MPC सदस्यों ने एकस्वर से खाद्य महंगाई को लेकर जताई चिंता

Edited By jyoti choudhary,Updated: 23 Dec, 2023 12:06 PM

mpc members unanimously expressed concern about food inflation

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के सभी छह सदस्यों ने दिसंबर माह की मौद्रिक नीति समीक्षा में खाद्य महंगाई की स्थिति को लेकर चिंता जताई है। दूसरी तरफ, समिति के दो बाह्य सदस्यों ने ऊंची वास्तविक ब्याज दर को लेकर आगाह किया है। रिजर्व बैंक ने...

नई दिल्लीः भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के सभी छह सदस्यों ने दिसंबर माह की मौद्रिक नीति समीक्षा में खाद्य महंगाई की स्थिति को लेकर चिंता जताई है। दूसरी तरफ, समिति के दो बाह्य सदस्यों ने ऊंची वास्तविक ब्याज दर को लेकर आगाह किया है। रिजर्व बैंक ने दिसंबर की अपनी मौद्रिक नीति में रेपो रेट और रिवर्स रीपो रेट दोनों में कोई बदलाव नहीं किया था। बढ़ती खाद्य कीमतों की वजह से नवंबर महीने में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 5.5 फीसदी तक पहुंच गई, जो तीन महीनों की सबसे तेज बढ़त है।

खाद्य महंगाई तो नवंबर में बढ़कर 8.70 फीसदी तक पहुंच गई, जबकि अक्टूबर में यह 6.61 फीसदी थी। कुल खुदरा महंगाई बास्केट में खाद्य महंगाई का हिस्सा आधे से ज्यादा होता है। दिसंबर में भी खाद्य महंगाई के ऊंचा रहने की ही आशंका है। मौद्रिक नीति समित की बैठक के ब्योरे के मुताबिक रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘आगे की बात करें तो खाद्य मुद्रास्फीति जुलाई के स्तर से जरूर कम हुई है लेकिन यह ऊंचाई पर बनी हुई है।’

दास ने कहा, ‘नवंबर और दिसंबर के महीनों में सब्जियों की कीमतों में आने वाली तेजी से खाद्य और खुदरा महंगाई बढ़ने का अनुमान है। हमें मूल्य आवेगों के सामान्यीकरण के किसी भी तरह के संकेत के प्रति काफी सचेत रहना होगा, क्योंकि ये अवस्फीति की चल रही प्रक्रिया को पटरी से उतार सकते हैं।’

भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एमडी पात्र दूसरे सदस्यों के मुकाबले ज्यादा मुखर दिखते हैं। वह कहते हैं कि नवंबर और दिसंबर की शुरुआत के प्रमुख खाद्य वस्तुओं के दैनिक आंकड़ों की गति में जो तेजी दिख रही है उससे यह खुलासा होता है कि खाद्य कीमतों में उछाल को लेकर मुद्रास्फीति काफी नाजुक बनी हुई है। पात्र कहते हैं, ‘उपभोक्ता भी अब सितंबर के मुकाबले एक साल बाद की महंगाई को लेकर ज्यादा निराशावाद दिखा रहे हैं। इसे देखते हुए मौद्रिक नीति को प्रतिबंधात्मक रुख के साथ काफी सचेत रहना होगा।’

उन्होंने यह भी कहा कि जीडीपी के आंकड़ों से इस नजरिये को मजबूती मिलती है कि इस साल की शुरुआत से ही भारत में उत्पादन की खाई सकारात्मक हो गई है और आगे भी ऐसा ही रहेगा। उन्होंने कहा, ‘यह इस संभावना की ओर संकेत करता है कि आगे चलकर मांग में खिंचाव महंगाई की दिशा तय करेगा और भविष्य में आपूर्ति के झटके बढ़ेंगे।’

समिति के बाह्य सदस्य राजीव रंजन ने इस बात पर चिंता जताई कि बढ़ी हुई खाद्य महंगाई आगे के लिए मुद्रास्फीति के नजरिये में बड़ी अनिश्चितता पैदा कर सकती है। एक और बाह्य सदस्य शशांक भिड़े ने भी कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति निकट अवधि के लिए चिंता की बात है। उन्होंने कहा, ‘यह देखते हुए कि मुद्रास्फीति निकट अवधि में लक्ष्य से ऊपर बनी रहेगी, 2024-25 की पहली तिमाही में मुख्य उपभोक्ता कीमत सूचकांक 5 फीसदी से ऊपर रहने का अनुमान है, ऐसे में लक्ष्य के सही दिशा पर चलते रहने के लिए नीतिगत समर्थन बनाए रखने होगा।’

दो अन्य बाह्य सदस्यों आशिमा गोयल और जयंत वर्मा ने यह मसला उठाया कि जब महंगाई लक्ष्य के करीब है ऐसे में वास्तविक ब्याज दरें काफी ऊंचाई पर हैं। गोयल ने कहा, ‘अगर मुद्रास्फीति 2024 के मध्य तक लगातार 4 फीसदी के करीब रहती है और कुछ किया नहीं गया तो वास्तविक ब्याज दरें काफी ऊंची हो सकती हैं।’

गोयल ने ब्याज दरों और रुख दोनों में किसी तरह का बदलाव न करने के पक्ष में मत दिया था। उन्होंने कहा कि अगले कुछ महीनों में खाद्य महंगाई में अनुमानित बढ़त के असर पर नजर रखनी होगी, क्योंकि लगातार मिल रहे आपूर्ति के झटके चिंता की बात हैं। वर्मा ऊंची वास्तविक ब्याज दर को लेकर ज्यादा स्पष्ट हैं। उन्होंने कहा कि नॉमिनल दरें इस तरह से रखनी चाहिए कि वास्तविक ब्याज दरों में 1.5 फीसदी से 2 फीसदी तक की कमी आ जाए।

वर्मा ने कहा, ‘फिलहाल अगली दो से चार तिमाहियों में महंगाई औसतन 4.75 फीसदी से नीचे रहने का अनुमान है। मुद्रा बाजार में ब्याज दर 6.75 फीसदी है, इसलिए वास्तविक ब्याज दर 2 फीसदी होती है। मेरा मानना है कि 2 फीसदी की वास्तविक दर साफतौर से अधिकतम दर को पार कर रही है।’ वर्मा ने अक्टूबर में भी इसका विरोध किया था कि मौद्रिक नीति के रवैये को छोड़ा जाए और कहा था कि तटस्थ रवैये की जरूरत है। दूसरी तरफ शक्तिकांत दास ने कहा था कि फिलहाल नीति में किसी तरह का बदलाव समय पूर्व और जोखिम भरा होगा।

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