घूस लेकर अब निजी बैंकों के कर्मचारी भी नहीं बच पाएंगेः SC

Edited By ,Updated: 24 Feb, 2016 12:27 PM

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने बेहद अहम फैसले में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के दायरे को और बड़ा और व्यापक कर दिया है।

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने अपने बेहद अहम फैसले में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के दायरे को और बड़ा और व्यापक कर दिया है। मंगलवार को दिए अपने एक फैसले के तहत कोर्ट ने कहा है कि इस कानून के दायरे में निजी बैंकों के कर्मचारी भी आते हैं। अभी तक इस कानून के तहत केवल सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ ही कार्रवाई की जाती रही है। जस्टिस रंजन गोगोई और प्रफुल्ल सी. पंत की खंडपीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए यह फैसला दिया। 

 

41 करोड़ की घूस के मामले में ग्लोबल ट्रस्ट बैंक के पूर्व एमडी श्रीधर सुबाश्री और बैंक के पूर्व प्रमुख रमेश गेली को भ्रष्टाचार निरोधक कानून के दायरे से बरी करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया था। कोर्ट का मानना था कि उन पर यह कानून लागू नहीं होता है क्योंकि वह सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। 

 

यह मामला साल 2004 से पहले का जब ग्लोबल ट्रस्ट बैंक का ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में विलय नहीं हुआ था। सीबीआई ने ओरिएंटल बैंक के विजिलेंस ऑफिसर की शिकायत के आधार पर गेली और सुबाश्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। 

 

गौरतलब है कि बैंकिंग रेग्युलेशन ऐक्ट 1994 की धारा 46ए में संशोधन से पहले केवल बैंक के चेयरमैन, डायरेक्टर और ऑडिटर को ही पब्लिक सर्वेंट माना जाता था और आईपीसी के तहत अपराधों के दायरे में रखा जाता था, लेकिन संशोधन के बाद इस लिस्ट को और लंबा करते हुए इसमें चेयरमैन, मैनेजिंग डायरेक्टर, डायरेक्टर, ऑडिटर, लिक्विडेटर, मैनेजर और बैंक के सभी कर्मचारियों को भी पब्लिक सर्वेंट के तौर पर शामिल कर लिया गया। 

 

कोर्ट का कहना था कि अगर कोई आईपीसी के अपराधों के तहत आता है तो वह भ्रष्टाचार निरोधक कानून के दायरे में भी आता है।

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