Kundli Tv- मम्मा के मैनेजमेंट सूत्रों से लाइफ बनेगी बिंदास

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Jun, 2018 02:42 PM

bindasa will become life from mama s management sources

जब-जब संसार में दिव्यता की कमी, धर्म की ग्लानि, समाज में अन्याय, अत्याचार, चरित्र में गिरावट व विश्व में अशांति के बीज पनपने लगते हैं, तब-तब इन समस्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए किसी महान विभूति का जन्म होता है।

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जब-जब संसार में दिव्यता की कमी, धर्म की ग्लानि, समाज में अन्याय, अत्याचार, चरित्र में गिरावट व विश्व में अशांति के बीज पनपने लगते हैं, तब-तब इन समस्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए किसी महान विभूति का जन्म होता है। इन्हीं में से एक महान विभूति थीं जगदम्बा सरस्वती (मम्मा)। इनका बचपन का नाम राधे था। अचानक राधे के पिता जी का देहांत हो गया और राधे अपनी मां व छोटी बहन के साथ सिंध हैदराबाद में अपनी नानी व मामा के घर आ गई जहां इनका संपर्क ओम मंडली के संचालक दादा लेखराज से हुआ जो गीता का ज्ञान सुनाते-आत्मा अमर है, अविनाशी है, पुराना शरीर छोड़ नया शरीर संस्कारों के अनुसार धारण कर लेती है और साथ-साथ ओम की ध्वनि लगाते थे। दादा लेखराज ने इन्हें आलौकिक परमात्म ज्ञान की शिक्षा-दीक्षा प्रदान की तथा कुछ समय में ही राधे को सत्संग की संचालिका बना दिया। फिर कुछ अन्य माताओं व कन्याओं को मिलाकर एक कार्यकारिणी समिति बना दी और दादा ने अपना धन, चल-अचल सम्पत्ति इस समिति के नाम कर दी। आगे चलकर इस समिति का नाम प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय पड़ा जिसकी शाखाएं आज विश्व के कोने-कोने में फैल चुकी हैं।

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बचपन से ही मम्मा पुरुषार्थी थीं। वह प्रतिदिन दो बजे उठकर बहुत प्यार से राजयोग का अभ्यास करतीं। जब इस संस्था में गरीबी का समय आया तो जब तक अन्य सभी को खाना नहीं मिल जाता तब तक मम्मा व दादा खाना नहीं खाते थे। मम्मा सच्चाई की साक्षात मूर्त थीं।

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मम्मा सर्व गुणों की खान और मानवीय मूल्यों की विशेषताओं से सम्पन्न थीं। मम्मा ने कभी किसी को मौखिक शिक्षा नहीं दी बल्कि अपने प्रैक्टीकल जीवन से प्रेरणा दी। इसी से दूसरे के जीवन में परिवर्तन आ जाता था। मम्मा की सत्यता, दिव्यता व पवित्रता की शक्ति ने लाखों कन्याओं के लौकिक जीवन को आलौकिकता में परिवर्तित कर दिया और उन कन्याओं ने अपना सीमित परिवार त्याग कर विश्व को अपना परिवार स्वीकार करके विश्व की सेवा में त्याग व तपस्या द्वारा जुट गईं। 

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आज भी विश्व के 130 देशों में इस संस्था के लगभग 9000 सैंटर/ सेवा केंद्र हैं, जिसकी हैड /संचालिका कन्या या माता ही होंगी जो विश्व शांति की सेवाओं में रात-दिन एक कर रही हैं। मानव समाज को मम्मा ने अपने जीवन के अनुभव से एक बहुत बड़ी देन दी है कि अपने जीवन को सफल बनाने हेतु व विश्व सेवा के लिए बीस नाखूनों की शक्ति लगा दो तो सफलता अवश्य आपके हाथ लगेगी। मम्मा बहुत कम बोलती थीं। अधिक बोलने से हमारी शक्ति नष्ट हो जाती है, ऐसा मम्मा का कहना था।

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इस प्रकार अपने ज्ञान, योग, पवित्रता के बल से विश्व की सेवा करते हुए जगत मां प्यारी मम्मा सरस्वती जी ने 24 जून,1965 को सायं चार बजे इस नश्वर शरीर को अलविदा कह अंतिम सांस ली।

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