जानें, किस भाव से किए गए दान का नहीं मिलता फल

Edited By Lata,Updated: 20 May, 2019 01:12 PM

do daan by your heart

एक राजा अपने समय के महान दानी थे। एक शाम वह महल की छत पर विश्राम कर रहे थे कि सफे़द हंसों का जोड़ा आपस में बातें करता आकाश मार्ग से गुजरा।

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एक राजा अपने समय के महान दानी थे। एक शाम वह महल की छत पर विश्राम कर रहे थे कि सफे़द हंसों का जोड़ा आपस में बातें करता आकाश मार्ग से गुजरा। हंस अपनी पत्नी से कह रहा था कि क्या तुझे राजा के शरीर से निकल रहा यश प्रकाश नहीं दिखाई देता? बच कर चल, नहीं तो इसमें झुलस जाएगी।
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हंसिनी मुस्कुराई और बोली, ‘‘प्रिय मुझे आतंकित क्यों करते हो? क्या राजा के समस्त दानों में यश निहित नहीं है? इसलिए मैं ठीक हूं। जबकि संत रैक्व एकांत साधना में लीन हैं, उनका तेज देखते ही बनता है। वही सच्चे अर्थों में दानी हैं।’’

राजा के हृदय में हंसों की बातचीत कांटों की तरह चुभी। उन्होंने सैनिकों को संत रैक्व का पता लगाने का आदेश दिया। बहुत खोजने पर किसी एकांत स्थान में वह संत एक पेड़ के नीचे बैठे मिले। राजा राजसी वैभव से अनेक रथ, घोड़े, गऊएं और सोने की मुद्राएं लेकर संत रैक्व के पास पहुंचे। रैक्व ने बहुमूल्य भेंटों को अस्वीकार करते हुए कहा कि मित्र ये सब कुछ ज्ञान से तुच्छ हैं। ज्ञान का व्यापार नहीं होता।
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राजा शर्मिंदा होकर लौट गए। कुछ दिन बाद वह खाली हाथ, जिज्ञासु की तरह संत रैक्व के पास पहुंचे। उन्होंने राजा की जिज्ञासा देखकर उपदेश दिया कि दान करो, किंतु अभिमान, अहं से नहीं, उन्मुक्त भाव से दान करो। राजा रैक्व की बात सुनकर बहुत प्रभावित हुए और लौट गए। तात्पर्य यह कि दान हमेशा निश्छल भाव से करना चाहिए। दान करते समय यह नहीं सोचना चाहिए कि हमें दान करने से भविष्य में कोई लाभ मिलेगा। क्यों कि दान दान होता है।

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