Edited By Lata,Updated: 02 May, 2019 05:35 PM
किसी नगर में रहने वाले एक संत के शुद्ध भक्तिमय जीवन की बड़ी ख्याति थी। वह प्रतिदिन जप-ध्यान वगैरह करते और मंदिर में प्रभु के दर्शन करने जाते।
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किसी नगर में रहने वाले एक संत के शुद्ध भक्तिमय जीवन की बड़ी ख्याति थी। वह प्रतिदिन जप-ध्यान वगैरह करते और मंदिर में प्रभु के दर्शन करने जाते। एक रोज रात में सोते समय उन्हें स्वप्न आया कि उनकी मृत्यु हो चुकी है और वह किसी और लोक में देवदूत के सामने खड़े हैं।
देवदूत सब मृत लोगों से उनके किए शुभ-अशुभ कार्यों का ब्यौरा मांग रहा है। काफी देर बाद जब संत की बारी आई तो देवदूत ने उनसे पूछा, ‘‘आप बताएं आपने अपने जीवन में क्या अच्छे काम किए हैं? अपने ऐसे कार्य बताएं, जिनका आपको पुण्य मिला हो?’’
देवदूत की बात सुनकर संत सोचने लगे कि मेरा तो सारा जीवन ही अच्छे कामों में बीता है, मैं कौन-सा काम बताऊं। कुछ सोचने के बाद वह बोले, ‘‘मैं पांच बार सभी तीर्थों के दर्शन कर चुका हूं।’’
देवदूत बोला, ‘‘आपने तीर्थयात्राएं की लेकिन आप अपने इस कार्य का जिक्र हर व्यक्ति से बढ़ा-चढ़ा कर करते रहे। इसके कारण आपके सारे पुण्य नष्ट हो गए। इसके सिवा कोई और पुण्य का काम किया हो तो बताएं।’’
देवदूत की बात सुन संत को ग्लानि होने लगी। कुछ हिम्मत कर उन्होंने कहा, ‘‘मैं प्रतिदिन भगवान का ध्यान और उनके नाम का स्मरण करता था।’’
इस पर देवदूत ने कहा, ‘‘जब आप ध्यान करते और कोई दूसरा व्यक्ति वहां आ जाता तो आप कुछ अधिक समय तक जप-ध्यान में बैठे रहते। यह दिखावे का जप-ध्यान हुआ।’’
यह सुनने के बाद तो संत का हृदय कांपने लगा। उन्हें लगा कि उनकी अब तक की सारी तपस्या बेकार चली गई। देवदूत ने आगे कहा, ‘‘आप कोई और पुण्य का काम बताएं।’’
संत को अपना ऐसा कोई काम याद नहीं आ रहा था। उनकी आंखों में पश्चाताप के आंसू आ गए। तभी उनकी नींद टूट गई। स्वप्न की इस घटना से उन्हें अपने मन में छिपी कमजोरियों को परखने का मौका मिला। उन्होंने उसी दिन से सबसे मिलना-जुलना और प्रवचन इत्यादि छोड़ दिए तथा एकनिष्ठ भाव से प्रभु की साधना में तल्लीन हो गए। इसलिए कहा गया है कि धर्म और अध्यात्म के स्तर पर किए गए कार्य भी कई बार प्रदर्शन, नाम और यश आदि सांसारिक कामनाओं में उलझे होते हैं। यदि इनके प्रति सचेत न रहा जाए तो वे हमारी प्रगति में बाधक हो सकते हैं।