Edited By jyoti choudhary,Updated: 03 Jul, 2019 01:28 PM
सरकारी बैंकों में विल्फुल डिफॉल्ट की रकम बीते वित्त वर्ष (2018-19) में 1.50 लाख करोड़ रुपए पहुंच गई है। चौंकाने वाली बात यह है कि इसका करीब एक तिहाई हिस्सा देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के विलफुल डिफॉल्टर्स के पास है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला...
बिजनेस डेस्कः सरकारी बैंकों में विल्फुल डिफॉल्ट की रकम बीते वित्त वर्ष (2018-19) में 1.50 लाख करोड़ रुपए पहुंच गई है। चौंकाने वाली बात यह है कि इसका करीब एक तिहाई हिस्सा देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के विलफुल डिफॉल्टर्स के पास है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को संसद में सवालों के जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सरकारी बैंकों ने पिछले 3 वित्त वर्षों में विल्फुल डिफॉल्टर्स के खिलाफ पुलिस में 1,475 शिकायतें दर्ज करवाईं।
भारतीय कानून के तहत विलफुल डिफॉल्टर्स उन व्यक्तियों या कंपनियों को कहा जाता है, जिनका लंबा-चौड़ा कारोबार होता है और वे जानबूझकर बैंक का बकाया नहीं चुकाते हैं। एसबीआई के विल्फुल डिफॉल्टर्स पर सबसे ज्यादा 46,158 करोड़ रुपए बकाया हैं। पीएनबी से कर्ज लेने वाले विल्फुल डिफॉल्टर्स पर 25,090 करोड़ रुपए बकाया हैं। बैंक ऑफ इंडिया के विल्फुल डिफॉल्ट की रकम 9,890 करोड़ रुपए है।
विजय माल्या के डिफॉल्ट और नीरव मोदी के घोटाले के बाद सरकार ने विल्फुल डिफॉल्टर्स के खिलाफ नियम सख्त कर दिए हैं। विल्फुल डिफॉल्टर घोषित कंपनियों और व्यक्तियों को बैंकों और वित्तीय संस्थानों की ओर से कोई और सुविधा नहीं दी जाती। उनके 5 साल तक नए उद्यम लाने पर भी रोक लग जाती है।
विल्फुल डिफॉल्टर शेयर बाजार से पूंजी नहीं जुटा सकते और दिवालिया प्रक्रिया में भी नहीं जा सकते। उनके खिलाफ बैंकों के प्रमुख लुकआउट नोटिस भी जारी कर सकते हैं।