Edited By ,Updated: 10 May, 2016 02:57 PM
मित्रसंग्रहणे बलं सम्पद्यते।
अर्थ : मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है। मित्र ही शक्तिशाली बनाते हैं।
भावार्थ : जो राजा जितने अधिक
मित्रसंग्रहणे बलं सम्पद्यते।
अर्थ : मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है। मित्र ही शक्तिशाली बनाते हैं।
भावार्थ : जो राजा जितने अधिक अपने मित्र बना लेता है वह उतना ही शक्तिशाली हो जाता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं मूर्खो के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए। उन्हें त्याग देना ही उचित है। अपने मित्रों को धर्म-कर्म के कार्य में लगाना चाहिए। जो आपके स्तर से ऊपर या नीचे हो उन्हें दोस्त न बनाओ, वह तुम्हारे कष्ट का कारण बनेंगे। सामान स्तर के मित्र ही सुखदाई होते हैं।
श्रेष्ठजनों के साथ मित्रता कर उनके आचरण से दुर्जन भी सज्जन बन सकता है। खरबूजे को देखकर जैसे खरबूजा रंग बदलता है, ठीक वैसे ही व्यक्ति पर संगति का प्रभाव पड़ता है। उत्तम मनुष्यों का संपर्क व्यक्ति को गुणवान बनाता है। अगर किसी अनुचित के साथ से हमारा नैतिक पतन और व्यवहार में रूखापन आता है तो वैसे व्यक्ति का साथ तुरंत छोड़ देना चाहिए। आज समाज में जो अच्छाइयां और बुराइयां नजर आ रही हैं, उनके पीछे एक कारण संगति का प्रभाव है। अगर संगति अच्छी है तो व्यक्ति नैतिक मूल्यों पर अमल करता है।