सत्गुरु श्री रविदास जी: विश्व समानता के पथ प्रदर्शक

Edited By ,Updated: 03 Feb, 2015 08:42 AM

article

विश्व में बहुत से क्रांतिकारी युगपुरुष हुए हैं परन्तु उन पर ऐसी सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक बंदिशें नहीं थीं जैसी श्री गुरु रविदास जी पर थीं। तत्कालीन समाज अनेक प्रकार की रूढिय़ों, कुरीतियों तथा विषमताओं की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। ऐसे समाज तथा...

विश्व में बहुत से क्रांतिकारी युगपुरुष हुए हैं परन्तु उन पर ऐसी सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक बंदिशें नहीं थीं जैसी श्री गुरु रविदास जी पर थीं। तत्कालीन समाज अनेक प्रकार की रूढिय़ों, कुरीतियों तथा विषमताओं की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। ऐसे समाज तथा ऐसी परिस्थितियों में जन्म लेकर समस्त विश्व के लिए विश्व क्रांति तथा विश्व शांति तथा सुधार की विचारधारा प्रदान करना विश्व की भलाई के लिए बहुत ही महान कार्य था जो सत्गुरु रविदास जी ने किया।

महान परोपकारी सत्गुरु श्री रविदास जी का जन्म विक्रमी सम्वत 1433 में  मार्गशीर्ष की पूर्णमाशी को बनारस की पवित्र धरती पर सीर गोवर्धनपुर में पिता श्री संतोख दास जी तथा माता कलसां देवी जी के घर हुआ। गुरु जी का विवाह लोना जी के साथ हुआ जिनसे उन्हेें श्री विजयदास जी नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। गुरु जी ने सच्चा श्रम करते हुए अपनी जिंदगी का हर क्षण दीन-दुखियों की सेवा में लगाया। उन्होंने मानवीय जगत को उपदेश दिया कि यदि अपने जीवन को सुधारना है तो कर्मकांडों तथा आडंबरों को त्याग कर सिर्फ पारब्रह्म परमेश्वर के नाम का सिमरण करें। उस सृजनहार के नाम के बिना बाकी सब व्यर्थ है।

 सत्गुरु श्री रविदास जी ने अपने जीवन के संघर्ष और दर्शन का सार एक अटल सिद्धांत के रूप में पेश करते हुए कहा कि जो मनुष्य अपने वास्तविक परम पिता परमात्मा के सिमरन तथा उसकी विचारधारा को छोड़ कर किसी अन्य की पूजा में लग कर मुक्त होने की आस लगाए बैठा है वह नरक को जाएगा अर्थात मुक्त नहीं हो पाएगा।

गुरु जी का दर्शन मनुष्यों को आध्यात्मिकता के साथ जोड़ता है। वहीं उनका जीवन दर्शन समस्त विश्व समुदाय को समानता का संदेश देकर आनंदमयी जीवन जीने का मार्ग दिखाता है। उनका दर्शन प्रत्येक मनुष्य को उस शहर का वासी बनने के लिए प्रेरित करता है जहां हर मनुष्य के लिए सुख ही सुख है। जहां प्रत्येक जीव निर्भय और निरवैर होकर रह सकता है। इस शहर को उन्होंने ‘बेगमपुरा’ नाम दिया था।  सत्गुरु श्री रविदास जी ने अपनी अमृतमयी दिव्य वाणी में ऊंच-नीच, जात-पात, रंग-नस्ल तथा देश-प्रदेश की सीमाओं से ऊपर उठ कर विश्व शांति का उपदेश दिया। 

उनके बारे में डा. जीत सिंह शीतल लिखते हैं, ‘‘जब हम गुरु जी के शबद ‘बेगमपुरा सहर को नाओ’ को देखते हैं तो बड़े-बड़े समाज शास्त्री, बुद्धिजीवी तथा राजनीतिक चिंतक चकित रह जाते हैं। कार्ल मार्क्स तथा लेनिन भी शायद इस तरह के समतावादी राज्य का संकल्प नहीं कर सके। आज से 600 वर्ष पहले ऐसे सार्वभौमिक मानवतावादी राज्य के बारे में सोचना तथा उसकी रूप-रेखा बनाना गुरु जी के हिस्से ही आ सका जिनकी महान प्रतिभा के सामने हमारा शीश स्वत: ही झुक जाता है।’’

गुरु जी की बेगमपुरा की विचारधारा का जिक्र करते हुए डा. सुरिन्द्र कुमार दवेशर उन्हें महान पश्चिमी चिंतकों रूसो तथा वाल्तेयर का पूर्वज स्थापित करते हुए कहते हैं, ‘‘रूसो के स्वतंत्रता, समानता तथा भ्रातृत्व के विचारों के बारे में यह समझा जाता है कि ये विश्व में एक नई वैचारिक क्रांति के जन्मदाता हैं। वास्तव में ये विचार तो भारतीय संत परम्परा में सत्गुरु रविदास जी की वाणी तथा प्रचार का ही केंद्रबिंदु हैं। इस तरह गुरु जी वैचारिक क्रांति की अवधारणा देकार वह निर्विवाद रूप से रूसो तथा वाल्तेयर के पूर्वज स्थापित होते हैं।’’

डा. सुरिन्द्र कुमार दवेशर के इस कथन से स्पष्ट है कि सत्गुरु रविदास जी विश्व के सबसे पहले क्रांतिकारी, विचारक, समाज सुधारक तथा प्रचारक थे। गुरु जी का शबद ‘बेगमपुरा सहर को नाओ’ पूरे विश्व में शांति, समानता तथा भ्रातृत्व की भावना जगाने में समर्थ है।   

                                                                                                                                               —महिन्द्र संधू महेड़ू

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!