श्रीलंका में उबाल से भारतीय चाय के सुधरे हाल!

Edited By jyoti choudhary,Updated: 17 Apr, 2023 01:54 PM

the condition of indian tea improved due to boiling in sri lanka

विदेशी खरीदारों की ओर से नए सीजन की ऑर्थोडॉक्स (पारंपरिक) चाय की मांग शुरू हो गई है। दुनिया में पारंपरिक चाय के सबसे बड़े उत्पादक श्रीलंका में पिछले साल हुए आर्थिक संकट का फायदा भारत को मिला था। इसकी कीमतें अब तक के सर्वाधिक स्तर को छू रही थीं। क्या...

नई दिल्लीः विदेशी खरीदारों की ओर से नए सीजन की ऑर्थोडॉक्स (पारंपरिक) चाय की मांग शुरू हो गई है। दुनिया में पारंपरिक चाय के सबसे बड़े उत्पादक श्रीलंका में पिछले साल हुए आर्थिक संकट का फायदा भारत को मिला था। इसकी कीमतें अब तक के सर्वाधिक स्तर को छू रही थीं। क्या इस साल भी हालात वैसे ही रहेंगे? उद्योग इस पर अध्ययन कर रहा है।

पारंपरिक चाय का उत्पादन परंपरागत तरीकों जैसे, तोड़ना, मुरझाना, रोल करना, ऑक्सीडेशन और सुखाने के बाद होता है। पिछले दिनों पारंपरिक चाय की पहली खेप की नीलामी कोलकाता में हुई। 245.65 रुपए प्रति किलोग्राम औसत कीमत के साथ इसकी अच्छी शुरूआत हुई। यह कीमत पिछले साल के मुकाबले 30 फीसदी अधिक है।

देश के सबसे बड़े पारंपरिक चाय उत्पादकों में से एक एम के शाह एक्सपोर्ट के चेयरमैन हिमांशु शाह कहते हैं, ‘हम उपभोग करने वाले देशों से बात कर रहे हैं और वे इसमें रुचि दिखा रहे हैं। रूस को अभी कमी का सामना करना पड़ रहा है लेकिन वे उचित मूल्य पर चाय की खरीद करना चाहते हैं।’ ईरान जो आमतौर पर प्रीमियम दूसरे फ्लश की खरीद करता है और वह जून के बाद बाजार में आता है। उन्होंने कहा, ‘वहां भी श्रीलंका में कम उत्पादन के कारण भारतीय चाय की काफी अधिक मांग है और अगस्त तक हमें मांग में किसी भी तरह की कोई गिरावट नहीं दिख रही है।’

वैश्विक स्तर पर श्रीलंका करीब 50 फीसदी पारंपरिक चाय का व्यापार करता है। लेकिन, संकटग्रस्त द्वीप देश ने साल 2022 में सालाना आधार पर इसमें 15 से 17 फीसदी की गिरावट देखी है। टी एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन श्रीलंका की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, जनवरी से दिसंबर तक निर्यात केवल 25 करोड़ किलोग्राम ही रहा। यह सालाना आधार पर 12.6 फीसदी कम है। इसने भारत के लिए अवसर के द्वार खोल दिए।

आमतौर पर इराक, तुर्की, रूस, यूएई और ईरान श्रीलंका के शीर्ष पांच खरीदार हैं। इनमें से कुछ भारत के लिए भी प्रमुख बाजार हैं। इनमें यूएई, रूस, ईरान, इराक शामिल हैं। भारतीय चाय बोर्ड अनंतिम निर्यात के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल जनवरी से दिसंबर के दौरान देश के कुल चाय निर्यात में 52.42 फीसदी की हिस्सेदारी इन देशों की रही। साल 2021 में यह हिस्सेदारी 44.55 फीसदी थी।

प्रमुख पुनर्निर्यात केंद्र यूएई 146 फीसदी वृद्धि के साथ शीर्ष स्थान पर काबिज हो गया। लेकिन, यह भी सभी जानते हैं कि सीआईएस (स्वतंत्र देशों का राष्ट्रमंडल) और मेना (पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका) जैसे दुनिया के शीर्ष दो चाय खपत क्षेत्रों में दुबई से ही विभिन्न इलाकों की चाय मिश्रित और पैक की जाती है। कुल मिलाकर जनवरी से दिसंबर 2022 के दौरान भारत का चाय निर्यात 15.49 फीसदी बढ़कर 22.69 करोड़ किलोग्राम हो गया।

हालांकि भारतीय चाय बोर्ड का कहना है कि भारतीय चाय निर्यात में वृद्धि पूरी तरह से श्रीलंका के हालात के कारण नहीं हुई है, क्योंकि 2022 में भी वैश्विक स्तर पर निर्यात में श्रीलंका की भी 14 फीसदी हिस्सेदारी बनी रही। बोर्ड ने पुराने बाजारों के साथ-साथ मलेशिया, आयरलैंड और तुर्की जैसे नए बाजारों के जुड़ने को निर्यात में वृद्धि का श्रेय दिया।

अलबत्ता उद्योग इस वृद्धि का श्रेय श्रीलंका के हालात को ही देता है। अब बड़ा सवाल यह है कि अगर श्रीलंका से इस संकट से उबर जाता है, क्या फिर भी भारतीय निर्माता इस गति को बरकरार रख पाएंगे? मगर इसका जवाब भी इस पर ही निर्भर करेगा कि आखिर श्रीलंका अपने नुकसान से कब उबरेगा। इस साल जनवरी और फरवरी में श्रीलंका का उत्पादन 3.79 करोड़ किलोग्राम था। यह 30 लाख किलोग्राम तक कम है। 3.61 करोड़ किलो के निर्यात में रूस, यूएई और इराक में कम खरीदारी के कारण 44.2 लाख किलोग्राम का कम निर्यात देखा गया।

शाह ने इशारा किया, ‘एक बार जब चाय की झाड़ियों को झटका लग जाता है, तो उचित प्रयास के बिना खोई हुई फसल को वापस पाना कठिनाई भरा होता है।’ कम से कम दार्जिलिंग में तो ऐसा ही हुआ है। यहां गोरखालैंड आंदोलन के दौरान साल 2017 में 107 दिनों का बंद हुआ था, तब से अब तक यह जूझ ही रहा है।

श्रीलंका की स्थिति की परवाह किए बिना भारत को वैश्विक बाजार में एक विश्वसनीय पारंपरिक चाय के आपूर्तिकर्ता के रूप में अपनी जगह बनाने की जरूरत है। भारतीय चाय संघ के महासचिव अरिजित राहा ने कहा, ‘वैश्विक चाय बाजार में पारंपरिक चाय की बड़ी हिस्सेदारी है और निर्यात को बढ़ाने के लिए पारंपरिक चाय का उत्पादन बढ़ाना भी महत्त्वपूर्ण है।’
 

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