांकि बिजनैस तो पहले जैसा ही है लेकिन फायदा घट गया है। यही नहीं, हमें अपने पुराने बिलिंग्स सिस्टम को बदलना पड़ा है।
सैनेटरी सामान के व्यापारी अमन गुप्ता का कहना है कि जी.एस.टी. का असर उन पर उनकी सोच से भी ज्यादा नैगेटिव पड़ा। उनका कहना था कि एक महीने में बिक्री सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई है। कच्चे मोल की कीमतें बढऩे से भी उनका व्यापार प्रभावित हुआ है। यही नहीं, हमें अपना बिङ्क्षलग सिस्टम बदलने के लिए भी काफी पैसा खर्च करना पड़ा इसलिए हमें तो जी.एस.टी. से चौतरफा नुक्सान ही हुआ है। ट्रैक्टर पार्ट्स का व्यवसाय करने वाले दिल्ली निवासी निरंजन पोद्दार का कहना है कि ट्रैक्टर पार्ट्स पर कर दर 28 से 18 प्रतिशत करने का वायदा अभी तक सरकार ने पूरा नहीं किया है। लागत बढऩे से करीब 90 प्रतिशत गिरावट उनके व्यापार में जी.एस.टी. लागू होने के बाद आई है। कच्चा माल महंगा होने के चलते उनके उत्पादों की लागत बढऩे से उनकी बिक्री घट गई है।