संसार में केवल एक ही स्थान पर मिलता है सभी तीर्थों का अक्षय पुण्य

Edited By ,Updated: 16 Jan, 2015 08:20 AM

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राधा कृष्ण और गोपियों के प्रेम की कहानियां आज भी उनके प्रेमियों के हृदय में इस प्रकार बसी हुई हैं जैसे वह स्वयं भी इस प्रेम का हिस्सा रहे हों।

राधा कृष्ण और गोपियों के प्रेम की कहानियां आज भी उनके प्रेमियों के हृदय में इस प्रकार बसी हुई हैं जैसे वह स्वयं भी इस प्रेम का हिस्सा रहे हों। भगवान कृष्ण का सम्पूर्ण जीवन महान् कार्यों और घटनाओं से भरा हुआ रहा। उनके मामा कंस ने उनको मारने के लिए बहुत से राक्षसों को भेजा मगर हर बार उसे मुंह की खानी पड़ती। 

उन्हीं राक्षसों में से एक था असुर अरिष्टासुर उसका वध तो श्री कृष्ण ने कर दिया मगर श्री राधा और गोपियां उनसे इस कद्र रूष्ट हो गई की उन्होंने श्री कृष्ण से यहां तक कह दिया की हमें छूना मत। गोवर्धन पर्वत की तलहटी में कृष्ण कुंड का निर्माण भगवान ने उसी समय किया।
 
अरिष्टासुर बैल का रुप धार कर व्रज में आया था। इससे पहले की वह किसी व्रजवासी को नुकसान पंहुचाता श्री कृष्ण ने उसका वध कर दिया। बैल का वध करने पर श्रीराधा और गोपियां श्रीकृष्ण को गौ वध का भागी मान रही थी। उन्होंने उन्हें हर तरह से समझाने का प्रयास किया जब वह न मानी तो उन्होंने क्रोध में आकर अपनी ऐड़ी जमीन पर पटक मारी और उस स्थान से जल की धारा बहने लगी।
 
इसी जलधारा का नाम कृष्ण कुंड के नाम से विख्यात हुआ। श्री कृष्ण ने संसार के सभी तीर्थों से कहा कि आप सभी इस कुंड में प्रवेश करें। श्री कृष्ण के आदेश पर सभी तीर्थ आए और श्री राधाकृष्ण को प्रणाम कर कुंड में प्रवेश कर गए। श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम इस कुंड में स्नान किया और वचन किए कि इस कुंड में जो कोई भी स्नान करेगा उसको एक ही स्थल पर सभी तीर्थों में स्नान करने का अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।
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