खाद्य तेल आयात बढऩे से नुकसान

Edited By jyoti choudhary,Updated: 19 Apr, 2019 05:32 PM

increase in edible oil imports

देश में वनस्पति तेल के बढ़ते आयात ने घरेलू तिलहन के पेराई और रिफाइनिंग उद्योग को अपनी परिचालन क्षमता में ऐतिहासिक स्तर की कटौती करने का दबाव बना दिया है। उद्योग के शीर्ष संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के अनुसार मार्च

मुंबईः देश में वनस्पति तेल के बढ़ते आयात ने घरेलू तिलहन के पेराई और रिफाइनिंग उद्योग को अपनी परिचालन क्षमता में ऐतिहासिक स्तर की कटौती करने का दबाव बना दिया है। उद्योग के शीर्ष संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के अनुसार मार्च 2019 के दौरान भारत के वनस्पति तेलों (कच्चा पाम तेल या सीपीओ और रिफाइंड, ब्लीच्ड और डिओडोराइज्ड या आरबीडी) के आयात में 26 प्रतिशत की उछाल दर्ज की गई और यह बढ़कर 14.5 लाख टन हो गया है जबकि पिछले साल इस अवधि में यह 11.5 लाख टन था। फरवरी में भी वनस्पति तेल का आयात 7.4 प्रतिशत उछलकर 12.4 लाख टन हो गया था जबकि पिछले साल इस महीने में यह 11.6 लाख टन था।
 
कमी के कारण भारत की लगभग 60 प्रतिशत मांग मुख्य रूप से मलेशिया, इंडोनेशिया और अर्जेंटीना से आयात के जरिये पूरी की जाती है। इनके आयात में लगातार वृद्धि ने घरेलू तिलहन पेराई और रिफाइनिंग इकाइयों के सामने परेशानी पैदा कर दी है। चूंकि आयातित रिफाइंड तेल घरेलू तेल के उत्पादन की तुलना में सस्ता पड़ता है इसलिए यहां की पैकेजिंग इकाइयां सुरक्षित लाभ मार्जिन के लिए रिफाइंड तेल का आयात करती हैं और इसे पैक करके बेचना पसंद करती हैं। इस कारण घरेलू रिफाइनरी उद्योग ने अपनी परिचालन क्षमता महज 30 प्रतिशत तक सीमित कर दी है। 
 
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन (सोपा) के कार्यकारी निदेशक डीएन पाठक ने कहा कि वनस्पति तेलों का आयात बढ़ाना भारतीय रिफाइनरियों और तिलहन किसानों - दोनों के लिए हमेशा चिंता का विषय रहता है। इसलिए इसकी आपूर्ति पर अंकुश जरूरी है। खाद्य तेलों के बढ़ते आयात का घरेलू तिलहन के दामों पर गंभीर असर पड़ा है। हाजिर बाजार में मंूगफली और सरसों /सफेद सरसों के दाम उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से करीब 20 प्रतिशत कम पर चल रहे हैं। उद्योग के सूत्रों के अनुसार तिलहन की पेराई करने वाली इकाइयों और खाद्य तेल रिफाइनरियों ने अपनी परिचालन लागत कम करने और कारोबार को व्यावहारिक बनाने के लिए परिचालन क्षमता घटा दी है। 
 
इस बीच मार्च में कुल आयातित रिफाइंड तेल की हिस्सेदारी क्रमबद्ध रूप से लगातार बढ़कर 22 प्रतिशत हो गई है जो फरवरी में 20 प्रतिशत थी और जनवरी में 14 प्रतिशत। घरेलू रिफाइनरियों में कच्चे पाम तेल के प्रसंस्करण का लाभ मार्जिन कम है। इसलिए देश की प्रसंस्करण इकाइयां कच्चे तेल की अपेक्षा रिफाइंड तेल के आयात पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं। भारतीय वनस्पति तेल प्रसंस्करण इकाइयों को दो प्रमुख दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। यूरोपीय संघ ने जैव-ईंधन में कच्चे पाम तेल का उपयोग स्थगित करने का फैसला किया है। इसलिए मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे उत्पादक देश रिफाइंड तेल की आपूर्ति भारत की तरफ बढ़ा रहे हैं। इससे कच्चे पाम तेल और आरबीडी दोनों ही की आपूर्ति का रुख भारत और चीन जैसे बाजारों की ओर है। इस कारण भारत वनस्पति तेलों के लिए डंपिंग मैदान साबित हो रहा है।
 
मलेशिया के साथ द्विपक्षीय संधि के तहत भारत सरकार ने 1 जनवरी, 2019 से आरबीडी और कच्चे पाम तेल पर प्रभावी आयात शुल्क 59.40 प्रतिशत और 48.40 प्रतिशत के स्तर से घटाकर क्रमश: 49.50 प्रतिशत और 44 प्रतिशत कर दिया है। इंडोनेशिया से आयात किए जाने वाले कच्चे पाम तेल और आरबीडी पर भी आयात शुल्क 48.40 प्रतिशत और 59.40 प्रतिशत के स्तर से घटाकर 1 जनवरी, 2019 से 44 प्रतिशत और 55 प्रतिशत कर दिया गया है। एसईए ने सरकार को आयात शुल्क पांच प्रतिशत कम करने की सलाह दी है।

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