Edited By Jyoti,Updated: 12 Apr, 2018 04:10 PM
1857 का स्वतंत्रता संग्राम सिर उठा चुका था। अवध के नवाब वाजिद अली शाह के हाथ से सल्तनत जाने के बाद अंग्रेज हुकूमत को लगा कि अब अवध उसकी मुट्ठी में है मगर जल्द ही उनका यह भ्रम टूट गया जब वाजिद अली शाह की बेगम ने खुद ही क्रांति की कमान थाम ली।
1857 का स्वतंत्रता संग्राम सिर उठा चुका था। अवध के नवाब वाजिद अली शाह के हाथ से सल्तनत जाने के बाद अंग्रेज हुकूमत को लगा कि अब अवध उसकी मुट्ठी में है मगर जल्द ही उनका यह भ्रम टूट गया जब वाजिद अली शाह की बेगम ने खुद ही क्रांति की कमान थाम ली। पूरे अवध में बेगम के नेतृत्व में अंग्रेजों को जबरदस्त संघर्ष का सामना करना पड़ा।
बेगम हजरत महल ने हिंदू-मुस्लिम सभी राजाओं को एक करके और अवाम का साथ लेकर अवध में हर तरफ अंग्रेजों को हरा दिया। यहां तक कि पूरी दुनिया में पहली बार अंग्रेजों की शान यूनियन जैक को लखनऊ रेजीडेंसी में जमीन पर गिरा दिया गया। हर तरफ बहुत से अंग्रे़ज़ और उनके वफादारों की गिरफ्तारियां हुईं। क्रांति का एक नायक सरदार दलपत सिंह बेगम के दरबार में पहुंच कर कहता है, ‘‘बेगम हुजूर, आप अपने कैदी अंग्रेजों को हमें सौंप दीजिए। हम उनके हाथ-पैर काटकर अंग्रेजों की छावनी भेजेंगे ताकि उन्हें पता चले कि हमारे साथ जो क्रूर व्यवहार किया गया, यह उसका जवाब है। हम चुप रहने वालों में से नहीं हैं।’’ बेगम का चेहरा सुर्ख हो गया।
उन्होंने कहा, ‘‘हरगिज नहीं। हम अपने कैदियों के साथ ऐसा सलूक न तो खुद कर सकते हैं और न किसी को ऐसा करने की छूट दे सकते हैं। कैदियों पर जुल्म ढाने का रिवाज हमारे हिंदुस्तान का नहीं है। हमारे जीते जी अंग्रेज कैदियों और उनकी औरतों-बच्चों पर जुल्म नहीं किया जा सकता। हिंदुस्तानी तहजीब कैदियों की भी इज्जत और हिफाजत की रही है।
आप हमारे सरदार हैं, हम आपकी हिम्मत और जज्बे की इज्जत करते हैं मगर हम आपकी मांग पूरी नहीं कर सकते।’’ इतने बड़े दिल की मलिका और हिंदुस्तान की पहचान बेगम हजरत महल ने खुद अंग्रेजों के जुल्म सहे मगर अपने उसूलों से समझौता नहीं किया।
सीख- न करें अपने उसूलों का त्याग