जब प्रदोष व्रत के प्रभाव से धर्मगुप्त को वापिस मिला अपना राज-पाठ

Edited By Jyoti,Updated: 22 Jan, 2020 12:49 PM

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आज यानि माघ मास की त्रियोदशी तिथि को जग के स्वामी परम पति भगवान शंकर का प्रदोष व्रत मनाया जा जाएगा, जिस बुध प्रदोष व्रत भी कहा जाता है। बता दें बुधवार के दिन पड़ने के कारण इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है।

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आज यानि माघ मास की त्रियोदशी तिथि को जग के स्वामी परम पति भगवान शंकर का प्रदोष व्रत मनाया जा जाएगा, जिस बुध प्रदोष व्रत भी कहा जाता है। बता दें बुधवार के दिन पड़ने के कारण इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है। वैसे तो शिव जी की कृपा पाने के लिए महाशिवरात्रि का त्यौहार सबसे खास माना जाता है। परंतु कहा जाता है अगर कोई जातक प्रदोष व्रत तथा मासिक शिवरात्रि के दौरान बाबा भोलेनाथ की अच्छे से पूजा करता है उसे भी महाशिवरात्रि की पूजा के समान फल मिलता है। मगर आप में से शायद ऐसे बहुत से लोग होंगे जिन्हें ये नहीं पता होगा कि इस व्रत को सबसे पहले किसने किया था और कैसे इस व्रत की महिमा पृथ्वी पर प्रचलित हुई। तो चलिए जानते हैं प्रदोष व्रते से जुड़ी प्राचीन कथा-
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पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीनकाल में एक गरीब पुजारी हुआ करता था। जिसकी मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख मांगना शुरू कर दिया। रोज़ वो सुबह उसे निकल जाती और शाम तक घर वापस आती। एक दिन इस दौरान उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई, जो अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटक रहे थे। राजकुमार की ये हालत  पुजारी की पत्नी से देखी नहीं गई। यहीं सोच विचार कर राजकुमार को अपने साथ अपने घर ले आई और उसे भी अपने पुत्र जैसे रखने लगी।

एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई। यहां उसने ऋषि से शिव जी के प्रदोष व्रत की कथा एवं विधि सुनी। घर जाकर अब वह भी प्रदोष व्रत करने लगी। एक बार की बात है दोनों बालक वन में घूमने निकले, पंरतु उनमें से पुजारी का बेटा घर लौट आया, परंतु राजकुमार वन में ही रह गया। उसने वहां वन में गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखा और उनसे बातें करने लगा। उनमें से एक कन्या का नाम अंशुमती था। कथाओं में किए वर्णन के अनुासार उस दिन राजकुमार घर देरी से लौटा।
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दूसरे दिन राजकुमार फिर से उसी जगह पहुंचा, जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी। तभी अंशुमती के माता-पिता ने बालकर को देखा और झट से पहचान लिया तथा उससे कहा आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो न, आपका नाम धर्मगुप्त है। अंशुमती के माता-पिता को वह राजकुमार पसंद आ गया। जिस कारण उन्होंने  राजकुमार के सामने अपनी पुत्रों से विवाह का प्रस्ताव रखा। जिसे राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दे दी और दोनों का विवाह संपन्न हो गया।

जिसके बाद राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की तथा पत्नी के साथ वहां राज्य करने लगे। और अपने साथ वह पुजारी की पत्नी और पुत्र को भी ले आए और उन्हें अपने साथ रखने लगे। जिससे पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

ये सब देखकर एक दिन राजकुमार की पत्नी ने उनसे इन बातों के पीछे का कारण और रहस्य पूछा। तब राजकुमार ने उन्हें अंशुमती  को अपने जीवन की पूरी बात बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व तथा व्रत से प्राप्त होने वाले फल से अवगत करवाया। ऐसा कहा जाता है उसी दिन से प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा व महत्व बढ़ गया। कई जगहों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। 
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