Edited By Jyoti,Updated: 23 Dec, 2018 05:14 PM

हमारे बड़े बुजुर्गों ने हमें हमेशा ये कहा है कि व्यक्ति की संगति ही उसके व्यक्तित्व, स्वभाव और चरित्र को दर्शाता है। लेकिन आज कल के समय में इन बातों पर कोई यकीन नहीं करता, क्योंकि इन बातों को हमेशा हमनें लोगों को सिर्फ कहते सुना है।
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हमारे बड़े बुजुर्गों ने हमें हमेशा ये कहा है कि व्यक्ति की संगति ही उसके व्यक्तित्व, स्वभाव और चरित्र को दर्शाता है। लेकिन आज कल के समय में इन बातों पर कोई यकीन नहीं करता, क्योंकि इन बातों को हमेशा हमनें लोगों को सिर्फ कहते सुना है। पंरतु ऐसा नहीं है, ये बातें न केवल कहने सुनने की है बल्कि ये बातें हमारे हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में दर्ज हैं। जो इस बात का सबूत है, कि ये सिर्फ कहीं सुनी नहीं बल्कि आजमाई हुई बातें हैं। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं चाणक्य नीति में बताए एक ऐसे श्लोक के बारे में, जिसमें बताया गया है कि संगति का असर व्यक्ति पर ज़रूर पड़ता है।

श्लोक-
गुणवदाश्रयान्निर्गुणोऽपि गुणी भवति।
अर्थात- संगति का असर जरूर पड़ता है। जैसे लोगों में उठना-बैठना होगा, उसका प्रभाव जरूर पड़ेगा इसलिए सदैव अनुभवी और गुणवान व्यक्तियों के साथ संसर्ग करना चाहिए।
इसके अलावा एक पंगति बहुत प्रसिद्ध है जो इस प्रकार है कि, “रोपै पेड़ बबूल का, आम कहां ते होय”।
अर्थात- इसका मतलब है कि अगर हम बुरी संगित में हैं, तो हम कभी भी अच्छाई नहीं सीख पाएंगे। इंसान जैसी संगति में होता है, वे वह वैसा हो जाता है। तो अगर आप अच्छा बनना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले अच्छा संगति का हिस्सा बनना पड़ेगा।
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