मुखौटे के रूप में अनेक चमत्कार दिखाते हैं ‘जोगेश्वर महादेव’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Jun, 2019 02:08 PM

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मनोरम पहाड़ियों में बसा जिला कुल्लू का दलाश गांव सतलुज घाटी बाह्य सिराज के प्रवेश द्वार लूहरी से मात्र 28 किलोमीटर दूर समुद्र तल से लगभग 6000 फुट की ऊंचाई पर बसा है। यहां भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर स्थापित है।

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मनोरम पहाड़ियों में बसा जिला कुल्लू का दलाश गांव सतलुज घाटी बाह्य सिराज के प्रवेश द्वार लूहरी से मात्र 28 किलोमीटर दूर समुद्र तल से लगभग 6000 फुट की ऊंचाई पर बसा है। यहां भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर स्थापित है। यह मंदिर ‘जोगेश्वर महादेव’ के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव के मंदिर की स्थापना त्रेता युग में ऋषियों द्वारा की गई थी। प्रारंभ में यहां द्वादश शिवलिंग स्थापित किए गए थे जिनके अवशेष यहां आज भी प्राप्त होते हैं। द्वादश शिवलिंग स्थापित किए जाने पर गांव का नाम ‘दलाश’ पड़ा। दलाश ‘द्वादश’ का अपभ्रंश रूप है क्योंकि स्थानीय लोग आज भी दलाश को ‘द्वाश’ कहते हैं। इसमें मात्र ‘द’ वर्ण का लोप हुआ है।

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प्राचीन समय में यहां कोई बड़ा मंदिर नहीं हुआ करता था। बल्कि शिवलिंग को बाहर से पत्थरों द्वारा स्तम्भाकार स्थिति में ढंक कर स्थापित किया गया। इसके सम्मुख नंदी बैल की पत्थर की पूर्वाभिमुख प्रतिमा स्थापित है। सहस्राब्दियों से जोगेश्वर महादेव की पूजा अखंडश: होती गई। संयोगवश यहां देव मूर्ति मुखौटे के रूप में प्राप्त हुई है जिसे जोगेश्वर महादेव भी कहा गया है। लोग इसे रथ में सजा कर मेले-उत्सवों में ले जाते हैं।

मुखौटे के रूप में प्राप्त देव मूर्ति के वृत्तांत के अनुसार दलाश की सामने वाली नौनू हिमरी की पहाड़ी के आगे हिमरी खड्ड बहती है जहां ‘कुईकंडा’ नामक स्थान पर नाग देवता का अति प्राचीन मंदिर है। भक्तजनों ने इसके साथ ही कहीं शिव मूर्ति की स्थापना अवश्य की होगी क्योंकि इनका परस्पर संबंध है। अचानक हिमरी खड्ड में बरसात के मौसम में बाढ़ आने से यह देवमूर्ति मुखौटा खड्ड में बह गया जो एक गांव के लिए निकाली गई कूहल के पानी में बहकर रठोह गांव के एक खेत में जा पहुंचा। एक किसान यहां दलाश से कुछ दूर पनाहर गांव से खेती करने आता था। यह गांव वर्तमान समय में गंच्छवा गांव में अवस्थित है। एक दिन यह किसान खेत में हल चला रहा था कि अचानक हल की नोक से यह मुखौटा मिट्टी से बाहर निकला। हल की नोक से इस मुखौटे के अनुभाग में लगा निशान आज भी दिखाई देता है।

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किसान मुखौटे को साफ करके अपने घर पनाहर लाया। वह उस देव मूर्ति की नित्य पूजता रहा। किसान की अनन्य भक्ति से भगवान प्रसन्न हुए। भगवान ने उस किसान को अनेक चमत्कार दिखाए। किसी शुभ अवसर पर वह किसान विशेष ‘देऊखेल’ करने लगा और परिजनों से कहने लगा कि मैं स्वयं शिव हूं, मेरे लिए मंदिर बनाओ। उसने कहा कि इस स्थान से चींटियां चलनी शुरू होगी और जिस स्थान पर चींटियां बिल बनाएंगी वहीं मंदिर बनाया जाए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो मैं सर्वनाश करूंगा। दलाश में जहां जोगेश्वर शिवलिंग स्थापित था वहीं पर चींटियों ने अपना बिल बनाना शुरू किया। मुखौटा रूप में प्राप्त देव मूर्ति को भी एक भव्य मंदिर बनाकर विधिवत स्थापित किया गया।

दलाश देवता सिरिगढ़ क्षेत्र का मुख्य देवता है। जोगेश्वर महादेव का रथ मेले, उत्सवों में दूर-दूर तक जाता है। खुली आंखों वाले देव मूर्ति मुखौटे का मुंह अद्भुत है जो अन्यत्र कही पर नहीं है। इसका यश दूर-दूर तक फैला हुआ है। ग्राम पंचायत दलाश के अलावा डिंगीधार, फरानाली, ब्यंगुल, पलेही, कुठेड़, जावन, नमहोंग पंचायत के समस्त सिरिगढ़ क्षेत्रवासी दलाश देवता को मानते हैं।

दलाश मंदिर में दो रथ हैं। एक रथ जोगेश्वर महादेव का दूसरा आदि देवता अथवा बूढ़ा देवता जिसे खोडू देवता कहते हैं। खोडू देवता के वरिष्ठ होने के कारण इनका रथ दलाश में लगने वाले भादों मेले के अलावा कहीं नहीं जाता। खोडू देवता यहां पर प्राचीन शिवलिंग का उप रूप है। 

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