बैसाखी से जुड़ी मान्यताओं के साथ जानें विभिन्न क्षेत्रों में कैसे मनाया जाता है यह पर्व

Edited By ,Updated: 12 Apr, 2017 10:04 AM

how to celebrate baisakhi in different regions

बैसाखी एक धार्मिक त्यौहार होने के साथ फसली त्यौहार अधिक है जो पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में अलग-अलग रीति-रिवाजों से मनाया जाता है।

बैसाखी एक धार्मिक त्यौहार होने के साथ फसली त्यौहार अधिक है जो पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में अलग-अलग रीति-रिवाजों से मनाया जाता है। पंजाब के भटिंडा, आनंदपुर साहिब, गुरदासपुर क्षेत्रों व रावी नदी के तट पर लगने वाला बैसाखी मेला अत्यंत लोकप्रिय है। देश के अनेक भागों में फसलों की कटाई बैसाखी के दिन ही शुरू होती है। उत्तर भारत का यह पर्व बंगाल में ‘सौर संवत’ के नाम से जाना जाता है इसलिए बंगाल व अन्य पूर्वी क्षेत्रों में इसे नए साल के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है।


बैसाखी से जुड़ी मान्यताएं 
1699 ई. में सिखों के गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी दिन श्री आनंदपुर साहिब में ‘खालसा पंथ’ की स्थापना की।


483 ईसा पूर्व 80 वर्ष की आयु में इसी दिन भगवान बुद्ध को कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त हुआ था। जिस पीपल के वृक्ष के नीचे उन्होंने कठिन तपस्या कर बौधिसत्व प्राप्त किया था, उसी वृक्ष का रोपण भी इसी दिन हुआ था।


सन् 1875 में स्वामी दयानंद जी ने मुम्बई में स्वामी विरजानंद जी की प्रेरणा से आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की थी।


यह भी माना जाता है कि राजा भगीरथ इसी दिन गंगा को धरती पर लेकर आए थे।


विभिन्न क्षेत्रों में बैसाखी पर्व
असम में यह दिन ‘बिहू’ उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बंगाल में नए साल के पहले दिन यानी ‘नववर्ष’ के रूप में मनाते हैं।


केरल में ‘विशु’ के नाम से प्रसिद्ध इस पर्व में नए कपड़ों की खरीदारी की जाती है और आतिशबाजियां छोड़ी जाती हैं। ‘विशु-कानी’ को फूलों से सजा कर उसमें फल, नए कपड़े, आभूषण आदि रखे जाते हैं। अगली सुबह इन सबके दर्शन किए जाते हैं और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। तमिलनाडु में ‘पुथडूं’ नाम से प्रसिद्ध इस उत्सव की यहां खूब धूम रहती है।


पंजाब में बैसाखी का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। गुरुद्वारों में अरदास की जाती है, बाद में गुरु प्रसाद व गुरु लंगर का आयोजन दिन भर चलता रहता है। कई स्थानों पर श्रद्धालु कार-सेवा भी करते हैं। पूरा दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी व उनके ‘पंज प्यारों’ के सम्मान में शब्द-कीर्तन किए जाते हैं। शाम को लोग नए कपड़ों में सज-धज कर मेला देखने जाते हैं और मिठाइयां, खिलौने आदि खरीदते हैं। मेलों में विभिन्न मनोरंजक खेलों के अतिरिक्त गिद्दा-भंगड़ा और झूलों का आनंद लेना भी शामिल होता है। 

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