नोटबंदी का असर: मैन्यूफैक्चरिंग PMI आंकड़े में बड़ी गिरावट दर्ज

Edited By ,Updated: 02 Jan, 2017 01:49 PM

manufacturing production  pmi

500 तथा 1000 रुपए के पुराने नोटों को अवैध बनाने के सरकार के फैसले के बाद उत्पन्न नकदी की कमी के कारण दिसंबर में विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में पिछले साल पहली बार गिरावट दर्ज की गई।

मुंबईः 500 तथा 1000 रुपए के पुराने नोटों को अवैध बनाने के सरकार के फैसले के बाद उत्पन्न नकदी की कमी के कारण दिसंबर में विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में पिछले साल पहली बार गिरावट दर्ज की गई। निक्केई द्वारा विनिर्माण क्षेत्र के लिए जारी पर्चेजिंग मैनेजर्स सूचकांक (पीएमआई) नवंबर के 52.3 से घटकर 49.6 पर आ गया। सूचकांक का 50 से नीचे रहना उत्पादन में गिरावट और 50 से ऊपर रहना इसमें बढ़ौतरी दर्शाता है जबकि 50 पर रहना स्थिरता का द्योतक है।

निक्केई द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि दिसंबर में कंपनियों के नए ऑर्डरों तथा उत्पादन दोनों में साल के दौरान पहली बार गिरावट देखी गई। इस दौरान लागत मूल्य में वृद्धि की रफ्तार तेज हुई। ऑर्डर में गिरावट को देखते हुए कंपनियों ने कच्चा माल की खरीद कम कर दी तथा कर्मचारियों की छंटनी की।  

निक्केई के लिए रिपोर्ट तैयार करने वाली मार्कीट की अर्थशास्त्री पॉलियाना डी लीमा ने इन आंकड़ों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा '500 रुपए तथा 1000 रुपए के पुराने नोटों को बंद किए जाने के फैसले के बावजूद नवंबर में उत्पादन में बढ़ौतरी दर्ज करने के बाद साल के अंत में विनिर्माण क्षेत्र गिरावट में चला गया। अर्थव्यवस्था में पैसों की कमी के कारण उत्पादन तथा नए ऑर्डर में ऋणात्मक व़द्धि हुई जिससे वर्ष 2016 में लगातार जारी विकास का क्रम टूट गया। नकदी की कमी के कारण कंपनियों कच्चा माल की खरीद में कमी तथा कर्मचारियों की छंटनी की।'

इससे पहले नवंबर में नोटबंदी का मामूली असर दिखा था। गत नवंबर में उत्पादन बढ़ा था लेकिन इसकी व़ृद्धि दर कम हो गयी थी। पीएमआई सूचकांक अक्तूबर के 54.4 से गिरकर नवंबर में 52.3 पर आ गया था। कंपनियों को उम्मीद थी कि नोटबंदी के बाद पैदा हुई नकदी की किल्लत जल्द ही दूर हो जाएगी और इसलिए उन्होंने उत्पादन कम करने की बजाय इनवेंटरी तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया था।  

लीमा ने कहा कि जनवरी के आंकड़े आने के बाद ही यह पता चल सकेगा कि विनिर्माण क्षेत्र इस झटके से जल्द उबरने में कामयाब रहेगा या नहीं। दिसंबर में कच्चा माल की कीमतें बढऩे से कंपनियों की औसत लागत लगातार 15वें महीने बढ़ी है। हालांकि, नवंबर से इसकी वृद्धि दर भी तेज होती जा रही है। वहीं, उत्पाद मूल्य में अगस्त के बाद सबसे धीमी बढ़ौतरी देखी गई। नकदी की कमी के कारण कंपनियां पुराने ऑर्डरों को पूरा करने में भी सुस्त रहीं और उनका बाकी काम लगातार सातवें महीने बढ़ा है। 
 

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